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बिहार रेजिमेंट के 10 हजार सैनिकों ने लड़ा था युद्ध, दिया था अदम्य साहस का परिचय

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करगिल में 1999 के वसंत के दौरान ही आतंकियों के वेश में पाकिस्तानी फौजों ने भारतीय सीमा में दाखिल होकर करगिलकी ऊंची पहाड़ियों पर अपने ठिकाने बना लिये थे.

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रांची : भारतीय सेना द्वारा युद्ध में शानदार विजय हासिल करने में बिहार रेजिमेंट की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही. उसकी पहली बटालियन ने अदम्य साहस और वीरता का परिचय दिया था. इस रेजिमेंट के 10 हजार सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया और अति दुर्गम परिस्थितियों में बटालिक सेक्टर में दुश्मनों के कब्जे से पोस्टों को मुक्त कराया…

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रेजिमेंट को जुबर पहाड़ी पर कब्जे की दी गयी थी जिम्मेदारी

करगिल में 1999 के वसंत के दौरान ही आतंकियों के वेश में पाकिस्तानी फौजों ने भारतीय सीमा में दाखिल होकर करगिलकी ऊंची पहाड़ियों पर अपने ठिकाने बना लिये थे. उनका उद्देश्य इस क्षेत्र के सड़क मार्ग को काटकर इसे स्थायी रूप से अपने कब्जे में ले लेना था. भारतीय फौज को करगिल की पहाड़ियों पर दुश्मनों के कब्जे की जानकारी 17 मई 1999 को हुई. उन दिनों बिहार रेजिमेंट की प्रथम बटालियन करगिल जिले के बटालिक सेक्टर में पहले से ही तैनात थी. लिहाजा बिहार रेजिमेंट को जुबर पहाड़ी को अपने कब्जे में लेने की जिम्मेदारी सौंपी गयी.

रॉकेट लांचर से मेजर सरावनन ने दुश्मनों पर बोला हमला

21 मई को मेजर एम सरावनन अपनी टुकड़ी के साथ रेकी पर निकले थे. करीब 14,229 फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मनों ने फायरिग शुरू कर दी. मेजर सरावनन ने 90 एमएम राकेट लांचर अपने कंधे पर उठाकर दुश्मनों पर हमला बोल दिया. पाकिस्तानी दुश्मनों को इससे भारी नुकसान हुआ. पहले ही हमले में पाक के दो घुसपैठिए मारे गये. यहीं से करगिल युद्ध की शुरूआत हो गयी. अग्रिम पंक्ति में युद्ध के दौरान नायक गणेश प्रसाद यादव, सिपाही प्रमोद कुमार, ओम प्रकाश गुप्ता और हरदेव सिंह शहीद होते गये. नायक शत्रुघ्न सिंह को गोली लग चुकी थी. बिहार रेजीमेंट के जांबाज सैनिकों ने एक जुलाई को जुब्बार पहाड़ी पर विजय प्राप्त कर कर बिहार रेजिमेंट की वीरता का ध्वज लहरा दिया.

…शहीद होने के पहले कई घुसपैठियों को मार गिराया

नवगछिया (भागलपुर) से रसीद आलम
भागलपुर जिले के नवगछिया अनुमंडल के गोपालपुर प्रखंड के तिरासी निवासी हवलदार रतन सिंह दो जुलाई, 1999 को करगिलयुद्ध में शहीद हुए थे. 15 अप्रैल, 1959 को जन्मे रतन सिंह 28 फरवरी, 1979 को फौज में भर्ती हुए थे. बिहार रेजिमेंट से बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त कर मुख्यालय 42 पैदल बिग्रेड और 46 बंगाल बटालियन एनसीसी में पदस्थापित रहे. रतन सिंह के बड़े बेटे रूपेश कुमार बताते हैं-‘पिता जी की शहादत के वक्त मेरी उम्र 20 वर्ष थी. छोटा भाई मंजेश कुमार 12 साल का था. बाद में मैं गांव में ही शिक्षक बन गया.’ शहीद रतन सिंह की पत्नी मीना देवी के नाम से पूर्णिया में एचपी गैस एजेंसी आवंटित की गयी है. करगिल युद्ध के दौरान 29 जून, 1999 की मध्य रात्रि में बिहार रेजिमेंट को 16,470 फीट की ऊंचाई पर जुबेर टॉप नामक चौकी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी मिली. इसमें हवलदार रतन सिंह भी शामिल थे. दो जुलाई तक चली भीषण लड़ाई में दो पाकिस्तानी कमांडो और कई पाकिस्तानी सैनिक मारे गये थे. बिहार रेजिमेंट के 10 सैनिक घायल हुए थे. हवलदार रतन सिंह दुश्मनों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गये. शहीद होने से पहले उन्होंने कई दुश्मनों को मार गिराया था.

