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नहाय खाय के साथ महापर्व चैती छठ का अनुष्ठान हुआ शुरू

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चार दिनों तक चलने वाले सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ शुक्रवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया. पहले दिन छठ व्रत करने वाले महिला पुरुषों ने अंत:करण की शुद्घि के लिए नदियों, तालाबों और विभिन्न जलाशयों में स्नान करने के बाद अरवा चावल, चने की दाल और लौकी, कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया.

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भभुआ सदर. चार दिनों तक चलने वाले सूर्योपासना का महापर्व चैती छठ शुक्रवार को नहाय खाय के साथ शुरू हो गया. पहले दिन छठ व्रत करने वाले महिला पुरुषों ने अंत:करण की शुद्घि के लिए नदियों, तालाबों और विभिन्न जलाशयों में स्नान करने के बाद अरवा चावल, चने की दाल और लौकी, कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ग्रहण किया. आज व्रती खरना करेंगी, जिसमे गुड़ अरवा चावल से बने खीर और पूड़ी का प्रसाद बनेगा और इसे व्रती के ग्रहण करने के बाद सभी को प्रसाद स्वरूप वितरित किया जायेगा. गौरतलब है कि प्रमुखता के साथ मनायी जाने वाली छठ पूजा साल में दो बार चैत्र मास और कार्तिक महीने में मनायी जाती है. हालांकि, कार्तिक महीने की तुलना में चैत्र मास में व्रतियों की संख्या कम रहती है, लेकिन सालों साल इसमें भी बढ़ोतरी हो रही है. चार दिनों तक मनाये जाने वाले इस महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय के साथ व्रत की शुरुआत की जाती है. छठ पूजा में मुख्य रूप से सूर्य की मानस पुत्री छठी मैया के अलावा भगवान भास्कर की पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही, पर्व के तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य के अलावा चौथे और अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ देकर व्रत तोड़ने की परंपरा है. इस महापर्व में साफ-सफाई और स्वच्छता के साथ ही शुद्धता का भी विशेष ख्याल रखा जाता है. इस बार 12 से 15 अप्रैल तक होने वाली छठ पूजा के अंतर्गत आज यानी शनिवार को खरना है. वहीं, पहला अर्घ अस्ताचलगामी सूर्यदेव को 14 अप्रैल रविवार को व दूसरा अर्घ उदीयमान सूर्यदेव को 15 अप्रैल सोमवार को दिया जायेगा. = मन्नत व बच्चों के लिए होता हैं छठ व्रत का अनुष्ठान पंडित हरिशंकर तिवारी के अनुसार छठ व्रत का अनुष्ठान बच्चों की रक्षा से जुड़ा है, जिस प्रकार से बच्चे के जन्म के बाद उसकी छठी मनायी जाती है. ठीक उसी प्रकार सूर्य की शक्ति के समक्ष बच्चों की रक्षा की जाती है. इस व्रत के वैज्ञानिक महत्व भी है. वर्ष में दो बार छठ व्रत मनाया जाता है. दोनों ही छठ का व्रत ऋतुओं के आगमन से जुड़ा है. कार्तिक मास में शरद ऋतु की शुरुआत होती है, तो चैत्र मास में वसंत ऋतु. एक में ठंड की शुरुआत होती है, तो दूसरे में गर्मी की. बदलते मौसम में दोनों व्रत किया जाता है. इन दोनों ही ऋतुओं में रोगों का प्रकोप बढ़ जाता है. इसे शांत करने के लिए सूर्य की आराधना की जाती है, जाे प्रकृति प्रदत पूजा है. पूजा में मौजूद सभी सामग्रियां भी प्रकृति से जुड़ी होती है. जिससे, रोगों व दुर्भाग्य से लड़ने की शक्ति मिलती है.

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