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बोक-चॉय को उगा आत्मनिर्भर बनी संगीता

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जमुई की एक महिला ऐसी भी है जो परंपरागत और नकदी खेती से आगे बढ़ उसने एक ऐसी फसल की खेती की है, जिसकी कीमत बाजार में 200 रुपये प्रति किलो तक है.

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राहुल सिंह, जमुई

आमतौर पर जिले में परंपरागत खेती के तौर पर धान और गेहूं की फसल की खेती की जाती है. वहीं कई किसान ऐसे हैं जो परंपरागत खेती को छोड़ नकदी फसलों की खेती करने लगे हैं. इसके तहत किसान सब्जियों की खेती करते हैं, लेकिन जमुई की एक महिला ऐसी भी है जो परंपरागत और नकदी खेती से आगे बढ़ उसने एक ऐसी फसल की खेती की है, जिसकी कीमत बाजार में 200 रुपये प्रति किलो तक है. दरअसल, जमुई जिले के लक्ष्मीपुर प्रखंड क्षेत्र के मोहनपुर गांव के रहने वाली महिला किसान संगीता देवी ने अपने खेत में बोक-चॉय की खेती शुरू की. महिला किसान ने केवल 40 से 45 दिनों में बोक-चॉय की फसल को उपजा लिया है. ऐसा पहली बार हुआ है जब जमुई में बोक-चॉय की खेती की गयी है. गौरतलब है कि बोक-चॉय एक तरह की गोभी की फसल ही है, जिसे 40 से 45 दिनों में उपजाया जाता है. चिकित्सक इसे स्वास्थ्य के लिहाज से काफी अच्छा मानते हैं. बोक-चॉय का इस्तेमाल हृदय रोग से लेकर उच्च रक्तचाप और हड्डियों को ताकत देने के लिए किया जाता है.

जलवायु परिवर्तन को देखते हुए लिया फैसला

महिला किसान संगीता देवी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए उन्होंने यह निर्णय लिया है. उन्होंने कहा कि मौसम में लगातार परिवर्तन हो रहा है तथा मिट्टी अपनी प्रकृति छोड़ रही है. जिस कारण परंपरागत खेती से किसान मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं. ऐसे में उन्हें अपने आप को बेहतर बनाने के लिए कुछ अलग करने की सोची और फिर उन्होंने बोक-चॉय की खेती शुरू कर दी. उन्होंने कहा कि किसानों के साथ मिलकर जलवायु संगठन के सस्ते टिकाऊ और प्रभावकारी उपाय ढूंढने में जुटी संगठन रीजेनरेटिव बिहार के मदद से उन्होंने इसकी खेती शुरू की है. रीजेनरेटिव बिहार ने 300 से अधिक किस्म के देसी बीज फील्ड ट्रायल के दौरान बांटे थे. जिसमें बैगन की 32, टमाटर की 32, गोभी की 6, सरसों, मिर्च, बींस, बंधा गोभी, शिमला मिर्च, मूली सहित कई रबी की सब्जियों की विविध किस्में शामिल थी. इसी दौरान उन्हें बोक-चॉय की खेती का आइडिया मिला और उन्होंने अब इसकी खेती शुरू कर दी.

45 से 50 दिन में तैयार हो गयी फसल

महिला किसान ने बताया कि केवल 45 से 50 दिनों में बोक-चॉय की यह फसल तैयार हो गयी है. उन्होंने कहा कि इस साल नवंबर और दिसंबर में तापमान सामान्य से अधिक रहा और नमी भी काफी कम थी. लेकिन इसका कोई भी विपरीत असर मेरे फसल के ऊपर नहीं पड़ा. काफी जैविक तरीके से बिना खाद और उर्वरक के इस्तेमाल के उन्होंने बोक-चॉय की यह फसल को उगाया है और इसका स्वाद भी उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है. गौरतलब है कि महिला किसान संगीता देवी के अलावा जमुई जिले के खैरा प्रखंड क्षेत्र के डूमरकोला गांव के जैविक किसान निरंजन यादव ने भी बोक-चॉय की खेती की है. इसके साथ ही तरी दाबिल के किसान विजय मंडल सहित कई ऐसे किसान हैं जो जिले में बोक-चॉय की खेती कर रहे हैं.

किसानों के लिए लगातार कर रहे हैं काम

रीजेनरेटिव बिहार के जमुई प्रतिनिधि संतोष कुमार सुमन और प्रदीप कुमार ने बताया रीजेनरेटिव बिहार के एक घटक जीवित माटी स्टूडियो ने इस साल फील्ड ट्रायल के लिए 300 से ज्यादा किस्म के देसी बीज दिये थे. इसमें बोक-चॉय की खेती एक एकड़ में की गयी थी और सभी किसानों में इसे लेकर संतोष और उत्साह देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि अगले साल हम किसानों को इसका बीज तैयार करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं तथा हमारी योजना है कि अगले साल से और भी बड़े पैमाने पर पूरे जिले भर में उगाया जा सके.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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