18 हजार फीट पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे विद्यानंद

दीपक/कोईलवर (भोजपुर)
भोजपुर वीरों कि धरती है. इसे समय समय पर यहां के जांबाजों ने सिद्ध कर के दिखाया है. आज करगिल विजय दिवस पर भारत-पाक युद्ध के दौरान 1999 में शहीद हुए विद्यानंद सिंह को उनकी जन्मभूमि पूरे शिद्दत से याद कर रही है. 1999 में भारत-पाक के बीच करगिलमें छिड़े युद्ध में जब भारत माता के दुश्मनों के छक्के छुड़ाने की बारी आयी, तो विद्यानंद सिंह अपने जोश, जज्बे और साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानियों से लोहा लेते हुए 7 जून 1999 को देश के नाम कुर्बान हो गये. वे 18 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित बटालिक सेक्टर की एक चोटी को मुक्त कराने गये थे. इस दौरान उन्होंने अपने एलएमजी से कई दुश्मनों को ढेर कर दिया था. विद्यानंद सिंह का जन्म 12 जनवरी 1966 को भोजपुर जिले के संदेश थाना क्षेत्र के एक छोटे से गांव पनपुरा मे हुआ था.

विशुनी राय की शहादत पर हर किसी को नाज

पप्पू मिश्रा, मकेर (सारण). करगिलयुद्ध में वीर सपूतों की शहादत को याद करने के दौरान सारण के 35 वर्षीय विशुनी राय की शहादत को भी गर्व से याद किया जाता है. उन्होंने वर्ष 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए करगिल युद्ध के दौरान 14 जून 1999 को अपनी जान गंवायी थी. सारण जिले के मकेर प्रखंड के बथुई गांव में जन्मे विशुनी की जब शहादत हुई थी उस समय उनकी पत्नी सुशीला देवी की गोद में दो माह की बेटी थी. वहीं, पांच साल के बेटे को शहादत शब्द का ज्ञान नहीं था. मकेर निवासी डॉक्टर सुचिंद्र साह और बनौता निवासी संतोष कुमार साह बताते हैं कि जिस समय करगिल युद्ध के दौरान विशुनी की शहादत की खबर उनके गांव पहुंची थी तो पूरा इलाका शोक में डूब गया था.

देश की रक्षा के लिए वीर हरदेव ने जान दे दी

बिनोद यादव, एकंगरसराय (नालंदा) : एकंगरसराय प्रखंड के कुकुरबर गांव निवासी वीर सपूत हरदेव प्रसाद को याद कर हर किसी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है. करगिलयुद्ध में हरदेव प्रसाद ने 12 जून 1999 को अपनी शहादत दी थी. उनका जन्म 31 मई 1970 को हुआ था. उनके पिता शिवनारायण महतो एक साधारण किसान थे. हरदेव प्रसाद 1988 में बिहार रेजिमेंट सेंटर दानापुर में प्रथम बटालियन के लिए चयनित किये गये थे. हरदेव ने बाद में असम, कूच बिहार, गुवाहाटी और दिल्ली में भी अपनी सेवा दी थी. 1994 के सोमालिया युद्ध में उन्हें साहसी कार्यों के लिए पुरस्कृत किया गया था.

