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बगहा में बाघ नहीं अब मगरमच्छ बना मौत का पर्याय, गंडक बना सबसे बड़ा पनाहगार

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वीटीआर में बाघों की आबादी को देख यहां मौजूद कुछ बाघों को अन्य आरक्षित वनों में स्थानांतरित करने की संभावनाएं तलाश रहा है. वन विभाग की इस कार्रवाई से जहां स्थानीय लोगों में बाघ का डर कम होता जा रहा है, वहीं मगरमच्छ का दहशत इलाके में लगातार बढ़ता जा रहा है.

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बगहा. पश्चिम चम्पारण जिले के बगहा में बाघ नहीं अब मगरमच्छ मौत का पर्याय बनता जा रहा है. एक ओर जहां जंगल से निकल कर बाघ रेलवे स्टेशन पर आ जाते हैं तो दूसरी ओर नदी से निकल कर मगरमच्छ खेतों में चले आते हैं. हालिया हादसों को पर अगर गौर करें तो लोग बाघ से अधिक यहां मगरमच्छ के दहशत से अब डरे हुए हैं. वन विभाग के अधिकारियों को कहना है कि पश्चिमी चंपारण जिले में स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी लगातार बढ़ रही है. यहां बाघों की संख्या 50 से अधिक चुकी है. वीटीआर में बाघों की आबादी को देख यहां मौजूद कुछ बाघों को अन्य आरक्षित वनों में स्थानांतरित करने की संभावनाएं तलाश रहा है. वन विभाग की इस कार्रवाई से जहां स्थानीय लोगों में बाघ का डर कम होता जा रहा है, वहीं मगरमच्छ का दहशत इलाके में लगातार बढ़ता जा रहा है.

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बच्चे से बुजुर्ग तक को जिंदा निगल रहे मगरमच्छ

मगरमच्छ नदियों में जा रहे बच्चे से बुजुर्ग तक को जिंदा निगल रहे हैं. ताजा मामला बगहा थाना क्षेत्र के डुमरिया गांव का है, जहां खेत में काम पूरा होने के बाद जब बुजुर्ग वहां से निकलकर हाथ-पैर धोने नहर में गए, तभी नहर में मौजूद मगरमच्छ ने बुजुर्ग को दबोच लिया. SDRF की टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन भी चलाया, लेकिन अब तक न बुजुर्ग का शव मिला न मगरमच्छ का ही पता चला. कुछ दिन पहले भी गंडक के खालसा घाट पर जल लेने गये एक किशोर को मगरमच्छ ने खींचकर खाने की कोशिश की थी. बच्चे के चिल्लाने पर स्थानीय लोगों ने मगरमच्छ को पकड़ा, लेकिन तब तक बच्चे की मौत हो गयी थी. इस घटना के बाद अकेले नदी में जाने से लोग डरने लगे हैं. खास कर शाम होने के बाद नदी में जाने को कोई तैयार नहीं हो रहा है.

गंडक से निकलकर नहर तक आते हैं मगरमच्छ

ग्रामीणों के अनुसार जिस जगह पर बुजुर्ग को मगरमच्छ ने दबोचा, वहां कई दिनों से 4-5 मगरमच्छों को देखा जा रहा है. दरअसल, चंबल के बाद दूसरे स्थान पर गंडक नदी मगरमच्छ तथा घड़ियालों के अधिवास का सबसे प्रिय स्थान बना है. ऐसे में गंडक में बड़ी संख्या में मगरमच्छ पाए जाते हैं. गंडक नदी से 3 नहरें निकलती हैं. जिसमें दोन कैनाल, तिरहुत कैनाल और त्रिवेणी कैनाल शामिल है. समझने वाली बात यह है कि गंडक में पानी का स्तर बढ़ने पर या फिर सिंचाई के लिए इन्हीं नहरों में पानी छोड़ा जाता है. इस कारण नहर में पानी के साथ जलीय जीव भी प्रवेश कर जाते हैं. इनमें दैत्याकार मगरमच्छ भी शामिल होते हैं. हालांकि दूसरे जीवों से लोगों को परेशानी नहीं है, लेकिन बात जहां तक मगरमच्छ की है, तो यह ग्रामीणों के लिए यमराज बन जाता है.

गंडक दूसरा सबसे बड़ा पनाहगार

भारत में मौजूद नदियों में कुछ नदियां ऐसी हैं, जिनमें मगरमच्छों तथा घड़ियालों की संख्या बड़े पैमाने पर पाई जाती है. कुछ नदियां ऐसी हैं, जिनमें सैंकड़ों नहीं बल्कि हजारों की संख्या में मगरमच्छ तथा घड़ियाल पाए जाते हैं. इनमें से कुछ बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले में. खास बात यह है कि इन नदियों में पाए जाने वाले इन जलीय जीवों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. वन विभाग द्वारा लगभग दो वर्ष पहले किए गए सर्वे में यह पता चला था कि घड़ियाल उस नदी में पाए जाते हैं, जो गंगा में जाकर मिल जाती है. भारत में सबसे अधिक घड़ियाल चंबल नदी में पाए जाते हैं और इसके बाद बिहार के पश्चिम चम्पारण स्थित गंडक नदी में ये अधिक होते हैं. इसके अलावा सोन घड़ियाल अभ्यारण्य और केन घड़ियाल अभ्यारण्य में भी अधिक घड़ियाल पाए जाते हैं.

हर वर्ष बरसात के समय बढ़ जाते हैं मामले

वैसे तो पश्चिम चम्पारण में गंडक नदी के समीप रह रहे लोगों को हर वक्त मगरमच्छों का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह सामना बरसात के दिनों में काफी बढ़ जाता है. जहां अन्य दिनों में मगरमच्छनदियों में ही स्थिर रहते हैं, तो वहीं बरसात में जलस्तर बढ़ने पर वे नदी तथा नहरों से बाहर निकल खेतों तथा घरों तक घुस आते हैं. ऐसे में इंसान तथा मगरमच्छ का सामना पूर्णतः जानलेवा हो जाता है. समझने वाली बात यह है कि गंडक नदी में अधिक मगरमच्छ और घड़ियाल होने की वजह से इसके आस-पास रहने वाले लोग नदी किनारे जाने से बचते हैं. दरअसल, इस नदी में रहने वाले घड़ियाल और मगरमच्छ किनारों पर भी देखे जाते हैं, जो नदी किनारे ही अंडा देने का काम करते हैं.

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