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Success Story: पिता ने अफसरों के कपड़े धोकर बेटे को पढ़ाया, बेटे क्रैक कर डालीं ऑफिसरवाली 10 सरकारी नौकरियां

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Success Story: बिहार के नालंदा जिले में एक छोटे से गांव नूरसराय के रहनेवाले आनंद ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया. आनंद मोहन फिलहाल बिहार में ग्रामीण विकास विभाग में बीडीओ के पद पर नियुक्त हैं.

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Success Story: पटना. कुछ लोग सपने देखने के लिए सोते हैं और कुछ सपने पूरे करने के लिए सो नहीं पाते.. कुछ ऐसी ही कहानी है नालंदा के आनंद मोहन की. आनंद के पिता ने बेटे को आफिसर बनाने के लिए ऑफिसरों के पकड़े धोये. बेशक यह उनका पेशा था, लेकिन एक जिद भी थी कि बेटे को इस पेशे में नहीं लाना है, बल्कि उसे आफिसर बनाना है. पिता के इस सपने को आनंद मोहन ने अपना संकल्प बना लिया और वो दिन भी आया जब आनंद मोहन ने एक नहीं दो नहीं बल्कि पूरे के पूरे 10 सरकारी नौकरी क्रैक कर डाली, जो उसके पिता के सपने और उसके संकल्प को पूरा कर दिया. बिहार के नालंदा जिले में एक छोटे से गांव नूरसराय के रहनेवाले आनंद ने अपनी मेहनत से इतिहास रच दिया. आनंद मोहन फिलहाल बिहार में ग्रामीण विकास विभाग में बीडीओ के पद पर नियुक्त हैं.

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पिता का सपना बना आनंद का संकल्प

इस संबंध में आनंद मोहन ने एक समाचार पत्र से बता करते हुए खुल कर अपनी कहानी का इजहार किया. उन्होंने कहा कि उनका परिवार बेहद गरीब था और गांव में रहता था. गांव में जब मजदूरी का संकट आया तो उनका परिवार पटना आ गया और एक कमरे के घर में रहने लगा. घर बेहद जर्जर था और बरसात में छत से पानी टपकता था. पटना में आनंद के पिता लोगों के कपड़े धोते थे और धोने के बाद उन्हीं कपड़ों को प्रेस करते थे. इसी दौरान पिता ने आनंद को आफिसर बनाने का सपना देखना शुरू किया और इसकी पढ़ाई-लिखाई की हर संभव व्यवस्था की. आनंद ने भी पिता के सपने को अपना लक्ष्य बनाया और जिद ठान ली कि चाहे जो हो जाए, अब अफसर ही बनना है. आनंद ने इसके लिए खुद को झोंक दिया…

देखा है गरीबी का वो बुरा दौर

मीडिया से बात करते हुए आनंद मोहन ने बताया कि उन्होंने गरीबी का बुरे से बुरा दौर देखा है. कभी-कभी ऐसा भी होता था कि उनके पिता को काम नहीं मिलता और पूरे परिवार के चेहरे पर उदासी छा जाती थी. कभी-कभी घर में सब्जी नहीं होती थी, दूध नहीं होता था और वो चाय तक के लिए तरस जाते थे. मजबूरी ऐसी थी कि दिन में आनंद स्कूल जाते और वापस लौटने के बाद पिता के साथ उनके काम में हाथ बंटाते. यही वो वक्त था, जब पिता ने आनंद से कहा कि पढ़-लिखकर कुछ बनो. आनंद को भी मेहनत करना शुरू कर दिया.

सफलता के लिए मिला 10 हजार का चेक

आनंद की मेहनत रंग लाई और मैट्रिक में उनके शानदार नंबर आए. नंबर भी ऐसे कि केंद्र सरकार की तरफ से उन्हें दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया गया. आनंद को 10 हजार रुपये का चेक और सर्टिफिकेट प्रदान किया गया. उनके लिए ये पहली सफलता थी, लेकिन बड़ी थी. आनंद आगे बढ़ते गए और ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन करते हुए कॉलेज टॉप किया. आनंद की कामयाबी के चर्चे अब होने लगे थे. हालांकि, आनंद यहीं नहीं रुकने वाले थे, उनकी मंजिल थी सरकारी आफिसर बनना. उन्होंने सरकारी नौकरियों की परीक्षा देनी शुरू की और लगातार 10 परीक्षाओं में सफलता हासिल की. आनंद का पहला सेलेक्शन 2012 सीजीएल के माध्यम से अकाउंटेंट के पद पर हुआ. लेकिन वो ऑफिसर का पद नहीं था.

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गांव लौटा आफिसर बन बेटा

2010 में ही आनंद ने बीपीएससी की तैयारी शुरू कर दी थी. साल 2012 में आनंद ने बीपीएससी की प्री और मेंस परीक्षा पास कर ली और अगले साल उन्हें इंटरव्यू के लिए दिल्ली बुलाया गया. आनंद के दोस्तों ने उनसे कहा कि वो फ्लाइट से दिल्ली जाएं. ये एक बड़ा पल था कि क्योंकि लोगों के कपड़े धोने वाले का बेटा पहली बार प्लेन में बैठ रहा था. आनंद ने इंटरव्यू दिया और उनका सेलेक्शन ग्रामीण विकास विभाग में बीडीओ के पद पर हो गया. आनंद जब रिजल्ट आने के बाद अपने गांव लौटे, तो शानदार तरीके से उनका स्वागत किया गया. आनंद बताते हैं कि ये सब कुछ एक सपने के सच होने जैसा है.

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