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बिहार का एक भी जिला अब तक बाल श्रम से मुक्त नहीं, सख्त कानून और निगरानी के बाद भी समस्या बरकरार

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आज वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर डे है. इस दिन को मनाये जाने का उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कोई भी मजदूरी न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाना है, ताकि बच्चे अपने सपनों और बचपन को न खोएं. पढिए बिहार में बाल श्रम पर हिमांशु देव की रिपोर्ट

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Child Labour: सरकार द्वारा सख्त कानून लागू करने और निगरानी के बावजूद राज्य में बाल श्रम रुक नहीं रहा है. अभी भी पटना सहित राज्य के सभी जिलों में छोटे-छोटे बच्चों को काम करते देखा जा सकता है. बच्चों से काम कराना गैर कानूनी है, लेकिन सामाजिक और आर्थिक हालातों के कारण छोटे बच्चे काम करने को विवश हैं. घरों से लेकर होटलों व चाय-नाश्ता की अस्थायी दुकानों से लेकर गैराजों तक में बच्चों से काम लिया जाता है.

इन्होंने प्रभात खबर को सुनायी आपबीती

 1. स्कूल जाता था, तो खूब मार पड़ती थी : हुलेश मांझी
पटना जिले के पलंगा गांव के रहने वाले हुलेश मांझी को बचपन से ही बाल श्रम कराया जा रहा था. जब वे पहली कक्षा में थे, तब जानवरों के बच्चे को चराया करते थे. कई बार जब वे जानवरों को संभाल नहीं पाते थें, तो उनके पिता उनकी खूब पिटाई करते थे. एक दिन गांव के दूसरे बच्चों को उन्होंने स्कूल जाते देखा, तो वे भी उन बच्चों के साथ स्कूल चले गये. जब पिता को इस बात का पता चला, तो वे डांटने लगे – ‘तुम्हें जानवरों को चराने के लिए भेजा जाता है या पढ़ने के लिए स्कूल’? हुलेश कहते हैं मुझे स्कूल जाने के लिए मारा-पीटा जाता था. मेरी मां गंगिया देवी व पिता गनौरी मांझी दोनों अशिक्षित थे. जिसके चलते मुझे भी स्कूल नहीं भेजा जाता था. खेत-खलिहानों में काम करते हुए मैंने काफी मुश्किल से दसवीं की पढ़ाई पूरी कर इंटर में नाम लिखाया. दिनभर काम कर किसी तरह पढ़ाई के लिए पैसे जुटाता था. कई बार रात में घरों के वेस्ट मैटेरियल को ट्रैक्टर में भरकर फेंका करता था, पर कभी हार नहीं माना. आखिरकार सफल हुआ और वर्तमान में मैं पाटलिपुत्र विवि के सीनेट का सदस्य हूं और जनता दल यूनाइटेड में नेता प्रदेश महासचिव का पद मिला है. इससे पहले राज्य महादलित आयोग का अध्यक्ष भी रह चुका हूं.


