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Madhubani News. बीमार नवजात को एसएनसीयू में सरकारी एंबुलेंस से अस्पताल लाएं

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जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों से नवजात शिशु जो एक्सफिक्सिया, लो वर्थ वेट, हाइपोथर्मिया से ग्रसित होते हैं, उन्हें बेहतर इलाज के लिए जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू में भर्ती कराया जाता है.

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Madhubani News. मधुबनी. मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रतिबद्ध है. इसके लिए कई तरह का कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाया जा रहा है. जिले के विभिन्न स्वास्थ्य केंद्रों से नवजात शिशु जो एक्सफिक्सिया, लो वर्थ वेट, हाइपोथर्मिया से ग्रसित होते हैं, उन्हें बेहतर इलाज के लिए जिला अस्पताल स्थित एसएनसीयू में भर्ती कराया जाता है. विदित हो की 1 वर्ष तक के बच्चे को जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक स्वास्थ्य संस्थान से शिशु को अस्पताल लाने व घर पहुंचने की नि:शुल्क एंबुलेंस की व्यवस्था की गई है. लेकिन आंकड़े के अनुसार अप्रैल 2024 से अगस्त 2024 तक विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों से 293 नवजात शिशुओं को एसएनसीयू में भर्ती कराया गया. विडंबना यह है कि इसमें महज 114 नवजात शिशुओं को ही सरकारी एंबुलेंस का लाभ मिला. जबकि 179 नवजातों के परिजनों ने निजी वाहन से इलाज के लिए एसएनसीयू में लाया. एंबुलेंस सेवा की संख्या संख्या में कमी को देखते हुए राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ. विजय प्रकाश राय ने सिविल सर्जन डॉ. नरेश कुमार भीमसरिया को पत्र भेजकर प्रत्येक बीमार नवजात शिशु को अस्पताल लाने, रेफर करने एवं इलाज के बाद घर पहुंचाने के लिए सरकारी एंबुलेंस उपलब्ध कराने के लिए संबंधित उपाधीक्षक, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, प्रखंड सामुदायिक उत्प्रेरक एवं स्वास्थ्य प्रबंधक को अपने स्तर से निर्देशित करने का अनुरोध किया है. विदित हो कि एसआरएस 2020 के अनुसार राज्य का नवजात मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्म में मृत्यु दर की संख्या 21 है. एसडीजी का लक्ष्य 2030 तक प्रत्येक जीवित नवजात 1000 पर 12 मृत्यु दर तथा नेशनल हेल्थ पॉलिसी का लक्ष्य 2025 तक नवजात 1000 जीवित जन्म पर मृत्यु दर 16 करना है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभाग सतत प्रयासरत है. जागरूकता से नवजात मृत्यु के मामलों में कमी संभव सिविल सर्जन डॉ. नरेश कुमार भीमसारिया ने कहा है कि जन्म के पहले 28 दिनों में नवजात की मृत्यु के अधिकांश मामले होते हैं. हाल के वर्षों में नवजात मृत्यु दर के मामलों में कमी आयी है. वर्ष 2019-20 में जारी एनएफएचएस 5 की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में नवजात मृत्यु दर शहरी क्षेत्र में 27.9 व ग्रामीण इलाकों में 35.2 के करीब है. इसलिये जोखिम के कारणों की पहचान एवं उसका उचित प्रबंधन नवजात मृत्यु दर के मामले को कम करने के लिये जरूरी है. इसके लिये नवजात के स्वास्थ्य संबंधी मामलों के प्रति व्यापक जागरुकता जरूरी है. यदि नवजात शिशु सुस्त, अस्वस्थ अथवा बीमार मालूम हो तो बिना समय गंवाए नजदीकी अस्पताल में तुरंत ले जाएं. उन्होंने कहा कि नवजात के जन्म के बाद पहले 28 दिन उसके जीवन व विकास के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होता है. स्वच्छता, टीकाकरण व उचित पोषण जरूरी सदर अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञ डा. विवेकानंद पाल ने कहा है कि प्री-मैच्योरिटी, प्री-टर्म, संक्रमण व जन्मजात विकृतियां नवजात मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है. नवजात के स्वस्थ जीवन में नियमित टीकाकरण, स्वच्छता संबंधी मामलों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है. जन्म के एक घंटे बाद नवजात के लिये मां का गाढ़ा पीला दूध का सेवन जरूर करायें. उचित पोषण के लिये छह माह तक मां के दूध के अलावे किसी अन्य चीज के उपयोग से परहेज करें. बच्चों के वृद्धि व विकास को बढ़ावा देने के लिये उचित पोषण महत्वपूर्ण है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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