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प्रकृति ने अनुपम सौंदर्य का वरदान जमुई की धरती को भी प्राप्त हुआ है, जो सदैव मानव के साथ पशु पक्षियों को भी आकर्षित करती रही है. झाझा प्रखंड क्षेत्र के सिमुलतला तथा नागी-नकटी एवं यक्षराज स्थान सहित जमुई-मुंगेर के सीमा पर स्थित भीमबांध आदि स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य अपने आप में चित्त को शांत कर देने वाला है.

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जमुई. प्रकृति ने अनुपम सौंदर्य का वरदान जमुई की धरती को भी प्राप्त हुआ है, जो सदैव मानव के साथ पशु पक्षियों को भी आकर्षित करती रही है. झाझा प्रखंड क्षेत्र के सिमुलतला तथा नागी-नकटी एवं यक्षराज स्थान सहित जमुई-मुंगेर के सीमा पर स्थित भीमबांध आदि स्थल का प्राकृतिक सौंदर्य अपने आप में चित्त को शांत कर देने वाला है. वहीं सिकंदरा व खैरा तो अपने विशिष्ट आध्यात्मिक ख्याति के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त है. जबकि सोनो व चकाई प्रखंड के आंचल को खनिज संपदाओं से परिपूर्ण किया हुआ है. जमुई रेलवे स्टेशन के समीप स्थित मां काली मंदिर की खूबसूरती को तो कहना ही क्या. एक समय यह क्षेत्र नक्सलियों से प्रभावित था, फिर भी प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठाने के लिए लोग अपने कदमों को रोक नहीं पाते थे. हालांकि प्रशासनिक मुस्तैदी से नक्सली जिला बदर हो गये हैं और लोग इन प्राकृतिक नजारों का लुत्फ उठा रहे हैं.

भीमबांध

जमुई-मुंगेर जिलों की सीमा पर स्थित भीमबांध को जमुई स्टेशन से उतरकर जाना होता है. आवागमन को निजी या फिर भाड़े के वाहन का ही सहारा है. नवंबर माह से लेकर जनवरी तक सैलानी भीमबांध के गर्म जलकुंड के प्रति आकर्षित होते हैं और प्रकृति का जमकर आनंद उठाते हैं. इस जंगल में गर्म पानी का बहता नदी होने के कारण हजारों की भीड़ से भी कुछ खास प्रभाव नहीं पड़ता है. महिला और पुरुष के नहाने के लिए अलग-अलग कुंड का निर्माण किया गया है.

चर्मरोगियों के लिये लाभदायक है पानी –

मान्यताओं के अनुसार भीमबांध का पानी चर्मरोगियों के लिये काफी लाभदायक है. कुछ दिनों तक लगातार भीमबांध के गर्म पानी में स्नान करने पर चर्मरोग खत्म हो जाता है. भीमबांध का अपना पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व है. महाभारत कालीन भीमबांध की अपनी ऐतिहासिक गाथा है. पौराणिक महत्व होने के कारण इसके प्रति लोगों की विशेष श्रद्धा है. किंवदंतियों के अनुसार, भीम ने द्रौपदी के स्नान करने के लिए इस बांध का निर्माण किया था.

गिद्धेश्वर महादेव –

जिला मुख्यालय से करीब 15 किलो मीटर की दूरी पर खैरा प्रखंड की सीमा में अवस्थित इस प्राचीन मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यहां एक बार रावण व जटायु के बीच युद्ध छिड़ा था. इसमें अंतत: रावण विजयी हुआ था. प्राचीनकालीन यह मंदिर आज भी एक दर्शनीय स्थल बना हुआ है.

बगलामुखी मंदिर

खैरा प्रखंड में ही स्थित मां बगलामुखी का मंदिर श्रद्धालुओं की व्यापक आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ अपने निर्माण के अनूठेपन के कारण काफी दर्शनीय भी है. किसी जमाने में यहां राजा-महराजाओं समेत अन्य भक्तों द्वारा हीरे-जवाहरात जैसे बेशकीमती चढ़ावे भी व्यापक पैमाने पर चढ़ाये जाते थे.

भगवान महावीर का जन्मस्थान

जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से करीब 28 किमी की दूरी पर स्थित जन्मस्थान नामक यह पवित्र स्थल जैन धर्मावलंबियों का एक मुख्य तीर्थस्थान है. वैश्विक स्तर का यह तीर्थस्थल दरअसल जैनियों के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मस्थान माना जाता है. वैसे तो यहां बारहों मास ही तीर्थयात्रियों का आना-जाना लगा रहता है, परंतु दिसंबर-जनवरी में यहां जैन धर्मावलंबियों का जोरदार समागम देखने को मिलता है. इसी प्रखंड में इसी धर्म के लोगों का कानन मंदिर भी अवस्थित है. स्थान की पवित्रता व प्रधानता के मद्देनजर इसकी महत्ता आज भी बदस्तूर कायम है.

दूरी-

जमुई जिला मुख्यालय से सड़क मार्ग से करीब 28 किमी, निजी अथवा भाड़े के वाहनों से करना होता है. सुरक्षा को स्थानीय पुलिस एवं सीआरपीएफ के जवान भी लगाते हैं गश्त.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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