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बिहार के सभी सहकारी बैंकों के बोर्ड किए गए भंग, नए सिरे से जल्द होगा पुनर्गठन

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राज्य में सभी सहकारी बैंकों में नए बोर्ड का गठन नए नियम से कराने की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. नबार्ड ने इस संबंध में गाइडलाइन जारी कर दी है. बोर्ड के पुनर्गठन के बाद राज्य में सहकारी बैंकों के काम में तेजी आयेगी.

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राज्य में सभी सहकारी बैंकों में नए बोर्ड का गठन नए नियम से कराने की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. नबार्ड ने इस संबंध में गाइडलाइन जारी कर दी है. बोर्ड के पुनर्गठन के बाद राज्य में सहकारी बैंकों के काम में तेजी आयेगी.

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राज्य की 23 सहकारी बैंकों में सुपौल को छोड़कर सभी बैंकों में चयनित बोर्ड कार्यरत हैं. हालांकि नये बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, 2020 के कारण बिहार के जिला एवं राज्य कॉपरेटिव बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के गठन को लेकर संशय की स्थिति है.

बिहार सहकारिता अधिनियम के अंतर्गत पैक्स अध्यक्ष जिला सहकारिता बैंक के डायरेक्टर का चुनाव करते हैं. जिला बैंक के अध्यक्ष राज्य सहकारिता बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर का चुनाव करते हैं. अधिकतर प्रारंभिक सहकारी संस्थाओं के चुने गये व्यक्ति ही चुनाव लड़ते हैं.

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ( नाबार्ड) ने सहकारिता विभाग को ‘बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020’ के तहत निदेशक मंडल का चयन कराने को पत्र लिखा है. सहकारी बैंकों की कार्यप्रणाली में सुधार के लिए इस नए विधेयक को लागू कराया जाना है.

इस विधेयक के लागू होने के बाद सहकारी बैंकों के निदेशक मंडल में शामिल 51 फीसदी सदस्यों के पास बैंकिंग, विधि, अर्थशास्त्र आदि क्षेत्रों में विशेष अनुभव होगा. इससे सहकारी बैंक शेयर और ऋण-पत्र के माध्यम से अधिक पूंजी की व्यवस्था होगी

नये नियमों के तहत सहकारी बैंकों में निदेशक मंडल में 51 फीसदी पेशेवर होंगे. दो बार से अधिक कोई चुना नहीं जायेगा. बोर्ड का कार्यकाल भी पांच साल की जगह चार साल का होगा. इससे वर्तमान में निदेशक मंडल में शामिल अधिकतर लोगों को दोबारा चयन का मौका नहीं मिलेगा.

करीब आधा दर्जन से अधिक बैंकों के अध्यक्ष जो दो बार चुने जा चुके हैं वे सीधे प्रभावित होंगे. समस्याओं के समाधान तलाशने को बनी बैकुंठ मेहता सहकारी समिति ने केंद्र , नाबर्ड और आरबीआइ को बिहार की इस समस्या से अवगत कराया लेकिन सुझाव स्वीकार नहीं किया.

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