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अब सिर्फ बारिश के दिनों में ही अस्तित्व में आता है हाथीदह झरना

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शहर के पास स्थित नैली पंचायत के कोसडीहरा गांव के सामने पहाड़ी पर स्थित हदहदवा झरना आज कल पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जा रहा है.

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गया. शहर के पास स्थित नैली पंचायत के कोसडीहरा गांव के सामने पहाड़ी पर स्थित हदहदवा झरना आज कल पिकनिक स्पॉट के रूप में जाना जा रहा है. लेकिन, आज का हदहदवा झरना तीन दशक पहले तक हाथीदह झरने के नाम से विख्यात था. पुराने लोगों को कहना है कि इससे इतना पानी आता था कि हाथी तक को बहा ले जाने की तेजी होती थी. इससे निकलने वाले पानी से कई गांवों में पटवन का काम पूरा होता था. इसी झरने से निकलने वाला पानी मधुश्रवा ( फिलहाल का मनसरवा नाला ) से होकर फल्गु नदी तक पहुंचता था. आबादी कम होने व शहरी विकास नहीं रहने के चलते यहां आसपास के गांव कोसडीहरा, नैली, खटकाचक, गोपीबिगहा व माड़नपुर आदि के किसानों के पटवन का काम भी इसी जलस्राेत से चल जाता था. पत्थर माफियाओं की टेढ़ी नजर ने हाथीदह झरना को पूरी तौर तहस-नहस कर दिया. तीन दशक पहले से यहां झरना से सालों भर पानी गिरता था. अब यह झरना सिर्फ बारिश के दिनों में ही अस्तित्व में आता है. पहले किसान यहां के पानी को नैली आहर में जमा कर उससे आठ माह खेती का काम करते थे. अब किसान पूरी तौर से बिजली व्यवस्था पर निर्भर हो गये हैं. हाथीदह झरना व मधुश्रवा नदी को बर्बाद करने में हर किसी का हाथ है. हाथीदह झरथे के आसापास की पहाड़ी को गिट्टी बनाने के लिए सैकड़ों मशीन लगाये गये. इसके साथ ही मधुश्रवा नदी की जमीन पर अतिक्रमण कर भूमाफियाओं ने जमीन को बेच दिया. वर्तमान में नदी का अस्तित्व समाप्त होकर नाला बन गया है. शहर के विस्तार ने इस मधुश्रवा नदी से होकर फल्गु नदी में पहुंचने वाला साफ पानी अब लोगों के घरों के नाली का पानी ही फल्गु में जाता है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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