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विश्व सीओपीडी दिवस आज, दुनिया में पांचवां सबसे घातक रोग : डा.शिव कुमार

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धूम्रपान की वजह से युवा पीढ़ी इस बीमारी की चपेट में आ रही है.

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-विश्व सीओपीडी दिवस 2024 की थीम है फेफड़ों के काम को जानें.

-लगातार इस बीमारी से ग्रसित हो रहें हैं लोग.

जागरूकता और जानकारी है इससे बचाव का बेहतर विकल्प.

किशनगंज धूम्रपान,प्रदूषण और जीवन शैली की वजह से लोग लगातार क्रॉनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) नामक बीमारी की गिरफ्त में आ रहें है.कम से कम एक चौथाई दुनिया में यह पांचवां सबसे घातक और खतरनाक रोग बनता जा रहा है.यह जानकारी विश्व सीओपीडी दिवस की पूर्व संध्या पर जिले के जाने माने और प्रसिद्ध चिकित्सक अस्थमा,टीबी एंड चेस्ट विशेषज्ञ डा.शिव कुमार ने दी.मंगलवार को प्रभात खबर से विशेष बात चीत में उन्होंने बताया कि आज हम जिस हवा में सांस ले रहे है,वो भी विषैली हो गई है. हवा में सूक्ष्म कणों की मौजूदगी के साथ फेफड़ों की क्षमता पर सबसे ज्यादा असर पड़ रहा है. प्रतिवर्ष नवंबर महीने के तीसरे बुधवार को पूरी दुनियां इस गंभीर बीमारी से कैसे बचा जाए इसके लिए जागरूकता अभियान सहित कई तरह के आयोजन करती है.इस दिवस को मनाने का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के प्रति जागरूकता पैदा करना होता है.धूम्रपान की वजह से युवा पीढ़ी इस बीमारी की चपेट में आ रही है.डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में सवा नौ करोड़ से अधिक लोग इस रोग की चपेट में आ चुके हैं.

क्या है सीओपीडी

सीओपीडी फेफड़ों की प्राण घातक बीमारी है, जोकि सांस की नली में होती है.विशेषज्ञों की मानें तो मीडियम साइज की एक सिगरेट पीने से व्यक्ति की छह मिनट की ज़िंदगी कम हो जाती है.क्योंकि सिगरेट में चार हजार हानिकारक तत्व होते हैं.इसमें मुख्यत: निकोटिन,तार,कार्बन मोनोक्साइड,आरसेनिक और कैडमियम होता है.

सीओपीडी की चार स्टेज होती है.पहली स्टेज में सुबह के समय खांसी आना और गले में खिचखिच होना होता है.दूसरी स्टेज में दौड़ते-भागते सांस का फूलना और बलगम आना होता है. घर की नित-क्रिया जैसे नहाना व कपड़े पहनने आदि में यदि सांस फूलती है तो स्थिति चिंताजनक मानी जाती है. इसके अलावा हाथ व पैर में सूजन आना भी इस रोग की श्रेणी में आता है.

जागरूकता के अभाव में जानलेवा हो रहा है सीओपीडी

विशेषज्ञ चिकित्सक की मानें तो बहुत से लोगों को लगता है कि सांस की बीमारी या खांसी जैसी समस्या का कारण उम्र बढ़ना है.बीमारी की शुरूआती अवस्था में लक्षणों की तरफ हमारा ध्यान नहीं जाता. सीओपीडी के लक्षण प्रकट होने में अक्सर सालों लग जाते हैं व्यक्ति को बीमारी तब महसूस होती है,जब यह खतरनाक अवस्था में पहुंच चुकी होती है. सीओपीडी अक्सर 35 साल से अधिक उम्र में होता है,यह बीमारी अक्सर उन लोगों में होती है, जिनमें धूम्रपान का इतिहास हो.उन लोगों में भी सीओपीडी की संभावना अधिक होती है जो लम्बे समय तक रसायनों,धूल,धुंआ या खाना पकाने वाले ईंधन के संपर्क में रहते हैं.सीओपीडी के मरीज मौसम बदलने पर बीमार पड़ जाते हैं. ठंडे मौसम का इन पर बुरा असर पड़ता है.जानकारी होने पर ही फेफड़ों को ज्यादा नुकसान पहुंचने से बचाया जा सकता है. शहरों में बढ़ता प्रदूषण दिल और फेफड़ों के लिए घातक है.वायु प्रदूषण का बुरा असर फेफड़ों पर पड़ता है.यह सीओपीडी के मरीजों के लिए और भी घातक है.सीओपीडी से बचने के लिए किसी भी तरह का धूम्रपान न करें,तंबाकू,जलती लकड़ी,ईंधन,निष्क्रिय धूम्रपान से बचें.

क्या कहते हैं चिकित्सक

सीओपीडी एक फेफड़ों की गंभीर और जानलेवा बीमारी है.जिसमें व्यक्ति ठीक से सांस नहीं ले पाता है.यह फेफड़ों के वायु प्रवाह में सीमाओं का कारण बनता है.इस बीमारी में वायुमार्ग संकरा हो जाता है जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है.युवा पीढ़ी शौक के तौर पर धूम्रपान शुरू करते हैं,मगर बाद में उनका यही शौक लत में बदल जाता है.धूम्रपान से फेफड़ों में दिक्कत आने लगती है और युवा सीओपीडी की चपेट में आ जाता है.इसके बचाव के लिए धूम्रपान का त्याग कर,पर्यावरण को सुरक्षित रख कर शुद्ध हवा,शुद्ध भोजन नियमित प्राणायाम,योग से ही इससे बचा जा सकता है.जरा भी दिक्कत होने पर तुरंत डॉक्टर की सलाह पर उपचार शुरू कर देना चाहिए.सूबे में करीब तीन फीसदी आबादी सीओपीडी की गिरफ्त में है.जिले में ही हज़ारों की आबादी इस बीमारी की चपेट में है.इसके लिए स्पाइरोमेट्री जांच सबसे अहम है.लेकिन लोगों को जागरूक करना सबसे ज्यादा जरूरी है.

स्पायरोमेट्री की जांच, इनहेलर का नियमित व सही इस्तेमाल, फ्लू व निमोकाकल का टीकाकरण, प्राणायाम, संतुलित आहार, धूमपान से बचाव। यदि प्रदूषण कम नहीं किया गया तो आगे आने वाली पीढ़ी को इसका खमियाजा भुगतना पड़ सकता है.आज जो बच्चे पैदा हो रहे हैं, वे धूमपान नहीं कर सकते, लेकिन प्रदूषण के चलते प्रतिदिन पांच-छह सिगरेट पीने जितना उन्हें नुकसान हो रहा है.इसका असर उनके फेफड़ों पर होगा. आगे चलकर वे बीमार हो सकते हैं. विभागाध्यक्ष,टीबी एवं चेस्ट,एमजीएममेडिकल कॉलेज किशनगंज.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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