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Guru Purnima: पटना की शिक्षिकाओं की कहानी, जिन्होंने अलग-अलग विद्या में अपने शिष्यों को किया पारंगत

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आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम पटना शहर की ऐसी शिक्षकाओं के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने अलग-अलग विद्या में अपने शिष्यों को परांगत किया है. साथ ही जानेंगे उनके गुरु के बारे में जिनकी बदौलत आज वे इस मुकाम पर हैं.

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Guru Purnima: आज गुरु पूर्णिमा है. यह दिन अपने गुरु को याद करने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है. वैसे तो इसके लिए कोई एक दिन काफी नहीं, क्योंकि जीवन में हर पड़ाव पर शिक्षकों की दी गयी शिक्षा बहुत काम आती है. शास्त्रों में भी कहा गया है कि गुरुओं का स्थान देवी-देवताओं से भी ऊंचा है. गुरु के बिना किसी लक्ष्य को पाना आसान नहीं होता है.

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1. मेरे पिता ही मेरे पहले गुरु, जिन्होंने सरोद वादन सिखाया   – रीता दास

पिछले 25 साल से सरोद वादन कर रहीं रीता दास कहती हैं, मेरे लिए सरोद वादन सीखना आसान नहीं था. पर मेरे पिता ने मुझे इस क्षेत्र में पारंगत किया. मेरे घर का माहौल शुरुआत से ही संगीतमय रहा है. मेरे पिता प्रो सीएल दास अंग्रेजी के प्रोफेसर होने के साथ-साथ काफी अच्छे सरोद वादक भी थे. ऐसे में घर में दिग्गज कलाकारों का आना-जाना लगा रहता था.

सबसे पहले मुझे अपने पिता से सरोद बजाने का प्रशिक्षण मिला था. बाद में मैं आचार्य अलाउद्दीन खान के भतीजे उस्ताद बहादुर खान से प्रशिक्षण प्राप्त की. पंडित सुनील मुखर्जी और उस्ताद आशीष खान से भी मैंने प्रशिक्षण लिया है. ये सभी मेरे गुरु है, जिन्होंने मेरी जर्नी में मुझे न सिर्फ प्रेरित और प्रभावित किया, बल्कि मुझे गढ़ा भी है.

2.  जीवन में क्या बनना है, इस पर फोकस करना बताया – उज्जवला गांगुली

गुरु रोशनी की तरह होते हैं, जो हमारे जीवन से अंधकार दूर करते हैं. जैसे दीपक लेकर चलने से अंधकार दूर होता है. यह कहना है उज्जवला गांगुली का. वे कहती हैं, आज मैं जिस मुकाम पर हूं इसका श्रेय मेरे माता-पिता के साथ-साथ मेरी शिक्षक और शिक्षिकाओं को जाता है. वे कहती हैं, मेरा थिएटर के प्रति एक जुनून है. मेरे माता-पिता इसी क्षेत्र से जुड़े थे, तो मुझे रंगमंच की बारीकियों को सीखने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई.

आज थिएटर मेरे लिए एक मंदिर के समान है, जहां एक दिन भी पूजा न करूं, तो लगता है कुछ छूट रहा है. मैं 2013 से नाटकों का निर्देशन कर रही हूं. यहां आने वाले युवाओं को डायलॉग डिलिवरी से लेकर स्टेज में किस तरह से प्रस्तुति देनी है, इसके बारे में बताती हूं.

3. मेरी मां व बहनों की वजह है मैं इस फील्ड से जुड़ी   – मीनी कुमारी

हर किसी के पहले गुरु उनके माता-पिता ही होते हैं. मगर मेरे लिए मेरी मां और बहन मेरे गुरु रहे, जिन्होंने मुझे अनुशासन के साथ-साथ लक्ष्य सिद्धि के लिए मेहनत करने का मूल मंत्र दिया. यह कहना है आशियाना दीघा की रहने वाली मीनी कुमारी का जो, वर्ष 2018 से हॉकी की कोच हैं.

मिनी कहती हैं, कभी सोचा नहीं था कि कोच बनूंगी, लेकिन जो चुनौतियां मैंने झेली वह नहीं चाहती थी कि यहां की अन्य बेटियां झेले. इसलिए वे पटियाला से कोच का प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद बिहार की महिला हॉकी खिलाड़ियों को प्रशिक्षण देती हैं और चाहती हैं कि यहां की टीम अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाएं. पटियाला में मैंने जिस टीचर से जो कुछ भी सिखा है उसे मैंने अपने जीवन में उतार लिया.

4. गुरु के सानिध्य के बिना सफलता संभव नहीं – डॉ साधना कुमारी

गुरु के द्वारा ज्ञान प्राप्त होता है. गुरु के सान्निध्य के बिना जीवन में कभी भी सफलता संभव नहीं है. मेरे गुरु डॉ जाकिर हुसैन संस्थान के महानिदेशक डॉ उत्तम कुमार सिंह थे, जो हमारे जीवन के पथ प्रदर्शक थे. यह कहना है राजीव नगर की रहने वाली डॉ साधना कुमारी का. वे कहती हैं मैंने अपने गुरु से प्रेरित होकर कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की और इसी विषय से पीएचडी किया.

वर्ष 2021 से बच्चों को रोबोटिक्स की शिक्षा देती हूं. काफी स्टडी करने के बाद मुझे लगा कि अगर कम उम्र में बच्चों को रोबोटिक्स का बेहतर बेस मिले, तो वे आगे चल कर इसमें काफी अच्छा कर सकते हैं. इसलिए मैंने इसकी ट्रेनिंग बच्चों को देना शुरू किया. मेरे गुरु हमेशा जीवन में अपने लक्ष्य पर फोकस करने की बातें बताते थे.

5. डॉ वीणा श्रीवास्तव व डॉ वीनिता अग्रवाल मेरी गुरु हैं – प्रो जयश्री मिश्रा

मगध महिला कॉलेज की इतिहास विभाग की प्रोफेसर व पूर्व प्राचार्या प्रो जयश्री मिश्रा अध्यापन के क्षेत्र में वर्ष 1977 में जुड़ीं. वे कहती हैं, उस वक्त शिक्षित होने वाली लड़कियों की संख्या काफी कम थी. पर मेरे घर-परिवार का माहौल पढ़ाई-लिखाई को लेकर अच्छा था. मेरे लिए मेरी मेंटोर डॉ वीणा श्रीवास्तव व डॉ विनीत अग्रवाल थीं. जिनसे काफी कुछ मुझे सीखने को मिला.

मैंने पहला लेक्चर 1977 में डॉ माला घोष के कहने पर दिया. मगध महिला कॉलेज में साढ़े तीन साल पढ़ाने के बाद पीएचडी किया और 1985 में फिर से कॉलेज ज्वाइन किया. इस दौरान उन्होंने जो अपने गुरु से सीखा था, उसे अपनी छात्राओं को बताती और उन्हें प्रेरित करतीं. जिंदगी की सफर में सफलता या फिर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हर किसी को गुरु का साथ चाहिए होता है. 

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