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लॉकडाउन/कोरोना संकट : बिखरे सपने, अनिश्चित भविष्य के बीच बिहार लौट रहे प्रवासी मजदूर, जानिए अब क्या हैं विकल्प!

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वैश्विक महामारी से निपटने के लिए देश में लागू किये गये लॉकडाउन के कारण रोजगार छिनने और सपने बिखरने के बाद प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों से अपने गृह राज्य बिहार लौट रहे हैं. हालांकि, उन्हें नहीं पता कि अब उनके भविष्य का क्या होगा. मजदूर 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान और भीषण लू से जूझते हुए सैकड़ों मील की दूरी तय कर रहे हैं. कोई पैदल लौट रहा है, तो कोई साइकिल से और कोई किसी तरह जुगाड़ कर किसी वाहन के माध्यम से पहुंच रहा है.

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पटना : वैश्विक महामारी से निपटने के लिए देश में लागू किये गये लॉकडाउन के कारण रोजगार छिनने और सपने बिखरने के बाद प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और राजस्थान जैसे राज्यों से अपने गृह राज्य बिहार लौट रहे हैं. हालांकि, उन्हें नहीं पता कि अब उनके भविष्य का क्या होगा. मजदूर 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक के तापमान और भीषण लू से जूझते हुए सैकड़ों मील की दूरी तय कर रहे हैं. कोई पैदल लौट रहा है, तो कोई साइकिल से और कोई किसी तरह जुगाड़ कर किसी वाहन के माध्यम से पहुंच रहा है.

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गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले बिहार में उनका भविष्य अनिश्चित है, लेकिन कोरोना वायरस महामारी से देश में जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसके चलते उनके पास घर लौटने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है. बिहार में औरंगाबाद जिले के सोनात्हू तथा अन्य गांवों में हर रोज बड़ी संख्या में मजदूर लौटकर अपने घर आ रहे हैं. इनमें से कोई सूरत से लौटा है, तो कोई मुंबई से. कोई दिल्ली से आया है तो कोई जयपुर या चेन्नई से.

लॉकडाउन के कारण अन्य राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूर वापस आने के साथ ही सीधे अपने घर नहीं जा सकते और उन्हें महामारी से संबंधित सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार स्कूलों तथा अन्य इमारतों में संस्थागत पृथक-वास में रहना पड़ रहा है. अगले 21 दिन तक यही इमारतें उनका घर हैं. सोनात्हू ग्राम पंचायत की प्रधान पूनम देवी ने पीटीआई-भाषा को फोन पर बताया कि पंचायत क्षेत्र में 400 से अधिक प्रवासी मजदूर लौटकर आ चुके हैं. यह ग्राम क्षेत्र राज्य की राजधानी पटना से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर है, जो कुछ साल पहले तक नक्सल प्रभावित क्षेत्र था. पूनम देवी ने कहा कि वापस लौटे हर मजदूर के पास बताने के लिए अपनी कहानी है कि वह किस तरह वापस लौटा है.

चेन्नई से लौटे धमनी गांव निवासी मोती कुमार ने कहा, ‘‘कोरोना वायरस ने लोगों को नारकीय अनुभव देकर स्वर्ग (घर) लौटने को मजबूर कर दिया है.” मोती कुमार तथा 11 अन्य लोगों ने 13 मई को चेन्नई से अपनी भयावह यात्रा की शुरुआत की थी और अपने-अपने घर पहुंचने में उन्हें लगभग 11 दिन लगे. बिहार के ये लोग चेन्नई में एक कारखाने में काम करते थे जहां कारों के लिए रबड़ की चीजें बनाई जाती हैं.

पृथक-वास केंद्र में रह रहे मोती कुमार ने कहा, ‘‘हमारी नौकरी चली जाने से हमारे पास कमरे का किराया देने के लिए भी पैसे नहीं बचे. हमने बिहार की ओर चलना शुरू कर दिया. लेकिन, पुलिस ने तमिलनाडु-आंध्र प्रदेश सीमा से हमें वापस भेज दिया.” उन्होंने कहा, ‘‘हम किसी भी सूरत में घर पहुंचना चाहते थे. इसलिए हमने जंगल का रास्ता चुना और एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंच गये.” कुमार के समूह ने झारखंड पहुंचने के लिए ट्रकों का सहारा लिया. वहां से उन्होंने फिर पैदल यात्रा शुरू की और अंतत: वे अपने गांव पहुंच गये.

औरंगाबाद जिले के दाउद नगर से ताल्लुक रखने वाले अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता सत्येंद्र कुमार ने बताया कि 16 लोग हाल में दिल्ली से एक हजार किलोमीटर से अधिक की दूरी साइकिल से तय कर अपने-अपने घर पहुंचे हैं. उन्होंने बताया कि दाउद नगर अनुमंडल में बाहर से लौटे कम से कम 1,200 लोगों को पृथक-वास केंद्रों में रखा गया है. कुमार ने कहा कुछ लोग गुजरात में कपड़ा मिलों में काम करते थे तो अन्य जयपुर में कालीन बनाने के काम से जुड़े थे. कुछ लोग दिल्ली में राजमिस्त्री के रूप में काम करते थे तो कुछ केबल बनाने वाली इकाइयों में काम करते थे.

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भूख-प्यास जैसे कष्टों को सहन कर वापस लौटे प्रवासी मजदूरों की कहानी बहुत मार्मिक है और इनका भविष्य अब अनिश्चित है. पूनम देवी ने कहा कि मनरेगा और कृषि गतिविधि जैसे कार्यों में पैसा कम मिलता है और यही गतिविधियां अब एकमात्र विकल्प हैं. लाखों प्रवासी मजदूर बिहार लौटे हैं और अभी अनेक मजदूर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लौटने वाले हैं.

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