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जनधन खाते में 1000 आये या नहीं, यह जानने बैंकों में महिलाओं की उमड़ी भीड़

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राणा सिंह, कटिहार : कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव को लेकर सोशल डिस्टेंस एक ऐसा शस्त्र है. जिससे अब तक इस महामारी को फैलने से रोकने में कारगर साबित हुआ है. प्रधानमंत्री के द्वारा पूरे देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाया गया है. ताकि कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के रूप में लोगों को अपना […]

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राणा सिंह, कटिहार : कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव को लेकर सोशल डिस्टेंस एक ऐसा शस्त्र है. जिससे अब तक इस महामारी को फैलने से रोकने में कारगर साबित हुआ है. प्रधानमंत्री के द्वारा पूरे देश में 14 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाया गया है. ताकि कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के रूप में लोगों को अपना शिकार न बनायें और अब तक के कोरोना वायरस संक्रमण को रोकने के लिए वैज्ञानिक और चिकित्सकों ने जो उपचार निकाला है. वह प्रभावशाली उपचार सोशल डिस्टेंस का है. बार-बार सरकार लोगों को सोशल डिस्टेंस बनाए रखने की अपील भी कर रहे हैं. यही वजह है कि अब तक भारत देश का संक्रमण का आंकड़ा अन्य देशों के मामले में कम है. लेकिन सोमवार को शहर के बैंकों के बाहर की तस्वीरें कटिहार में बड़ी बीपत को आने की निमंत्रण देती नजर आयी.

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सोशल डिस्टेंस को लेकर सरकार और प्रशासन लगातार लोगों से अपील कर रहे हैं. उन सभी अपीलों की धज्जियां सोमवार को उड़ती हुई नजर आयी. दरअसल सोमवार के दिन जैसे ही शहर के बैंक खुले खाताधारक बैंक संबंधित अपने कार्य के लिए बैंकों में उमड़ पड़े. शहर के प्रायः सभी बैंकों के बाहर खाताधारकों की लंबी लाइनें लग गई थी. शहर के शहीद चौक स्थित इलाहाबाद बैंक, गर्ल्स स्कूल स्थित बैंक ऑफ इंडिया, चुना गली स्थित यूको बैंक, विनोद पुर रोड स्थित यूनियन बैंक, एमजी रोड स्थित इलाहाबाद बैंक में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था. इनमें ज्यादातर महिलाओं की संख्या थी जो प्रधानमंत्री जनधन खाते में भेजे गये 1000 रूपये जांचने आयी थी कि उनके खाते में राशि आयी है या नहीं. इतना ही नहीं सभी बैंकों के बाहर सोशल डिस्टेंस की पूरी धज्जियां भी उड़ रही थी.

बैंक पहुंचने वाले लोग एक दूसरे के ठीक सटे हुए लाइन बनाये खड़े हुए थे. हैरत तो तब हुई जब बैंक में लोगों की इतनी भीड़ उमड़ने के बाद भी न बैंक के कोई कर्मचारी या गार्ड इस सोशल डिस्टेंस को बनाये रखने में मदद कर रहे थे और न ही जिला प्रशासन की तरफ से कोई भी जवान सोशल डिस्टेंस का पालन कराने के लिए वहां मौजूद था. बैंक के अंदर पांच लोगों को ही इंट्री दी जा रही थी. जब पांच लोग बाहर निकलते तभी पांच लोगों को अंदर भेजा जा रहा था. बैंक के अंदर सोशल डिस्टेंस बनाए रखने के लिए यह फार्मूला तो समझ में आया. लेकिन जो बैंक के बाहर का जो दृश्य था वह काफी हैरत कर देने वाला दृश्य नजर आ रहा था. बैंकों के बाहर लंबी-लंबी लोगों की लाइनें लग गई थी. लोग बेसब्री से अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे. सबसे ज्यादा महिलाओं की भीड़ रही.

बैंक के काम कुछ इस कदर लोगों के जहन में था कि वह कोरोना वायरस जैसे संक्रमण को भी भूल गए थे. कुछ खाता धारकों से बात करने पर पता चला कि सरकार द्वारा भेजे गए पैसे निकालने के लिए पहुंचे हुए हैं. जबकि कई खाताधारक ऐसे भी थे जिन्होंने यह कहा कि अपना एकाउंट को चेक करने के लिए आए हुए हैं. सरकार ने हमारे एकाउंट में पैसे भेजे हैं कि नहीं भेजे हैं. हालांकि बैंक संबंधित जो भी कार्य कराने के लिए खाताधारक बैंक पहुंचे थे. वह खुद भी लापरवाही बरत रहे थे.

जबकि बैंक संबंधित कार्य कराने के लिए पहुंचने वाले खाताधारकों के लिए बैंक अधिकारियों की भी जिम्मेदारी बनती थी कि वह सोशल डिस्टेंस बनाए रखने में अपनी भूमिका निभाए और यदि लोगों की भीड़ नहीं संभल रही थी तो जिला प्रशासन से इसकी मदद लें. बहरहाल सोमवार को बैंक के बाहर कि जो दृश्य नजर आई वह काफी चिंता का विषय है. इस भीड़ के हुजूम में एक भी संक्रमित लोग हुए तो बड़ी संख्या में वायरस फैलने का डर बन गया है. यदि ऐसा हुआ तो इसके जिम्मेदार कौन होंगे. इतनी बड़ी लापरवाही बैंक अधिकारियों के अलावा जिला प्रशासन के ऊपर भी कई सवाल खड़े कर रहे हैं. जिला प्रशासन द्वारा लोगों को सोशल डिस्टेंस बनाए रखने के लिए सारे दावे बैंक के बाहर खोखले नजर आये.

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