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अयोध्या में होगी अब मिथिला मखाना की खेती, जानें यूपी के किसानों कौन देगा प्रशिक्षण

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दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र मिथिला मखाना की खेती करने का गुर यूपी के किसानों को सीखायेगा. इसको लेकर अयोध्या के कृषि विश्वविद्यालय और दरभंगा के दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र के बीच बातचीत चल रही है.

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पटना. मीन पीन पाठीन पुराने। भरि भरि भार कहारन्ह आने॥1॥
मिलन साजु सजि मिलन सिधाए। मंगल मूल सगुन सुभ पाए॥2॥

गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी कालजयी रचना रामचरितमानस में राम के मिथिला से आये उपहारों का कुछ इस प्रकार से वर्णन किया है. मिथिला और अयोध्या के बीच का संबंध राम और सीता काल से ही जुड़ा हुआ है. जल जीव मीन (मछली) की तरह ही जलफल मखान भी मिथिला से अयोध्या उपहार स्वरूप भेजने की परंपरा रही है, लेकिन अब मिथिला मखाना की खेती उत्तर प्रदेश के अयोध्या के अलावा अन्य जिलों में भी होगी. इस योजना पर काम करीब एक वर्ष पूर्व से चल रहा है और अब जाकर इसके सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं.

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खेती के तरीके को भी जानना जरूरी

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में दरभंगा से लाकर जो मिथिला मखान का सामान्य बीज रोपण हुआ था, उस फसल को पानी से निकालते समय खेतीहर मजदूरों को अनुभव की कमी खली और मखाने का कांटा बीज समेटने के दौरान समस्या बनी थी. चूंकि मखाने में कांटा होता है, ऐसे में उसकी खेती के तरीके को भी जानना जरूरी है. ऐसे में मखाने के बीजों की प्रकृति व इसके बीजों को पानी से निकालने के साधन पर शोध किया जा रहा है, ताकि किसान जब मखाना लगाएं तब ज्यादा से ज्यादा उत्पादन पाएं. दरअसल, जल की उपलब्धता के हिसाब से मखाने के प्रभेद तय होते हैं. मिथिला में सामान्य (परंपरागत) मखाने के अलावा ‘स्वर्ण वैदेही’ व ‘सुपर सेलेक्शन वन’ जैसे कुछ वेराइटी काफी उत्पादन देते हैं. वर्तमान में सुपर सेलेक्शन वन में प्रति हेक्टेयर में 30 से 35 क्विंटल गुड़ी का उत्पादन संभव है, जबकि सामान्य व परंपरागत मखाने का उत्पादन 15 से 20 क्विंटल है.

दरभंगा के विज्ञानियों से सीखेंगे खेती के गुर

आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा बिजेंद्र सिंह ने इस संबंध में स्थानीय मीडिया से बात करते हुए कहा है कि दरभंगा स्थित मखाना अनुसंधान केंद्र से बीज मंगाकर इसका प्रत्यक्षण विश्वविद्यालय परिसर में कराया गया था. इस बार इसे विस्तार देकर दो एकड़ में लगाया जा रहा है. इसकी खेती में तकनीकी ज्ञान की जरूरत है. अब मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा के विज्ञानियों से किसानों को मखाना की खेती का प्रशिक्षण दिलाने की तैयारी है. इसे लेकर शीघ्र विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण शिविर आयोजित होगा. इसके बाद मखाने की खेती को अन्य जिलों में विस्तार दिया जाएगा. इसके लिए कार्ययोजना बनायी जा रही है।

अनुसंधान केंद्र आवश्यक सहयोग के लिए तैयार

दरभंगा स्थित राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र के प्रभारी सह प्रधान विज्ञानी इंदुशेखर सिंह ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि मखाना की खेती अयोध्या में शुरू होना गर्व का विषय है. मिथिला का अयोध्या का संबंध जग जाहिर है. यूपी के कई जिलों में मिथिला मखाना के उत्पादन की काफी संभावना है. पिछले साल आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुरोध पर यहां से स्वर्ण वैदेही मखाना का बीज भेजा गया था. इससे पहले हरिद्वार, मऊ व देवरिया में मखाना की खेती के लिए बीज गया है. विश्वविद्यालय के स्तर पर यदि प्रशिक्षण की दिशा में प्रयास किया जा रहा है, तो मखाना अनुसंधान केंद्र के स्तर पर आवश्यक सहयोग रहेगा.

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यूपी सरकार तलाश रही है कई जिलों में संभावना

पिछले वर्ष दरभंगा के राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र से बीज मंगाकर अयोध्या स्थित आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रत्यक्षण किया गया. करीब एक साल बाद उसके परिणाम अच्छे निकले हैं. अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के जलीय क्षेत्र में मिथिला मखान की खेती करने की तैयारी है. पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही ने भी मिथिला मखान की खेती उत्तर प्रदेश में कराने पर जोर दिया था. उन्होंने आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति से इस संबंध में कार्ययोजना बनाने को भी कहा था. पूर्वी चंपारण के पीपराकोठी में 12 फरवरी को आत्मनिर्भर कृषि सह बागवानी विस्तार एवं पशुधन के तहत किसान सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री ने मिथिला मखान की खेती के संबंध में जानकारी ली थी. उन्होंने कहा था कि वो प्रारंभिक तौर पर अयोध्या के अलावा महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर व श्रावस्ती जैसे जिले में मिथिला मखान की खेती की संभावना देख रहे हैं. इन इलाकों में इसके लिए सर्वेक्षण का कार्य किया जा रहा है.

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