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विवि शिक्षकों की नियुक्ति में 2012 में अधिसूचित पीएचडी वाले भी मान्य, संशोधित परिनियम जारी

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पटना : सहायक प्राध्यापक नियुक्ति के लिए बिहार के सभी परंपरागत विश्वविद्यालयों के उन पीएचडी धारकों को भी अब अभ्यर्थी होने की पात्रता मिल जायेगी, जिन्होंने यूजीसी विनियमन 2009 के तहत पीएचडी उपाधि हासिल की है. बेशक वह पीएचडी उन्होंने नवंबर 2012 के बाद ही क्यों ना की हो. दरअसल 2009 के विनियमन को बिहार राजभवन ने नवंबर में 2012 में अधिसूचित किया था, लेकिन इस परिनियम को कई विश्वविद्यालयों ने बाद में प्रभावी किया.

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पटना : सहायक प्राध्यापक नियुक्ति के लिए बिहार के सभी परंपरागत विश्वविद्यालयों के उन पीएचडी धारकों को भी अब अभ्यर्थी होने की पात्रता मिल जायेगी, जिन्होंने यूजीसी विनियमन 2009 के तहत पीएचडी उपाधि हासिल की है. बेशक वह पीएचडी उन्होंने नवंबर 2012 के बाद ही क्यों ना की हो. दरअसल 2009 के विनियमन को बिहार राजभवन ने नवंबर में 2012 में अधिसूचित किया था, लेकिन इस परिनियम को कई विश्वविद्यालयों ने बाद में प्रभावी किया.

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इस आशय की अधिसूचना शनिवार को राजभवन ने जारी की है. यह अधिसूचना बिहार के विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रभावी किये गये परिनियम 2020 में संशोधित करते हुए जारी की गयी है. इस संशोधन से करीब तीन हजार से अधिक पीएचडी धारकों को सहायक अघ्यापक भर्ती प्रक्रिया का हिस्सा बनने का मौका मिलेगा.

फिलहाल संशोधन से साफ हो गया कि 2009 का परिनियम आगामी किसी भी तिथि से प्रभावी हुआ हो, उसकी उपाधि साक्षात्कार के लिए मान्य की जायेगी. ऐसे उपाधि धारकों को नेट, स्लेट व सेट की अपेक्षा से छूट प्रदान की जायेगी. हालांकि, ऐसा तभी होगा, जब वे अभ्यर्थी की पीएचडी की उपाधि नियमित पद्धति से हासिल की हो.

इस पीएचडी के शोध पत्रों का मूल्यांकन कम-से-कम दो बाह्य परीक्षकों ने किया हो. इसके अलावा शोधर्थी ने पीएचडी के लिए मौखिक साक्षात्कार प्रतियोगिता का सामना भी किया हो. साथ ही अभ्यर्थी से अपेक्षा रखी गयी है. उसने दो शोध पत्रों का प्रकाशन किया हो. इनमें एक का प्रकाशन संदर्भित जनरल में होना चाहिए़. साथ ही कुछ विचार गोष्ठियों में अपने शोध पत्र भी पढ़े हों.

विशेष संशोधन

संशोधित परिनियम में मेरिट निर्माण के लिए निर्धारित अंकों में साठ फीसदी या इससे ऊपर अंक पाने वाले के लिए सात अंक और 55 फीसदी से ऊपर और 60 फीसदी से कम अंक के लिए पांच अंक का प्रावधान खत्म कर दिया गया है.

शोध पत्र प्रकाशन की कठिन शर्तों से मुक्ति

शोध प्रकाशन समीक्षित अथवा विश्वविद्यालय द्वारा सूचीबद्ध जर्नल में प्रकाशित प्रत्येक शोध प्रकाशन के लिए दो अंक दिये जायेंगे. जबकि, मूल परिनियम में स्कोपस या पीयर रिव्यूड की अनिवार्यता थी. इसे अब हटा दिया गया है.

पीयर रिव्यूड में देश दुनिया का प्रतिष्ठित जर्नल में शोध प्रकाशन होना अनिवार्य था. पीयर रिव्यूड में किसी भी शोधार्थी के शोध पत्र का प्रकाशन तभी किया जाता है, जब दो एक्सपर्ट की राय पर शोध पत्र का प्रकाशन होता. खास बात ये है कि इस तरह के रिव्यूड में शोधार्थी को पता नहीं होता कि उसका शोध विशेषज्ञ कौन है?

एमफिल के मार्क्स का प्रावधान अब भी कायम

परिनियम में एमफिल को अभी मान्य रखा गया है. उसके लिए सात अंक का प्रावधान बरकरार रखा गया है. हालांकि, एमफिल की पढ़ाई बिहार में नहीं होती है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि पीएचडी के तीस अंक होने की वजह से एमफिल की सात अंक अलग से नहीं मिलेंगे.

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