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मॉडल सदर अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर को बंद कर खुलवा दिया सीटी स्कैन व एक्सरे सेंटर, मरीज किये जा रहे रेफर

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नेशनल हाइवे पर बड़े हादसे हो या दुर्घटना. मॉडल सदर अस्पताल ऐसी चुनौतियों से निबटने के लिए तैयार नहीं है. विकसित जिला होने के बावजूद यहां इमरजेंसी केयर और आधुनिक ट्रॉमा सेंटर की सुविधाएं मरीजों को अब तक नहीं मिल पायी हैं.

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गोपालगंज. नेशनल हाइवे पर बड़े हादसे हो या दुर्घटना. मॉडल सदर अस्पताल ऐसी चुनौतियों से निबटने के लिए तैयार नहीं है. विकसित जिला होने के बावजूद यहां इमरजेंसी केयर और आधुनिक ट्रॉमा सेंटर की सुविधाएं मरीजों को अब तक नहीं मिल पायी हैं. मॉडल सदर अस्पताल में सिर्फ सेकंडरी केयर सुविधाएं हैं, इसलिए जब भी कोई गंभीर घायल यहां पहुंचता है, तो उसे मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया जाता है. ट्रॉमा सेंटर चालू नहीं होने का दर्द मरीजों को झेलना पड़ रहा है. केंद्र सरकार की ओर से 70 लाख रुपये की राशि स्वीकृत कर सदर अस्पताल परिसर में चार साल पहले ट्रॉमा सेंटर बनाया गया और महंगी मशीनों के साथ ट्रॉमा सेंटर का आइसीयू से लैस एंबुलेंस भी केंद्रीय सड़क एवं राजमार्ग की ओर से उपलब्ध करायी गयी, लेकिन आज तक इसे चालू नहीं कराया जा सका. एंबुलेंस के चालक की दुर्घटना में मौत हो गयी, तब से एंबुलेंस धूल फांक रही है. वहीं, ट्रॉमा सेंटर का 2020 में स्वास्थ्यमंत्री मंगल पांडेय, सांसद डॉ आलोक कुमार सुमन ने उद्घाटन किया था, लेकिन आज तक चालू नहीं हो सका. अब अस्पताल प्रशासन ने ट्रॉमा सेंटर का बंद कर उसमें सीटी स्कैन और एक्सरे सेंटर को शिफ्ट करा दिया. दोनों जांच सेंटरों के कब्जे में यह भवन है. मरीज हर रोज बेहतर इलाज के लिए सदर अस्पताल से रेफर किये जा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उदासीन बने हैं और जनप्रतिनिधि ध्यान नहीं दे रहे हैं. गोपालगंज जिले से होकर दो राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-27 तथा एनएच-531 गुजरते हैं. स्टेट हाइवे 90 बैकुंठपुर से छपरा होते हुए पटना तक जाता है. इसके अलावा गोपालगंज-बेतिया रोड है. इन सभी हाइवे पर आये दिन हादसे होते रहते हैं. हादसों के बाद घायलों को सदर अस्पताल लाया जाता है. यहां गंभीर मरीजों की इलाज की व्यवस्था नहीं होने से डॉक्टर को उन्हें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर मेडिकल कॉलेज या पटना रेफर करना पड़ता है. ऐसे में इन मरीजों की जान बचाने के लिए केंद्र सरकार की ओर से ट्रॉमा सेंटर खोलने के लिए 2015 में राशि स्वीकृत की गयी और 2019 में सदर अस्पताल में भवन बनकर तैयार हुआ और महंगी मशीनें लगने के बाद इसका उद्घाटन कर दिया गया. प्रदेश के दूसरे आइएसओ प्रमाणित मॉडल सदर अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड तो है, लेकिन यहां पर्याप्त विशेषज्ञ डॉक्टर और लाइफ सपोर्ट सिस्टम जैसी मशीनें नहीं हैं. एक साथ ज्यादा मरीज आ जाते हैं, तो गोरखपुर मेडिकल या पीएमसीएच रेफर करना पड़ता है. हादसों में गंभीर रूप से घायल, हेड इंजुरी, फ्रैक्चर और जले हुए मरीजों को तत्काल इलाज मुहिया कराने ट्रॉमा सेंटर लाया जाता है. एमसीआइ ने ट्रॉमा सर्विस को एक स्पेशियालिटी सर्विस के रूप में मान्य किया है. इसमें एक ही छत के नीचे ऑर्थोपेडिक, न्यूरोसर्जरी, बर्न प्लास्टिक सर्जरी जैसे एक्सपर्ट डॉक्टर और डायग्नोसिस फैसिलिटी होती है. सदर अस्पताल में शुक्रवार को इलाज कराने जादोपुर से आये मरीज सोनू कुमारी, आरती देवी, बरौली के राजू राम, थावे की ममता देवी ट्रॉमा सेंटर बंद रहने पर मायूस नजर आयी. उन्होंने कहा कि ट्रॉमा सेंटर चालू रहता, तो मरीज को बाहर नहीं लेकर जाना पड़ता. मरीज और उनके परिजनों दूसरी बार सांसद बने डॉ आलोक कुमार सुमन से ट्रॉमा सेंटर चालू कराने की उम्मीद जतायी है. वहीं इस संबंध में सीएस डॉ बीरेंद्र प्रसाद ने बताया कि सदर अस्पताल में हमारे यहां जगह की कमी है. नया भवन बन रहा है, उसमें ट्रॉमा सेंटर को शिफ्ट किया जायेगा. तब तक इमरजेंसी वार्ड में ही ट्रॉमा सेंटर चल रहा है. मशीनें लगा दी गयी हैं और ट्रॉमा सेंटर के भवन में फिलहाल एक्सरे और सीटी स्कैन चल रहा है. दूसरा ट्रॉमा सेंटर झझवा में चल रहा है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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