2. 14 वर्ष की उम्र में चूड़ी फैक्ट्री में लगा दिया : आशीष

आशीष कुमार मांझी गया जिले के शेरघाटी प्रखंड के रहने वाले है. 2014 में उन्हें ट्रैफिकर ने पढ़ाई व पैसे का झांसा देकर 14 वर्ष की उम्र में जयपुर ले गया. घर में बड़े होने के कारण जिम्मेदारी भी थी, इसलिए पिता ने उन्हें जाने दिया. जाने के क्रम में फैमिली को दो हजार रुपये दिया गया. उस वक्त उनके गांव समोद बिगहा के लगभग सात बच्चों को ले जाया गया. जहां उन्हें एक चूड़ी फैक्ट्री में लगा दिया गया. आशीष कहते हैं पहले तो फैक्ट्री में पुराने बच्चों के साथ एक महीना प्रशिक्षण दिया गया. फिर वहां के ऑनर सुबह पांच बजे से रात बारह बजे तक काम लेने लगे. खाना भी अच्छा नहीं मिलता था. उन्हें हैरानी, तो हुई जब पांच-छह साल के बच्चों को भी काम करते देखा. 14 साल की उम्र में करीब एक साल तक काम किया ही था कि एक दिन एक बच्चे के साथ खाना खाने होटल चला गया. उसी जगह थाना भी था. वहां हम लोग किसी तरह गये और सारी बातें बतायी. फिर पुलिस ने वहां छापेमारी की और करीब 46 बच्चों को जयपुर बाल गृह ले जाया गया. फिर गया बाल गृह में भेजा गया. वहां भी तीन से चार महीने रहा. उसी दौरान मेडिकल जांच में फेफड़े में धूल होने की जानकारी मिली. 2016 में मैं अपने घर चला आया. अभी मंडी से मछली लाकर बेचता हूं. जिससे घर चलाता हूं व पढ़ाई का खर्च भी निकलता हूं. इसी साल बिहार बोर्ड से 12वीं कक्षा पास किया हूं.


3. प्रतिदिन 18 से 20 घंटे काम कराया जाता था

गया के कुजाती गांव के रहने वाले नीतीश कुमार कहते हैं, मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी. इसी वजह से एक दिन मेरे माता-पिता किसी दलाल के चक्कर में आ गये. दलाल उन्हें पैसे देकर मुझे जयपुर ले गये और कहा कि प्रतिदिन दो घंटे काम करना होगा, बाकी बचे समय में पढ़ाई करना होगा. लेकिन, जयपुर आने के बाद चूड़ी बनाने का काम दिया गया और प्रतिदिन 18-20 घंटे का काम लिया जाने लगा. जब काम नहीं कर पाता, तो मेरे साथ मारपीट भी की जाती थी. तब किसी तरह वहां की स्थानीय पुलिस को शिकायत की गयी. पुलिस के माध्यम से मैं बिहार लौटा, जहां मेरी मदद सेंटर डायरेक्ट संस्था के सुरेश कुमार ने की. इस वर्ष मैंने दसवीं में बिहार बोर्ड से 361 अंक स्कोर किया है. मैं इंडियन आर्मी में योगदान देते हुए देश की सेवा करना चाहता हूं. कुछ ही दिनों में मैं पटना शिफ्ट हो रहा हूं. इसी वर्ष मैंने 11वीं में दाखिला लिया है.


19 जून को 61 बाल श्रमिक जयपुर से आयेंगे बिहार


प्रदेश के 61 बालकों को बाल श्रम से मुक्त कराया गया है. वह जयपुर के राजकीय व गैर राजकीय गृहों में आवासित थे. इसमें मुजफ्फरपुर के चार, गया जिले के 31, समस्तीपुर के 11, वैशाली के तीन, दरभंगा के छह व कटिहार के छह बच्चे शामिल हैं. जयपुर के जालुपुरा, भट्टा बस्ती, कोतवाली, शास्त्री नगर व मानसरोवर थाना अंतर्गत इलाकों से इन्हें रेस्क्यू किया गया है. ये सभी बच्चे दिसंबर 2023 से यहां काम कर रहे थे. मिली जानकारी के अनुसार 29 बच्चे और भी हैं, जिनका रेस्क्यू के 19 जून के बाद होना है.

हर घंटे तीन बच्चे बन रहे बाल श्रमिक

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के निर्देशानुसार प्रदेश के सभी 38 जिले में एक जून से 30 जून तक बाल श्रमिकों के रेस्क्यू एवं रिहैबिलिटेशन का अभियान चलाया जा रहा है. हालांकि, बाल श्रम को खत्म करने के लिए समाज के प्रत्येक वर्ग को आगे आने की जरूरत है. अपराध अनुसंधान ब्यूरो 2022 के अनुसार भारत में प्रत्येक घंटे 10 बच्चे मिसिंग होते हैं. प्रत्येक दिन आठ बच्चों का ट्रैफिकिंग होता है और तीन बच्चे बाल श्रम में धकेले जाते हैं. कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन के परियोजना के तहत एक अप्रैल 2023 से 31 मार्च 2024 तक भारत में 28767 बच्चों को रेस्क्यू किया गया है.  –  सुधीर कुमार शुक्ला, हाजीपुर