अकेले तीन दुश्मनों को मार गिराया

रंगरा (भागलपुर) से कश्यप समर्थ भागलपुर जिला के रंगरा प्रखंड स्थित मदरौनी गांव के प्रभाकर सिंह ने 23 वर्ष की उम्र में देश की अस्मिता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी. प्रभाकर सिंह ने गोली लगने के बाद भी अकेले तीन दुश्मनों को मार गिराया था. ऑपरेशन करगिल विजय में कम उम्र में शहीद हुए वीर योद्धाओं में गनर प्रभाकर सिंह का भी नाम शामिल है. 25 जुलाई, 1976 को इनका जन्म हुआ था. वर्ष 1995 में सेना में भर्ती हुए. चार साल बाद ही करगिल युद्ध हो गया. 11 जुलाई, 1999 को उनकी शहादत हुई. प्रभाकर सिंह के जन्म के एक साल बाद ही 28 नवंबर, 1977 को उनके पिता परमानंद सिंह का निधन हो गया था. मां शांति देवी ने अपने दोनों पुत्रों को पढ़ाया-लिखाया. 1992 में प्रभाकर ने मैट्रिक और 1994 में इंटर की परीक्षा पास की. इसी बीच सहारा इंडिया की मधेपुरा स्थित शाखा में नौकरी मिली. लेकिन, उनके दिल में देश प्रेम का जज्बा हिलोरें मार रहा था. कुछ दिनों बाद ही सहारा इंडिया की नौकरी छोड़ सेना में भर्ती हो गये. उनकी नियुक्ति 333 मिसाइल ग्रुप आर्टिलरी सिकंदराबाद में हुई. 19 अप्रैल, 1998 को छठी राष्ट्रीय राइफल बटालियन में प्रतिनियुक्त कर करगिल भेजा गया.

…मेजर का पार्थिव शरीर लाने के लिए घुस गये थे दुश्मनों की मांद में

सुजीत कुमार सिंह, औरंगाबाद:
26 जुलाई वह तिथि है, जब देश की सरहद की रक्षा करने वाले वीर जवानों ने करगिलमें पाकिस्तान को धूल चटा देश को जीत का तोहफा दिया था. इस भीषण युद्ध में हिंदुस्तान के कई योद्धाओं ने अपनी शहादत भी दी थी. इन्हीं में शुमार हैं औरंगाबाद के शिव शंकर गुप्ता. छह जून, 1999 को जब उनकी शहादत की खबर जिले में पहुंची, तो हर किसी का सीना फक्र से ऊंचा हो गया था. रफीगंज प्रखंड के बगड़ा बंचर गांव निवासी नंदलाल गुप्ता और पूनम देवी के बेटे शिव शंकर प्रसाद गुप्ता बिहार रेजिमेंट की पहली बटालियन में सिपाही थे. बहाली के ढाई साल ही हुए थे कि सरहद से उन्हें बुलावा आ गया. उस वक्त उनकी बेटी निशा कुमारी एक वर्ष की थी और बेटा राहुल मां के गर्भ में था. करगिलयुद्ध पूरे उफान पर था. युद्ध में उनके कंपनी कमांडर मेजर एम सरवनन और सेक्शन कमांडर नायक गणेश प्रसाद यादव शहीद हो चुके थे. उनके पार्थिव शरीर दुश्मनों के दायरे में थे. शिव शंकर साथी सैनिकों के साथ चार जून की सुबह शव लाने के लिए आगे बढ़े और 14230 फुट ऊंची पथरीली व बर्फीली पहाड़ी पर पहुंच गये. वहां कंपनी कमांडर का पार्थिव शरीर पड़ा हुआ था. रेंगते हुए वे शव के पास पड़े हथियार और गोला-बारूद नीचे ले आये. पार्थिव शरीर लाने के लिए दोबारा ऊपर चढ़े और उसे लेकर 50 मीटर की ही दूरी तय की थी कि उन्हें दुश्मन की गोली लगी.

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