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बिहार में सैकड़ों लोग कैसे हुए डिजिटल अरेस्ट?जानिए ठगों के फोन आने पर आपको कैसे रहना है अलर्ट…

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बिहार में डिजिटल अरेस्ट की घटनाओं में इजाफा हुआ है. इओयू ने लोगों को सतर्क किया है और बताया है कि साइबर ठगों के कॉल आने पर आपको क्या करना है.

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बिहार में साइबर अपराध के रूप में डिजिटल अरेस्ट की घटना बढ़ी है. जिसे देखते हुए बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई (इओयू) ने आम लोगों को सचेत किया है. इओयू ने स्पष्ट रूप से कहा है कि कोई भी सरकारी एजेंसी आधिकारिक संचार के लिए वाट्सअप या स्काइप जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं करती है. ना ही उनके द्वारा पहचान पत्र, एफआइआर की कॉपी या गिरफ्तारी वारंट ऑनलाइन साझा किया जाता है. अगर किसी भी व्यक्ति को ऐसे कॉल्स आते हैं तो घबराएं नहीं. पहले सूचनाओं का सत्यापन करें और संदेहास्पद लगने पर तत्काल हेल्पलाइन नंबर 1930 पर कॉल कर सूचित कर अपने नजदीकी थाना या साइबर थाना में लिखित शिकायत दर्ज कराएं. बता दें कि पीएम नरेंद्र मोदी भी डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जाहिर करते हुए लोगों को सतर्क कर चुके हैं.

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अबतक 300 शिकायतें आयीं सामने, 10 करोड़ की ठगी

इओयू के डीआइजी मानवजीत सिंह ढिल्लो ने बताया कि हाल के महीनों में डिजिटल अरेस्ट से संबंधित साइबर फ्रॉड के मामले अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं. अब तक डिजिटल अरेस्ट से संबंधित 300 शिकायतें नेशनल क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल से मिली हैं, जिनमें करीब 10 करोड़ की राशि की ठगी दर्ज की गयी है. समय पर सूचना मिलने पर करीब 1.5 करोड़ रुपये होल्ड भी कराया गया. उन्होंने बताया कि इस संबंध में जागरूकता को लेकर सभी जिलों के साइबर थानों एवं अन्य संस्थानों से समन्वय बना कर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है.

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क्या है डिजिटल अरेस्ट? कैसे इस जाल में फंसाते हैं ठग…

डिजिटल अरेस्ट मामलों में अपराधी खुद को पुलिस, सीबीआइ, इन्कम टैक्स अधिकारी या सीमा शुल्क एजेंट के रूप में पेश करते हैं. फोन कॉल के माध्यम से पीड़ितों से संपर्क करके उनको पैसों के फ्रॉड मामलों में, टैक्स चोरी या अन्य कानूनी उल्लंघनों का हवाला देते हुए डिजिटल गिरफ्तारी वारंट की धमकी देते हैं. धोखेबाज पीड़ितों को विश्वास दिलाने और कॉल को सही दिखाने के लिए पुलिस स्टेशन जैसा सेटअप बनाते हैं. उसके बाद व्हाट्सएप, स्काइप आदि प्लेटफॉर्म पर वीडियो कॉल के माध्यम से जुड़कर उनको जेल जाने या निकट संबंधियों की जान पर खतरा बताते हैं. इससे बचने के लिए यूपीआइ के माध्यम से किसी खाते में बड़ी रकम भेजने का दबाव बनाते हैं. एक बार जब पीड़ित उनकी बात मान लेते हैं और भुगतान कर देते हैं, तो घोटालेबाज गायब हो जाते हैं.

बचाव को लेकर इन बातों का ध्यान रखें :

  • याद रखें कि पुलिस, सीबीआइ, बैंक या अन्य सरकार एजेंसियां आपसे भुगतान या बैंकिंग डिटेल नहीं मांगती. ऐसे कॉल या मैसेज का कोई जवाब नहीं दें.
  • सरकारी एजेंसियां आधिकारिक संचार के लिए व्हाट्सएप या स्काइप जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग नहीं करती हैं.
  • पुलिस अधिकारी द्वारा कभी भी वॉयस या वीडियो कॉल पर बयान दर्ज नहीं किया जाता है.
  • पुलिस द्वारा कॉल करने के दौरान अन्य लोगों से बातचीत करने से रोका या डराया-धमकाया नहीं जाता है.
  • साइबर अपराधियों द्वारा अपनाई गई ‘दबाव की रणनीति’ के आगे न झुकें. ऐसे कॉल आने पर घबराएं नहीं, शांत रहने की कोशिश करें.
  • किसी भी अनजान नंबर से आने वाले कॉल या मैसेज का तुरंत जवाब न दें. संदेह होने पर संबंधित एजेंसी से सीधे संपर्क कर पहचान सत्यापित करें.
  • व्यक्तिगत जानकारी साझा करने से बचें और कभी भी फोन या वीडियो कॉल पर संवेदनशील व्यक्तिगत या वित्तीय विवरण न बताएं.

शिकार होने पर क्या करें ?

  • सबसे पहले अपने बैंक को रिपोर्ट करके अपना खाता फ्रीज कराएं
  • राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (cybercrime.gov.in) या टॉल फ्री नंबर 1930 पर शिकायत दर्ज करें.
  • कॉल डिटेल, लेन-देन डिटेल, मैसेज आदि साक्ष्यों को सहेज कर रखें.

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