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सोनपुर मेला के थियेटरों में डांस के नाम पर बस भद्दे गानों पर थिरकती हैं लड़कियां, दर्द भरी है इनकी कहानी

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सोनपुर मेला में थियेटर पहले भी था और आज भी है, मगर इसके कलाकार और दर्शक दोनों बदल गये. कभी इस मेले में जादू दिखाने के लिए डाकू माधो सिंह भी आया करते थे. जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ लगती थी. वहीं आज थिएटर में सिर्फ फूहड़ डांस देखने की भीड़ लगती है.

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Sonepur Mela 2023 : सोनपुर मेला भले ही थियेटर के लिए प्रसिद्ध रहा हो, लेकिन अब सब कुछ बदल गया है. कलाकारों को डांस के नाम पर बस तेज रोशनी और भद्दे गानों पर थिरकना होता है. डांस में बदन दिखाना जरूरी है. कला की कोई विशेष जरूरत नहीं होती. यहां काम करने वाली हर लड़की का अपना दर्द और अपनी मजबूरी है. यहां शौक से कोई कलाकार नहीं आता.

नशे में पीटता था पति, तो भाग कर चली आई

थियेटर में काम करने वाली औरंगाबाद की सुमन बताती हैं कि उनकी शादी हो चुकी है. एक ढाई साल के बच्चे के साथ यहां काम करने आयी हूं. पति मेरे साथ मारपीट करते थे. बच्चा हुआ तो उन्होंने मुझे छोड़ दिया. मैं मायके चली गयी. लेकिन, पिता ने भी साथ नहीं दिया. वे भी नशे में मुझे पीटने लगे. तब एक दिन भाग कर पटना चली आयी. अपने बच्चे को पालने के लिए पटना में एक घर में नौकरानी का काम किया. जहां काम करती थी, वहीं से यहां के बारे में जानकारी व कनेक्शन मिला. पहली बार थियेटर डांस करने आयी हूं.

कुछ कह देंगे तो काम करना मुश्किल होगा…

वहीं, एक दूसरे थियेटर में काम करने वाली असम की ब्यूटी (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि यहां काम करने वाली अधिकांश लड़कियों की अपनी मजबूरी होती है. खुशी से तो यहां कोई नहीं आता. मेरे मम्मी-पापा नहीं है. एक छोटी बहन है. उसकी देख भाल मैं ही करती हूं. पहले गुवाहाटी में ही एक घर में काम करती थी. वहां एक व्यक्ति ने थियेटर डांस के बारे में बताया. मैं यहां चली आयी. तब से काम कर रही हूं. मैं छह वर्षों से घर नहीं गयी. बहन के लिए पैसा भेज देती हूं. बहन को मेरे काम के बारे में कुछ पता नहीं है. कई थियेटर मालिकों ने मेरा पैसा नहीं दिया. यहां और भी काम के लिए दबाव दिया जाता है. अगर मैं कुछ बोल दूंगी तो यहां काम करना मुश्किल हो जायेगा.

तेज रोशनी में घंटों डांस करना बहुत मुश्किल, हर दिन मिलता है एक हजार

एक थियेटर में हरिद्वार से आयी डांसर मन्नू (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि घर में पिता हैं, लेकिन कोई काम नहीं करते. एक वर्ष पहले मन्नू एक पंखा फैक्ट्री में काम करती थी, लेकिन कम पैसाें में परिवार नहीं चलने के कारण यहां आ गयी और थियेटर ज्वाइन किया. उन्होंने बताया कि उनकी मम्मी ने पहले आकर यहां सब कुछ देखा था, उन्हें ठीक लगा. तब मैंने काम की शुरुआत की. एक सीजन में काम करने के लिए उन्हें चार लाख मिलेगा. इस बार मेले में चार से पांच थियेटर लगे हुए हैं. इनमें काम करने वाले कलाकारों की संख्या 300 के लगभग है. एक थियेटर में 60 से 65 तक लड़कियां डांस करती हैं. शाम छह बजे से रात 12 बजे तक ग्रुप डांस होता है और रात 12 बजे से सुबह चार बजे तक एक-एक डांसर प्रस्तुति देती हैं. अधिकतर को एक दिन के काम के बदले 1000 रुपये मिलते हैं. आंखों के चूभने वाली तेज रोशनी में घंटों डांस करना बहुत ही मुश्किल काम है.

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सर्कस और परदे पर सिनेमा देखने आते थे काफी लोग

सोनपुर मेले में अस्सी से लेकर 90 के दशक तक सर्कस लगा करते थे. देश की मशहूर सर्कस कंपनियां इस मेले में आती थीं. सर्कस देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पटना, रांची सहित दूसरे राज्यों से भी यहां आते थे. इसी तरह सरकार की ओर से जगह-जगर परदे पर सिनेमा दिखाया जाता था, वह भी मुफ्त में. इसे देखने के लिए तो मारपीट तक हो जाती थी. थियेटर पहले भी था और आज भी है, मगर इसके कलाकार और दर्शक दोनों बदल गये. कभी इस मेले में जादू दिखाने के लिए डाकू माधो सिंह भी आया करते थे. डाकू माधो सिंह आत्मसमर्पण करने के बाद जादूगर बन गये थे. सोनपुर के उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि उनके शो में काफी भीड़ जुटा करती थी.

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