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Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में बिहार का बाजार होगा बमबम, अर्थव्यवस्था पर भी दिखेगा असर

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Lok Sabha Election 2024 बिहार में प्रति लोकसभा क्षेत्र इस बार 200 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है. करीब 7.64 करोड़ वोटर हैं और अगर राज्य में कुल आठ हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं, तो प्रति वोटर करीब 1047 रुपये खर्च राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवारों के द्वारा किये जा सकते हैं

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कैलाशपति मिश्र,पटना
Lok Sabha Election 2024 चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 में उम्मीदवारों द्वारा खर्च की अधिकतम सीमा 70 लाख से बढ़ाकर 95 लाख कर दिया है. हालांकि, वास्तविकता में खर्च इससे कई गुना अधिक होता है. आयोग ने इस बार के लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के लिए खर्च की जो सीमा निर्धारित किया है, वह 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में करीब 26 प्रतिशत अधिक है. सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) की रिपोर्ट की मानें तो 2019 में देश भर में प्रति लोकसभा सीट पर औसतन सौ करोड़ से अधिक रुपये खर्च हुए थे. इस साल यह आंकड़ा दो सौ करोड़ के करीब होने की संभावना जतायी जा रही है. इस तरह देखें, तो बिहार की चालीस लोकसभा सीटों पर करीब आठ हजार करोड़ खर्च हो सकते हैं. इसका असर राज्य की अर्थव्यवस्था और राजस्व संग्रह पर भी पड़ना लाजमी है. अर्थशास्त्रियों के अनुसार अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रवाह बढ़ना एक तरह का शुभ संकेत माना जाता है.

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प्रति वोटर करीब 1047 रुपये का खर्च का अनुमान

सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के मुताबिक, 2019 के चुनाव में देशभर में औसतन हर लोकसभा क्षेत्र में करीब 100 करोड़ खर्च किये गये थे. 2024 के चुनाव में यह राशि बढ़कर दो सौ करोड़ यानी कुल 1.20 लाख करोड़ से अधिक खर्च होने का अनुमान है. बिहार में प्रति लोकसभा क्षेत्र इस बार 200 करोड़ रुपये खर्च होने की उम्मीद है. बिहार में करीब 7.64 करोड़ वोटर हैं और अगर राज्य में कुल आठ हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं, तो प्रति वोटर करीब 1047 रुपये खर्च राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवारों के द्वारा किये जा सकते हैं. इसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर कुल 96.8 करोड़ वोटरों को देखते हुए प्रति वोटर लगभग 1250 रुपये खर्च होगा.

2019 की तुलना में 2024 का चुनाव 38% महंगा

लोकसभा चुनाव 2019 की तुलना में 2024 का चुनाव 38 प्रतिशत महंगा होगा. इसका आकलन कर्मचारियों को मिलने वाले महंगाई भत्ते के आधार पर किया गया है. लोकसभा चुनाव 2019 चुनाव में केंद्रीय और राज्य कर्मियों का महंगाई भत्ता करीब 12 फीसदी था, जो जनवरी 2024 में 50 फीसदी हो गया है. इस तरह देखें तो यह चुनाव पिछले की तुलना में 38 प्रतिशत महंगा होगा.

बढ़ेगा रोजगार, राजस्व संग्रह व अर्थव्यवस्था को कैसे मिलेगी मजबूती
चुनाव के दौरान आमतौर पर ट्रांसपोर्टरों, पेट्रोल-डीजल पंप, खाने-पीने का सामान बेचने वालों, होटल-रेस्तरां, प्रिंटिंग प्रेस वालों और संचार साधनों की व्यवस्था करने वालों का कारोबार बढ़ जाता है. इस सेक्टर में होने वाला खर्च बाजार में पहुंचता रहता है. इस तरह के खर्च पर जीएसटी और वैट दोनों से सरकार की आमदनी बढ़ती है. पेट्रोल-डीजल का कारोबार छोड़कर अन्य वस्तुओं पर जीएसटी लगता है, जबकि पेट्रोल-डीजल पर राज्य सरकार वैट लेती है. इस तरह राजस्व संग्रह में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ जाती है. चुनाव जैसे मामले में जहां पैसा संबद्ध लोगों को मिलता है, वहां खर्च भी तेजी से होता है. इस धन का बड़ा हिस्सा सफेद धन नहीं होता है और चंदे वगैरह के रूप में आता है, जो बैंकों में जमा नहीं होता बल्कि सीधे खर्च कर दिया जाता है. खर्च करने की यह प्रक्रिया अर्थव्यवस्था के कई क्षेत्रों में तेजी लाती है.

पिछले चुनाव में भाजपा ने किया था सबसे ज्यादा खर्च
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार 2019 के चुनाव में सात राष्ट्रीय और 25 क्षेत्रीय पार्टियों ने चुनाव आयोग को बताया था कि 75 दिनों में 6405 करोड़ रुपये जुटाये और 2591 करोड़ रुपये खर्च किये. रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में कैश और चेक के जरिये भाजपा ने 4057 करोड़ मिलने की जानकारी दी थी, जबकि कांग्रेस ने 1167 करोड़ जुटाये थे. भाजपा ने कैश और चेक के जरिए सबसे ज्यादा 1141 करोड़ रुपये खर्च किये थे, वहीं कांग्रेस ने 626 करोड़.

कब-कब कितनी रही चुनावी खर्च की सीमा

वर्ष  खर्च की सीमा (लाख रुपये में)
2024  95
2019 70
2014 70
2009  25
2004  25
1999   15

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