बाल श्रम एक सोची-समझी साजिश है

बाल श्रम एक सोची-समझी साजिश है. इसे अपराध की नजर से देखना होगा. प्रदेश में ज्यादातर मुसहर समाज के लोग बाल श्रम से प्रभावित हैं. लोगों को लगता है कि गरीब का बच्चा है कमायेगा नहीं, तो खायेगा क्या? जब तक इन बातों को हम समझेंगे नहीं, तब तक इसे क्राइम की नजर से नहीं देख पायेंगे. साल 2011 के आंकड़े बताते हैं कि देश में करीब एक करोड़ बाल श्रमिक थे. वहीं, बिहार में करीब 10.5 लाख. गया में 84 हजार. संस्था के माध्यम से 2019 से 2024 के बीच दो हजार से अधिक बच्चों को जयपुर व हैदराबाद चूड़ी फैक्ट्री से रेस्क्यू किया गया है. – सुरेश कुमार, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, सेंटर डायरेक्ट


बिहार में रेस्क्यू किये गये बच्चे

  • 2017-18 : 969
  • 2018-19 : 1045
  • 2019-20 : 750
  • 2020-21 : 466
  • 2022-23 : 462
  • (स्रोत : आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2300)

उम्र के हिसाब से संख्या

  • 5-11  :48 %
  • 12-14  :28 : %
  • 15-17  : 24 : %

बाल श्रम को निर्धारित करने के लिए आयु वर्ग

  • भारत : 5-14 वर्ष की आयु
  • अमेरिका : 12 वर्ष तक
  • संयुक्त राष्ट्र संघ : 18 वर्ष से कम
  • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन :  15 वर्ष तक के बच्चे

प्रदेश में बच्चों की जनसंख्या

  • वर्ष मेल फिमेल कुल
  • 0-6   : 10315   9648 19963
  • 0-14 : 27345   24534 51879
  • 0-18 : 27345   24534 51879
  • (सौ. सेंसस 2011)

वर्ल्ड डे अगेंस्ट चाइल्ड लेबर का इतिहास

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ)  ने बाल श्रम खत्म करने के लिए आवश्यक कार्रवाई के लिए साल 2002 में विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का शुभारंभ किया था. हर किसी के लिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चों से उनके सपने न छीने. उनके हाथों में छाले नहीं, कलम और किताब होनी चाहिए. यह हमारे देश का भविष्य हैं और इन्हें बाल श्रम करने से रोकना हम सबका फर्ज है.

बच्चों से काम कराना दंडनीय अपराध

1986 में बने इस अधिनियम में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से गंभीर काम करवाना दंडनीय है. कम उम्र के बच्चों को 13 पेशा और 57 प्रक्रियाओं में जिन्हें बच्चों के जीवन और समाज के लिए अहितकर माना गया है नियोजन को निषिद्ध बनाता है. इन पेशाओं और प्रक्रियाओं का उल्लेख कानून की अनुसूची में है. इस अधिनियम के तहत 20 हजार रुपए से अधिक अर्थदंड का भी प्रावधान है. संशोधन विधेयक 2016 के तहत सभी व्यवसायों या उद्योगों में 14 साल से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना प्रतिबंधित किया गया है.

बाल श्रम के विरुद्ध आप ऐसे दर्ज कर सकते हैं शिकायत

1- अपने डिस्ट्रिक्ट के श्रम अधीक्षक के पास
2- चाइल्ड लाइन 1098 (टॉल फ्री) पर कॉल कर
3- www.pencil.gov.in लॉगइन कर 

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