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दूसरी सोमवारी पर ऐतिहासिक हरगौरी मंदिर में उमड़ेगा भक्तों का सैलाब, मंदिर सज-धज कर तैयार

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127 साल पुराने हरगौरी मंदिर में भक्तो की आस्था इतनी ज्यादा है की यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. और बाबा भक्तो की हर कामना पूरी करते है.

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फोटो 13, सज धज कर तैयार हरगौरी मंदिरप्रतिनिधि, ठाकुरगंज

दूसरी सोमवार पर बड़ी संख्या में भक्तों के हरगौरी मंदिर में पहुंच कर जलाभिषेक व पूजा अर्चना किये जाने की संभावना को देखते हुए मंदिर कमेटी व प्रशासन ने पर्याप्त तैयारी की है. श्री हरगौरी मंदिर से आज तक कोई भी भक्त खाली नहीं गया. 127 साल पुराने हरगौरी मंदिर में भक्तो की आस्था इतनी ज्यादा है की यहां वर्ष भर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. और बाबा भक्तो की हर कामना पूरी करते है.

मंदिर का स्वर्णिम इतिहास

ठाकुरगंज का प्राचीन नाम कनकपुर था. वर्ष 1880 में राष्ट्रकवि रविंद्रनाथ ठाकुर के बड़े भाई सर ज्योतिन्द्र मोहन ठाकुर ने खरीदा तब से यह कनकपुर से ठाकुरगंज बन गया. 1897 ई में ठाकुरगंज के पूर्वोत्तर कोण में टैगोर परिवार द्वारा अपने कार्यालय निर्माण के लिए की जा रही खुदाई के क्रम में एक फ़ीट उंचा शिवलिंग मिला, जिसके आधा भाग में जगतजननी माता पार्वती की प्रतिमा अंकित है. इसे रविंद्र नाथ ठाकुर के वंशज कोलकाता में स्थापित करना चाहते थे और वे इसे वहा ले भी गए. परन्तु इस शिवलिंग को उसी जगह स्थापित करने का स्वप्न आने के बाद इस कोलकाता से वापस लाकर बंगला संवत 21 माघ 1957 को स्थापित कर दिया गया. ठाकुर परिवार द्वारा नियुक्त पंडित स्व भोला नाथ गांगुली का परिवार आज भी इस मंदिर में पुजारी के पुजारी के रूप में कार्यरत है.

प्रतिमा में शिव के साथ मां पार्वती की भी हे प्रतिमा

हरगौरी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर की विशेषता यहां मां पार्वती और भगवान शिव की प्रतिमा एक ही साथ हे. यह शिवलिंग दुर्लभ माना गया है. वेसे भी देवाधिदेव महादेव को सबसे ज्यादा प्रिय मां पार्वती की प्रतिमा उनके साथ बहुत कम पाई जाती है. यह प्रतिमा जीवंत दिखाई देती है. जानकार बताते है कि ऐसी प्रतिमा कहीं और नहीं है जहां माँ पार्वती और भगवान शिव की की प्रतिमा एक साथ अंकित हो. इसी कारण इस मंदिर का नाम श्री हरगौरी मंदिर पड़ा. इस शिवलिंग के दर्शन को देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहाँ आते हैं.

क्या कहते है पुजारी

मंदिर में पुरोहित के रूप में कार्यरत पार्वती चरण गांगुली और जयंत गांगुली इस मंदिर के स्वर्णिम इतिहास का वर्णन करते हुए कहते है कि राष्ट्रकवि के वंशजों द्वारा वर्ष 1897 ई0 में ठाकुरगंज नगर पंचायत के पूर्वोत्तर कोण में अपने कार्यालय स्थापना के लिए खुदाई के दौरान पांडवकाल के भग्नावशेष में एक फ़ीट ऊँचा शिवलिंग मिला ,जिसके आधा भाग में जगतजननी माता पार्वती की प्रतिमा अंकित है. इसे रविंद्र नाथ ठाकुर के वंशज कोलकाता ले गए जहाँ वे मंदिर में स्थापित करना चाहते थे पर बार-बार इन्हें शिवलिंग को प्राप्त स्थान पर स्थापित करने का स्वप्न आने लगा था. इस कारण ठाकुर के वंशज शिवलिंग को कोलकाता से वापस लाकर वर्ष 1901 को ठाकुरगंज के ढिबड़ीपाड़ा में तत्काल स्थापित कर दिया.

स्थानीय लोगों के प्रयास से हुआ भव्य मंदिर का निर्माण

इस शिव लिंग को वापस कोलकता से लाकर ठाकुर परिवार ने टीन के एक छोटे से मकान में बंगाल सम्वत 21 माघ 1957 को स्थापित किया और इसकी पूजा शुरू हुई. ठाकुर परिवार द्वारा मंदिर प्रांगण में लगाईं गई प्लेट के आधार पर यह प्रमाणित है कि 8 फरवरी 1901 से हरगौरी मंदिर में पूजा-अर्चना आरंभ हुई.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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