23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बिहार से विलुप्त होती जा रही होली व चैता गायन की परंपरा, आधुनिकता के नाम पर जानें कितना बदला त्योहार

Advertisement

आधुनिकता के नाम पर अब होली पूरी तरह बदल चुकी है. अब सामाजिक समरसता और भाईचारे का माहौल भी नहीं दिखता. वहीं होली व चैता गायन की परंपरा भी अब बिहार से विलुप्त होती जा रही है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

रंगों का पर्व होली भी बदलाव से अछूता नहीं है. वसंत पंचमी से ही रंग और अबीर की शुरुआत हो जाती है. वसंत की मादकता पक्षी को भी प्रभावित कर देता है. कोयल की कू सुनाई देने लगती है. इसका समाज पर अपना रंग होता था. हर तरफ खुशी एवं सामाजिकता का माहौल बन जाता था. एक अलग ही मानसिक अंदाज का अनुभव होने लगता था. समाज में आपसी भाईचारा बन जाती थी. सभी एक दूसरे को गले लगाने लगते थे.

- Advertisement -

आधुनिकता के नाम पर लगभग विलुप्त हो गयीं परंपरा

अपनी परंपराओं को भूलना अपने रीति-रिवाजों से कट जाने को आज आधुनिकता का नाम दे दिया गया है. वर्षों पहले से अब फागुन एवं चैत की परंपराएं विलुप्त हो चुकी हैं. फागुन आते ही हंसी-ठिठोली, उल्लास और अल्हड़पन का माहौल अब गायब हो गया है. न तो फाग के बोल सुनाई देते और न हुड़दंग मचातीं युवाओं की टोलियां दिखतीं.

संस्कृति और परंपराओं को बचाना जरुरी

होली के रंग, फगुआ गीत, गुझियां, पापड़, चिप्स बनाने के साथ सुरीले कंठ से आंगन में फाग गातीं महिलाएं जैसे नजारों को आधुनिकता ने चौपट कर दिया. इस संबंध में कई बुद्धिजीवियों का कहना है कि हमें गांवों को बचाना होगा.अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाना होगा.

Also Read: Bihar News: शिक्षक बनने आये दो अभ्यर्थियों को उठा ले गयी पुलिस, जानिये काउंसलिंग के दौरान क्यों धराये…
आपसी मतभेद के चलते घर से दूर ही होली

लोगों का कहना है कि पहले की होली और अब में बहुत बदलाव आता जा रहा है. पहले हर सदस्य परिवार के बीच त्योहार मनाना पसंद करते थे.बाहर रहने वाले लोग होली के समय अपने घर जरूर आ जाते थे. लोग कोसों पैदल और कच्ची सड़क से चलकर घर पहुंचते थे. अब साधन होने के बावजूद आपसी मतभेद के चलते घर आने की जहमत नहीं उठाते.

क्या कहते हैं बुजुर्ग

हमारे जमाने में होली का काफी महत्व था. यह अपनी परंपरा है. सामाजिक सौहार्द का अनूठा उदाहरण है. होली से समाज में प्रेम बना रहता था. सभी लोग एक जगह एकत्र होकर होली गाते थे. आपस में कोई भेद भाव नहीं रह जाता था. बहुत आनंद होता था. अपनी परंपराओं को नहीं भूलनी चाहिए.

मनमुटाव दूर करती थी होली

एक बुजुर्ग कहते हैं कि उस समय समाज में काफी एकता होती थी. सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे. यदि किसी को मनमुटाव भी है तो होली आते ही सब भेदभाव को भूल जाते थे. आपस में एक हो जाते थे.मिलकर होली गाते थे.आपसी प्रेम देखते ही बनता था.परंपराएं समाज की आधार होती हैं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें