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बिहार के किसी गंवई की तरह टिकट का उच्चारण ‘टिकस’ के रूप में करते थे रघुवंश बाबू, जानिए उनकी सियासी यात्रा से जुड़ी कहानी

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पटना : कद्दावर समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व में गंवई आक्रामकता एवं विद्वता का अद्वितिय सम्मिश्रण था और उनके इसी गुण ने उन्हें बिहार की राजनीति में अपने लिए एक खास जगह बनाने में मदद की थी. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में भर्ती पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंह (74) का रविवार को निधन हो गया. कुछ ही दिन पहले उन्होंने बिहार में मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से बरसों पुराना अपना नाता तोड़ने की घोषणा की थी. उन्होंने कई वर्षों तक राजद प्रमुख लालू प्रसाद का साथ देते हुए राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में तमाम तोल-मोल किये, लेकिन उनकी अपनी अलग पहचान भी रही.

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पटना : कद्दावर समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के व्यक्तित्व में गंवई आक्रामकता एवं विद्वता का अद्वितिय सम्मिश्रण था और उनके इसी गुण ने उन्हें बिहार की राजनीति में अपने लिए एक खास जगह बनाने में मदद की थी. अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में भर्ती पूर्व केंद्रीय मंत्री सिंह (74) का रविवार को निधन हो गया. कुछ ही दिन पहले उन्होंने बिहार में मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से बरसों पुराना अपना नाता तोड़ने की घोषणा की थी. उन्होंने कई वर्षों तक राजद प्रमुख लालू प्रसाद का साथ देते हुए राज्य और राष्ट्रीय राजनीति में तमाम तोल-मोल किये, लेकिन उनकी अपनी अलग पहचान भी रही.

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रघुवंश प्रसाद सिंह नेता होने के साथ-साथ खुद के एक सहज व्यक्ति होने की पहचान भी कभी खोने नहीं दी. सिंह के साथ सबसे बड़ी बात यह थी कि संसद की कार्यवाही के दौरान जब कभी उनके सामने कोई उलझाव विषय आता तो वह संदर्भ के लिये बेझिझक एमएन कौल और एसएल शकधर लिखित ‘संसद की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया’ का संबद्ध पृष्ठ खोलते और अपनी अनूठी ‘‘हिंग्लिश” में उसे पढ़ना शुरू कर देते, कई लोगों को इनकी यह बात बहुत अजीब और मजाकिया भी लगती थी. इस पुस्तक के प्रति उनका लगाव ऐसा था कि उसका संबद्ध पृष्ठ पढ़ने के दौरान साथी सांसदों द्वारा किसी भी तरह का कोई व्यवधान उन्हें उसे पूरा करने से रोक नहीं पाता था.

उनके गंवइपन के भीतर गणित के प्रोफेसर की तार्कीक बुद्धि भी थी, और वह हमेशा अपने नेताओं के लिए उनके कान बने रहे. वह हमेशा इसकी खबर रखते थे, कौन क्या कह रहा है और किसके बारे में कह रहा है. लेकिन, जीवन के अंतिम पल तक आते-आते तक उनका राजद से मोह भंग हो गया था. उन्होंने एम्स, दिल्ली में इलाज कराने के दौरान ही बृहस्पतिवार को अपना इस्तीफा राजद प्रमुख एवं चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता लालू प्रसाद को रिम्स, रांची भेजा था. उन्होंने एक पंक्ति के अपने इस्तीफे में कहा था, ‘‘मैं जननायक कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे खड़ा रहा लेकिन अब नहीं.”

रघुवंश प्रसाद ने लालू प्रसाद को लिखे अपने पत्र में लिखा, “पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया. मुझे क्षमा करें.” सिंह की चिट्ठी पाने के कुछ ही घंटे बाद प्रसाद ने उन्हें जवाबी पत्र लिखा, ‘‘प्रिय रघुवंश बाबू, आपके द्वारा कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में चलाई जा रही है. मुझे तो विश्वास ही नहीं होता. अभी मेरे, मेरे परिवार और मेरे साथ मिलकर सिंचित राजद परिवार आपको शीघ्र स्वस्थ होकर अपने बीच देखना चाहता है.”

लालू प्रसाद ने लिखा, ‘‘चार दशकों में हमने हर राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि पारिवारिक मामलों में मिल बैठकर ही विचार किया है. आप जल्द स्वस्थ हो, फिर बैठकर बात करेंगे. आप कहीं नहीं जा रहे हैं. समझ लीजिए.” राजद प्रमुख ने सिंह का इस्तीफा अस्वीकार कर दिया, लेकिन दोनों नेताओं, पुराने साथियों को साथ बैठ कर इसपर चर्चा करने का मौका नहीं मिला, क्योंकि रघुवंश बाबू दुनिया छोड़ कर हमेशा के लिए चले गए.

राजद से इस्तीफा देने के बाद रघुवंश प्रसाद सिंह ने 10 सितंबर को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपने संसदीय क्षेत्र वैशाली में परियोजनाओं को लेकर एक पत्र लिखा था, जिसे सिंह ने अपने फेसबुक अकाउंट पर पोस्ट किया था. अपने निधन से ठीक पहले एक बार फिर उन्होंने महात्मा बुद्ध का भिक्षा पात्र काबुल से वापस लाये जाने का अनुरोध किया. रघुवंश के निधन की खबर मिलने पर राजद प्रमुख ने ट्वीट कर कहा, ”प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन, आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूं. दुःखी हूं. बहुत याद आएंगे.”

रघुवंश प्रसाद सिंह ने वैशाली का 2014 तक पांच बार प्रतिनिधित्व किया था और उसे दुनिया का पहला गणतंत्र होने का गौरव प्राप्त है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने बिहार के लिए पेट्रोलियम क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं के उद्घाटन के दौरान सिंह के निधन शोक जताते हुए कहा कि उन्हें गरीबी और गरीबों की समस्याओं की गहरी समझ के साथ एक जमीनी नेता बताया.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि सिंह के निधन से बिहार तथा राष्ट्रीय राजनीति में अपूरणीय क्षति हुई है. उन्होंने कहा कि सिंह जमीन से जुड़े हुए नेता थे और उन्हें गरीबी तथा गरीबों की समस्याओं की गहरी समझ थी. मोदी ने दिवंगत नेता के अंतिम दिनों के दौरान उनके मन में चल रहे ‘मंथन’ की ओर परोक्ष रूप से इशारा करते हुए सिंह का राजद और पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से मोहभंग होने का संकेत दिया.

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प्रधानमंत्री ने कहा, “पिछले कुछ दिनों से उनके भीतर मंथन चल रहा था। वह जिस विचारधारा को मानते थे उसके प्रति ईमानदार थे. हाल ही में वह सुर्खियों में आए थे. जाहिर है कि वह अंदरूनी ऊहापोह में थे क्योंकि अपने पुराने साथियों के पक्ष में रहना उनके लिए संभव नहीं रह गया था. अंत में उन्होंने अपनी भावनाओं को अस्पताल में लिखे पत्र के जरिये व्यक्त किया.”

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मोदी ने कहा, “मैं नीतीश कुमार से अनुरोध करूंगा कि उन विकास परियोजनाओं पर काम किया जाए जिनका जिक्र सिंह ने किया था. राज्य और केंद्र मिलकर उनकी इच्छाओं को पूरा करे.” पेशे से प्रोफेसर रहे सिंह अपनी राजनीतिक जीवन की शुरूआत संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से की थी और 1977 में पहली बार बिहार विधानसभा के सदस्य बने और कई बार बेलसंड विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया और 1996 में लोकसभा के सदस्य के तौर पर अपनी पारी की शुरुआत करने से पहले वह बिहार विधान परिषद के अध्यक्ष भी रहे.

संप्रग-1 में सिंह के केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री के दौरान ही राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) लागू किया गया था. वह खाट पर बैठ कर अपने क्षेत्र के लोगों के साथ चाय की चुस्की लेते हुए बात करना पसंद करते थे और बिहार के किसी गंवई की तरह टिकट का उच्चारण ‘टिकस’ के रूप में करते थे. ऐसा नहीं कि उन्हें पता नहीं था पर वे इसे ऐसे ही उच्चारित करना पसंद करते थे.

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