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बाढ़ के पानी में दौड़ रही राजधानी-जनता एक्सप्रेस, नाव में यात्रा के लिए रेलवे की तरह लेनी पड़ती है वेटिंग टिकट

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indian railways/flood latest update: यहां नाव का परिचालन स्थायी रूप से होता है. दो तरह के नाव चलते हैं. एक मोटर चालित नाव का परिचालन होता है तो दूसरी लग्गा के सहारे खे जाती हैं. मोटर चालित नाव इस इलाके के लिए एक्सप्रेस है. नाविकों ने अपनी-अपनी नाव के नाम भी कुछ इसी तरह के लिख रखे हैं.

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संतोष पोद्दार: नदियों की गोद में बसे दरभंगा के कुशेश्वरस्थान के इलाके की जिंदगी आज भी नाव पर हिचकोले खा रही है. बुलेट ट्रेन की सवारी का सपना भी लोग नहीं देखते. यहां नाव ही एक्सप्रेस है और नाव ही पैसेंजर. अगर तेज रफ्तार में सफर करनी होती है, तो लोग एक्सप्रेस नाव की सवारी करते हैं और यदि सामान्य नाव से यात्रा करते हैं तो गंतव्य तक जाने में घंटों लग जाते हैं. इतना ही नहीं बस, टेंपो, टैक्सी की तरह नाव परिचालन के लिए भी नंबरिंग सिस्टम है. जो नाव पहले आती है, वही पहले खुलती है और नाविकों को इसके लिए अलग से राशि भी देनी पड़ती है.

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कोसी व कमला की धारा के बीच दर्जनों उपधाराओं की वजह से ही इस क्षेत्र को बाढ़ की राजधानी कहा जाता है. पुल व सड़क मार्ग नहीं होने की वजह से तकरीबन सवा लाख की आबादी प्रत्येक वर्ष बाढ़ की कहर झेलती है. कदम-कदम पर गांव-टोले के बीच से बहती नदियों ने रफ्तार पर पूरी तरह ब्रेक लगा रखी है. गैजोरी, उजवा-सिमरटोका, झाझा, बुढ़िया-सुकरासी, कोदरा, गोलमा, अरथुआ, महादेवमठ, कुंज भवन, हरनाही, उसरी सहित कई गांवों तक जाने के लिए पुल-पुलिया तो दूर सड़क का भी आज तक निर्माण नहीं हो सका है. नदियों से घिरे इन गांवों तक जाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है.

कई इलाके ऐसे हैं, जहां सालोभर क्षेत्रवासियों को नाव से ही आवागमन करना पड़ता है. गैजोड़ी, कोला, उजुआ-सिमरटोका, तिलकेश्वर, बुढ़िया-सुखरासी, झाझा समेत दर्जनभर गांव व टोले-मोहल्ले के लोग नाव से नदी पार करते हैं, तब जाकर सड़क का दीदार होता है. आर्थिक रूप से संपन्न लोग निजी नाव रखते हैं, लेकिन, आम गरीब को भाड़े के नाव से ही आवागमन करना पड़ता है. केवटगामा, धबौलिया, इटहर, बिसुनिया, उसरी, महिसौत, सुघराइन, तिलकेश्वर सहित दर्जनों गांव का प्रखंड मुख्यालय से प्रत्येक साल सड़क संपर्क भंग हो जाता है. इस बार भी भंग है. इस बार भी पूरा इलाका जलमग्न है. नाव ही एक मात्र सहारा है.

इसलिए यहां नाव का परिचालन स्थायी रूप से होता है. दो तरह के नाव चलते हैं. एक मोटर चालित नाव का परिचालन होता है तो दूसरी लग्गा के सहारे खे जाती हैं. मोटर चालित नाव इस इलाके के लिए एक्सप्रेस है. नाविकों ने अपनी-अपनी नाव के नाम भी कुछ इसी तरह के लिख रखे हैं. कोई जनसेवा एक्सप्रेस चलाता है, तो कोई जनता एक्सप्रेस. किसी ने अपनी नाव का नाम बिहार एक्सप्रेस रखा है तो किसी के नाव का नाम राजधानी एक्सप्रेस है

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जल्द गणतव्य तक पहुंचने के लिए क्षेत्रवासियों को इसी एक्सप्रेस नाव का सहारा लेना पड़ता है, जिसके लिए अधिक किराया भी चुकाना पड़ता है. इटहर के देवेन्द्र राय, बहेड़ा के राजकुमार यादव, पकड़िया के रोहन राय, बिशुनिया के ब्रजकिशोर राय, संतोष यादव आदि बताते हैं कि किराया में लगभग दोगुना का फर्क होता है. कुशेश्वरस्थान उत्तरी पंचायत के बहेड़ा टोला जाने के लिए एक्सप्रेस नाव यानी मोटर चालित नाव का किराया जहां 40 रुपए लगता है, वहीं लग्गा से परिचालित नाव के लिए 20 से 25 रुपए देने पड़ते हैं. इसी तरह कुशेश्वरस्थान से इटहर, चौकिया से तटबंध पर जाने के लिए एक्सप्रेस नाव का भाड़ा जहां 80 से 90 रुपए लगता है, वहीं लग्गा वाली नाव के लिए 30 से 40 रुपए देने पड़ते हैं.

घाटों पर नाविक संबंधित क्षेत्र का नाम लेकर बस व टेेंपो स्टैंड की तरह सवारियों को अवाज लगाते रहते हैं. स्थानीय बाजार के तारणी घाट, हाइस्कूल घाट समेत अन्य घाटों पर कमला बलान पश्चिमी तटबंध समेत अन्य गांव जाने के लिए नाव का खास नंबर लेने के लिए नाविक को इंतजार भी करना पड़ता है. भाड़े पर नाव चला रहे नाविक को नंबर से चलना पड़ता है. इसमें जो पहले आये, वे ही आगे रहते हैं. इसी तरह नंबरवाइज नाव खोलनी पड़ती है. बहेड़ा के नाविक सोमन यादव, विनोद यादव, गोपाल चौपाल, गौरीशंकर यादव आदि ने बताया कि बस स्टैंड की तरह ही नाव लगाने के लिए दो सौ रुपए देने पड़ते हैं. नम्बर आने पर नाव खोलनी पड़ती है

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