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बिहार के इस महिला कालेज में हुआ था पुरुष का नामांकन, 15 अगस्त को मनाएगा 75वां स्थापना दिवस

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Independence Day: सुंदरवती महिला कॉलेज का 15 अगस्त को 75वां स्थापना दिवास मनाया जा रहा है. इस मौके पर इस कालेज के इकलौते पुरुष को जानिए. इन्हें इस कालेज में दाखिला मिला था. इन्होंने इस कालेज से पढ़ाई भी की.

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संजीव झा, भागलपुर. सुंदरवती महिला कॉलेज का 15 अगस्त को 75वां स्थापना दिवस है. यह सुन कर थोड़ा अटपटा और अविश्वसनीय जरूर लगता है कि छात्राओं के कॉलेज में किसी छात्र ने पढ़ाई की है. यह बात अटपटी इसलिए भी लगती है कि महिला कॉलेज में पुरुषों के नामांकन का प्रावधान नहीं होता है. लेकिन है यह 16 आना सच. भागलपुर शहर में स्थित ऐतिहासिक सुंदरवती महिला कॉलेज में एक ऐसा छात्र था, जिन्होंने नामांकन लेकर पढ़ाई की थी. डिग्री भी पायी थी. वह आज भी इसी शहर में रह रहे हैं. स्वास्थ्य कारणों से तकलीफ में हैं. इस अनूठे पूर्ववर्ती छात्र उदय प्रताप सिंह उर्फ पंचा भैया ने अपने कॉलेज की 75वीं वर्षगांठ से पूर्व कई अनुभव शेयर किये. सुन नहीं सकते हैं.

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उदय प्रताप सिंह उर्फ पंचा भैया ने महिला कालेज में की पढ़ाई

उदय प्रताप सिंह उर्फ पंचा भैया ने इस कालेज में पढ़ाई की थी. वह बताते है कि वो माहौल कुछ और था. प्राचार्य से लेकर चतुर्थवर्गीय कर्मचारी तक सहयोगी थे. वे यह सोचते थे कि संस्था की भलाई हो, चाहे इसके लिए कोई भी कदम क्यों न उठाना पड़े. यही सोच थी, जिसकी बदौलत मैं सुंदरवती महिला कॉलेज में नौकरी करते हुए वहां से पीजी (स्नातकोत्तर) की डिग्री पायी. तब मैं डिमोंस्ट्रेटर के पद पर था और मेरी शिक्षा स्नातक तक की थी. मैं शिक्षक बनना चाहता था. मैंने अपने सुंदरवती महिला कॉलेज के प्राचार्य के समक्ष अर्जी लगायी कि मुझे पीजी की पढ़ाई करनी है. प्राचार्य भी सोच में पड़ गये कि छात्राओं के कॉलेज में छात्र का नामांकन कैसे ले सकते हैं. फिर उन्होंने आपसी विचार-विमर्श कर मेरी अर्जी भागलपुर विश्वविद्यालय को भेज दी. इसके बाद जब भागलपुर विश्वविद्यालय में सिंडिकेट की बैठक हुई, तो सिंडिकेट ने निर्णय लिया और नामांकन का आदेश जारी कर दिया. प्राचार्य ने मेरा नामांकन लिया और फिर मैंने नौकरी के साथ पढ़ाई भी मैनेज करते हुए परीक्षा दी और पीजी की डिग्री मिल गयी. मुझे नहीं लगता कि भविष्य में ऐसा हो पायेगा कि किसी महिला कॉलेज का स्टूडेंट पुरुष हो. इस बात पर मुझे गर्व है. गौरव इस बात का भी है कि सुंदरवती महिला कॉलेज ने बिहार में ऊंची प्रतिष्ठा कमाई है.

