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तीखा हमला करते रहे चिराग पर शांत रहे नीतीश कुमार, जानिए बागी नेताओं के कारण लोजपा के बंगले में अब कैसे पड़े अकेले

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रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा पुरी तरह लड़खड़ा गयी है. पार्टी में लगातार दो बगावत होने के बाद अबतक की सबसे बड़ी टूट रविवार को हुई. रामविलास पासवान के भाइ व हाजीपुर के सांसद पशुपति पारस ने अलग मोर्चा खोल दिया है. यह बगावत पार्टी ही नहीं बल्कि अब परिवार की भी बगावत बन चुकी है. लोजपा के कुल छह में 5 सांसद अब चिराग से अलग हो चुके हैं. सभी ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता मान लिया है. नीतीश कुमार के विरोध में बिहार चुनाव में उतरे चिराग पासवान से बांकि नेताओं की नाराजगी काफी पहले ही शुरू हो चुकी थी.

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रामविलास पासवान के निधन के बाद लोजपा पुरी तरह लड़खड़ा गयी है. पार्टी में लगातार दो बगावत होने के बाद अबतक की सबसे बड़ी टूट रविवार को हुई. रामविलास पासवान के भाइ व हाजीपुर के सांसद पशुपति पारस ने अलग मोर्चा खोल दिया है. यह बगावत पार्टी ही नहीं बल्कि अब परिवार की भी बगावत बन चुकी है. लोजपा के कुल छह में 5 सांसद अब चिराग से अलग हो चुके हैं. सभी ने पशुपति कुमार पारस को अपना नेता मान लिया है. नीतीश कुमार के विरोध में बिहार चुनाव में उतरे चिराग पासवान से बांकि नेताओं की नाराजगी काफी पहले ही शुरू हो चुकी थी.

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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में चिराग पासवान ने नीतीश कुमार के खिलाफ सरेआम मोर्चा खोला था. वो लगातार सीएम नीतीश कुमार के उपर हमला करते रहे. अपनी तमाम सभाओं में उन्होंने नीतीश कुमार के नेतृत्व और जदयू के खिलाफ हमला बोला. यहां तक की उन्होंने सीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट जल नल योजना तक को जरिया बनाकर सीमए पर निशाना साधा था. लेकिन नीतीश कुमार ने इसपर कोई भी तीखा रिएक्शन नहीं दिया था. वो इस मामले को किनारे रखे रहे. लेकिन अब इस टूट में जदयू की भूमिका भी सामने आ रही है. पटना में दो दिन पहले जदयू सांसद ललन सिंह से पशुपति कुमार पारस की मुलाकात भी हुई थी. जदयू के एक और नेता काफी पहले से पशुपति पारस के संपर्क में थे.

बताया जाता है कि चिराग के इस रवैये से पशुपति पारस समेत अन्य नेता भी नाखुश थे. पूरे चुनाव में लोजपा के तरफ से वो तमाम नेता उस तरह सक्रिय नहीं दिखे जैसा रामविलास पासवान के नेतृत्व वाले लोजपा में वो दिखते रहे थे.वहीं परिवार में भी बगावत के सुर उठने लगे थे. रामविलास पासवान जिस तरह अपने भाइ को लेकर चलते थे अब वो दौर समाप्त हो चुका था. चिराग के फैसले को एकतरफा बताया जाता रहा.

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रामविलास पासवान के किसी फैसले से अगर अन्य नेताओं में नाराजगी होती थी तो वो उन्हें समझा-बुझाकर अपने साथ खड़े कर लेते थे. लेकिन इसबार जब रामविलास पासवान नहीं हैं तो इस तरह की गुंइजाइस बेहद कम है. पशुपति पारस ने भी स्पस्ट कह दिया है कि ये फैसला मजबूरन लिया गया और बड़े साहब (रामविलास पासवान) की आत्मा को इससे सुकुन मिलेगा. वो जिस तरह पार्टी चलाना चाहते थे वैसे ही अब लोजपा चलेगी. उन्होंने नीतीश कुमार को विकास पुरूष बताया और कहा बिहार में हम एनडीए के साथ रहेंगे.

बता दें कि नीतीश कुमार के विरोध में व एनडीए से अलग होकर जब चिराग विधानसभा चुनाव के मैदान में लोजपा को लेकर उतरे उस समय पार्टी के अंदर बगावत के बीज उगने शुरू हो चुके थे. नीतीश कुमार और पशुपति पारस के संबंध पहले भी मधुर रहे. जब महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जदयू एनडीए में शामिल हुई तो पशुपति कुमार पारस को तब भी मंत्री बनाया गया था. जबकि वो विधायक नहीं थे. उन्हें विधान परिषद में जगह देकर मंत्री बनाया गया था.

बिहार विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद जब परिणाम सामने आया तो जदयू को कई सीटों पर नुकसान हुआ. वहीं लोजपा के तरफ से एक विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इस बीच चिराग का तेवर पहले की तरह ही कायम रखा. पार्टी के अंदर कलह शुरू हो चुका था जो कई बार सामने आया भी लेकिन उसपर पर्दा ढका जाता रहा.

हाल में ही पहली टूट तब हुइ थी जब बिहार विधान परिषद में लोजपा की एकमात्र विधान पार्षद नूतन सिंह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई थीं. उसके बाद लोजपा के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह ने जदयू का दामन थाम लिया था. लोजपा को बेगूसराय जिले के मटिहानी विधानसभा में ही जीत का स्वाद चखने को मिला था. इसके बाद बिहार के दोनों सदनों से लोजपा का नाम खत्म हो चुका था और अब सभी सांसदों ने भी चिराग को अकेला छोड़ दिया है.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

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