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दीपावली के लिए मिट्टी के दीपक, इधर बांस के बरतन से गुलजार हुआ छठ का बाजार

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बांस के बरतन से गुलजार हुआ छठ का बाजार

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दीवाली पर दीयों से घर करेंगे रोशन, लाएंगे खुशहाली

मधेपुरा

लोक आस्था के महापर्व छठ के नजदीक आते ही लोग तैयारी में जुट गये है. छठ पर्व की तैयारी शुरू होते ही शहर सहित जिले के ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में बांस से बने बर्तनों की मांग काफी बढ़ गयी है. जिला मुख्यालय से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में जगह-जगह बांस से बर्तनों की दुकान सज गयी है. कारण लोक आस्था के महापर्व छठ में बांस से निर्मित सूप, डगरा, कोनिया, टोकरी सहित अन्य बर्तनों का उपयोग किया जाता है. ये सारे बर्तन बाद में घरेलू उपयोग में लाया जाता है. छठ पर्व में इन बर्तनों की मांग बढ़ने के कारण इसकी कीमतों में खासा उछाल आ गयी है. इस बार पिछले वर्ष की तुलना में बांस से बने बर्तनों की कीमत में महंगाई का असर स्पष्ट दिख रहा है. जिसकी मुख्य वजह है बांस की कीमत में उछाल आना. पिछले वर्ष एक बांस की कीमत 100 रुपये थी. जो बढ़कर 130 से 150 रुपये हो गयी है. जिसका असर बांस से बने बर्तनों पर स्पष्ट रूप से दिख रहा है. फिर भी लोग छठ पर्व की रस्म पूरी करने के लिए जमकर खरीदारी करते दिख रहे हैं.

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कहते है विक्रेता

बांस से बने बर्तनों की कीमत बढ़ने से इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की चांदी कट रही है. बांस के बर्तन विक्रेता कहते है कि ग्रामीण क्षेत्र से बांस लाकर छठ पर्व में उपयोग में आने वाले बर्तन बनाते हैं. जिसके कारण बांस से बने बर्तनों में लागत अधिक लगता है. नतीजतन शहर में इन बर्तनों की कीमत अधिक होना लाजमी है. वहीं इन बर्तनों की कीमत शहर की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ कम होता है. व्यवसायियों का कहना है कि पिछले वर्ष की तुलना में इस साल सामानों की कीमत में थोड़ी बढ़ोतरी हुई है. बांस से निर्मित बर्तनों की कीमत में 10 से 20 रुपये का बढ़ोतरी हुई है. इस व्यवसाय से शहर के कुछ ही परिवार जुड़े हैं. नहाय खाय पांच को मिथिला पंचांग के अनुसार चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत नहाय खाय के साथ पांच नवंबर को होगी. वहीं खरना की रस्म 6 नवंबर को पूरी की जायेगी. अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को 7 नवंबर को अर्घ अर्पित किया जायेगा. वहीं 8 नवंबर को उदीयमान भगवान भास्कर को अर्घ अर्पित किया जायेगा. इसके साथ ही छठ पर्व का समापन हो जायेगा.

घूमने लगे उम्मीदों के चाक

दीप पर्व दीपावली नजदीक आ चुकी है. ऐसे में दूसरों के घरों को रोशन करने के साथ ही अपने घर भी खुशियां लाने की उम्मीदों के साथ कुम्हारों का चाक घूमना शुरू हो गया है. हल्द्वानी के बरेली रोड पर दीयों के बाजार भी सज चुके हैं. चाइनीज सामानों के बहिष्कार इन कुम्हारों की उम्मीदें और बढ़ा रहा है.

मिट्टी के दीयों की है अपनी परंपरा

दीपावली 31 अक्तूबर को मनाई जायेगी. दीप पर्व पर मिट्टी के दीयों से घर को रोशन करने की परंपरा सदियों पुरानी है. इसका अपना महत्व भी है. ऐसे में दीपावली के नजदीक आते ही कुम्हार दीये बनाने के काम में तेजी से जुट गए हैं. उन्हें उम्मीद है कि इस बार उनकी दीवाली भी रोशन रहेगी. मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं. कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं.

चाइनीज झालरों पर भारी पड़ेंगे स्वदेशी दीये

हालांकि पिछले कुछ समय में आधुनिकता के इस दौर में दीयों का स्थान बिजली के झालरों ने ले लिया है. ऐसे में कुम्हारों के सामने आजीविका का संकट गहरा गया है. चाइनीज झालरों ने इन कुम्हारों को और चोट पहुंचाई है. इस कारण वर्ष भर इस त्योहार की प्रतीक्षा करने वाले कुम्हारों की दीवाली अब पहले की तरह रोशन नहीं रही. मगर पिछले कुछ वर्षों से स्वदेशी निर्मित उत्पादों के प्रयोग को लेकर कई स्वयंसेवी संगठन खड़े हुए हैं. उन्हें उम्मीद है कि एक बार फिर से उनके अच्छे दिन लौटकर आयेंगे. इसी उम्मीद में दीप तैयार करने का काम जोरों पर चल रहा है. सिंहेश्वर में दीये बना रहे कुम्हार बताते है कि दीपावली दीयों का त्योहार है, इसी उम्मीद के साथ उनकी चाक का पहिया घूमने लगा है. उम्मीद है कि इस बार मिट्टी के दीप ज्यादा बिकेंगे. इससे उनकी दीपावली भी पहले से बेहतर रहेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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