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वर्ष 1971 में पंचा भैया को सुंदरवती महिला कॉलेज में डिमोंस्ट्रेटर के पद पर नौकरी मिली थी. सबकुछ अच्छा चल रहा था. वर्ष 2009 में दुर्गापूजा की दसवीं की सुबह फूल तोड़ने के लिए एक छत पर गये, जहां छत के बगल में फूल के पेड़ थे. इसी दौरान नीचे गिर गये और कमर टूट गयी. वर्ष 2014 में सेवानिवृत्त होते, पर मजबूरीवश उन्हें वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लेनी पड़ी. तब से वे बिस्तर या कुर्सी पर ही पड़े रहते हैं. अब तो सुनने की क्षमता भी बिल्कुल खत्म हो चुकी है. दो बेटियों की शादी कर चुके हैं और एक बेटा नौकरीशुदा हैं और दूसरा बेटा इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे हैं. वर्तमान में पंचा भैया आदमपुर इलाके के गुहा विला मोहल्ले में पत्नी मृदुला सिंह के साथ अपने घर में रहते हैं. वे कहते हैं ‘मुझे शिक्षक की पेंशन राशि मिलनी चाहिए थी, लेकिन कर्मचारी की मिली. मेरे साथ हुए हादसे और मेरी साफ-सुथरी सेवा को ध्यान में रख विवि मुझे चिकित्सा में सहयोग करे और बेटे को अनुकंपा का लाभ दे.’

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बकौल पंचा भैया बताते है कि ‘सुंदरवती महिला कॉलेज का माहौल हमेशा से अच्छा रहा. जो भी प्राचार्य आये, हमेशा सहयोगी रहे. बच्चियों की पढ़ाई के लिए हमेशा सक्रिय रहनेवाली इस संस्था का काफी नाम है. आज जो लोग यहां काम करते हैं, वे इसे और भी ऊंचाई पर लेकर जायें. मैं कॉलेज की 75वीं वर्षगांठ पर सभी को बधाई देता हूं.’

12 छात्राओं से शुरू हुआ था कॉलेज, आज 7000 हो चुकी है संख्या

सुंदरवती महिला कॉलेज के प्रभारी प्राचार्य डॉ मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि 10-12 छात्राओं से यह कॉलेज शुरू हुआ था. आज यहां भागलपुर समेत आसपास के 12-13 जिलों की 7000 छात्राएं पढ़ाई कर रही हैं. दिसंबर में छात्राओं को एक और हॉस्टल की सुविधा मिलेगी. कॉलेज का आकर्षण इतना है कि छात्राओं की उपस्थिति भी काफी रहती है, जबकि क्लासरूम ही कम हो जाते हैं. वे 26वें प्राचार्य हैं. पूर्व प्राचार्य डॉ निशा राय कहती हैं कि कॉलेज की पहली प्राचार्य शारदा वेदालंकार थीं, जो इंग्लैंड से हिंदी से पीएचडी की थीं. घर-घर जाकर छात्राओं को बुला कर नामांकन लेतीं और पढ़ाती थीं. पिछले एक दशक से इस कॉलेज को स्थायी प्राचार्य नहीं मिल सका और प्रभारी के भरोसे संचालित हो रहा है. पूर्व प्रभारी प्राचार्य डॉ अर्चना ठाकुर कहती हैं कि यह कॉलेज अनुशासन के लिए आज भी जाना जाता है. शिक्षकों का छात्राओं के बेहतर भविष्य के प्रति काम करना कॉलेज की पढ़ाई को उत्कृष्ट बनाता रहता है. यहां कर्मचारियों की भूमिका को भी कमतर नहीं आंका जा सकता. उक्त सभी प्राचार्यों ने 75वीं वर्षगांठ की शुभकामनाएं दी.

कॉलेज का संक्षिप्त इतिहास

15 अगस्त 1949 को 12 छात्राओं के साथ मोक्षदा गर्ल्स स्कूल में एक कॉलेज खोला गया था. यहां पर 11 महीना वहां रहने के बाद बरारी स्टेट के नरेश मोहन ठाकुर व सूर्य मोहन ठाकुर ने जमीन दी और कॉलेज यहां आ गया. ठाकुर भाईयों ने कॉलेज के लिए जमीन सहित धनराशि भी दान में दी. इसी कारण इस कॉलेज का नाम ‘ठकुराइन सुंदरवती’ के नाम से जुड़ा और इसका नाम सुंदरवती महिला महाविद्यालय रखा गया. कॉलेज निर्माण सहित कॉलेज के विकास में क्षितीश चंद्र मुखर्जी, बंकिम चंद्र बनर्जी, विनय कुमार, आनंद मोहन सहाय, मुक्तेश्वर प्रसाद, सत्येंद्र प्रसाद अग्रवाल व उनकी धर्मपत्नी सुधावती अग्रवाल का काफी योगदान है. कॉलेज की संस्थापिका प्राचार्य डॉ शारदा देवी वेदालंकार थीं.

(स्रोत : भागलपुर अतीत एवं वर्तमान पुस्तक)

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