जितेंद्र मिश्रा, गया
गया के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज (ANMMCH) के इमरजेंसी वार्ड में इन दिनों मौतों का आंकड़ा बढ़ है. इसका मुख्य कारण शहर के प्राइवेट अस्पतालों से अंतिम समय में मरीजों को यहां रेफर करना माना जा रहा है. आंकड़े देखे, तो अप्रैल माह में यहां के इमरजेंसी वार्ड में लगभग 3800 मरीज भर्ती हुए. इसमें 1800 मरीज लामा ( लीव अगेंस्ट मेडिकल एडवाइस ) हो गये. ऐसे देखा जाये कि इमरजेंसी वार्ड में आइसीयू को मिलाकर महज 80 बेड ही हैं. हर दिन यहां 110 से अधिक मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं. इतने मरीज को यहां रखना भी संभव नहीं हो पाता है.
अप्रैल माह में मौतों का आंकड़ा 373 रहा है. इसमें इलाज के दौरान मौत 139, प्राइवेट अस्पतालों से गंभीर स्थिति में आये मरीजों की इलाज शुरू होने से पहले मौत 119, इसके अलावा ब्राॅट डेथ वाले मरीजों की संख्या 115 के करीब रही. इस माह अब तक इलाज के दौरान करीब 212 की मौत की सूची यहां है. इसमें इलाज के दौरान करीब 90, प्राइवेट अस्पताल से आये इलाज शुरू होने से पहले मौत करीब 62, पहले से इमरजेंसी वार्ड पहुंचे ब्रॉट डेथ मरीजों की संख्या करीब 55-60 रही है. मौतों का यहां आंकड़ा बढ़ने से अस्पताल प्रशासन की चिंता बढ़ गयी है.
अस्पताल सूत्रों के अनुसार, यहां पर ज्यादातर मौतों का कारण शहर के विभिन्न प्राइवेट अस्पतालों से अति गंभीर मरीजों को यहां रेफर करना है. मरीज से पूरा पैसा ले लिया जाता है इसके बाद हालत अंतिम स्थिति में पहुंचने पर मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया जाता है. इसके चलते यहां पर मौत का आंकड़ा बहुत ही बढ़ गया है.
आइसीयू में बेड की कमी
इमरजेंसी में प्रथम तल्ले पर 14 व ग्राउंड फ्लोर पर छह बेड का आइसीयू है. इमरजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार, प्राइवेट अस्पतालों से आये मरीजों की स्थिति गंभीर होने के कारण उन्हें आइसीयू में अस्पताल पहुंचते ही रखना पड़ता है. यहां पर प्रथम तल्ले पर छह से सात बेड पर प्राइवेट अस्पताल से पहुंचे मरीजों को कई महीनों से रखा जा रहा है. हर दिन प्राइवेट अस्पतालों से गंभीर हालत में चार से पांच मरीज आइसीयू आते ही हैं. इसमें कम की जान बच पाती है. सूत्रों का कहना है कि कुछ मरीजों की मौत इन्फेक्शन के कारण भी हो जाती है.
क्या कहते हैं उपाधीक्षक
एएनएमएमसीएच में निचले स्तर के कर्मचारियों के समझाने पर यहां से मरीज को उठाकर परिजन प्राइवेट अस्पताल में लेकर चले जाते हैं. वहां पर उनका आर्थिक शोषण के बाद जब पैसा खत्म हो जाता है, तो स्थिति गंभीर होने पर दोबारा यहां पर ही भेज दिया जाता है. यहां अति गंभीर होने के चलते इसमें कई की जान चली जाती है. लोगों को इसमें संभल कर व समझदारी से काम लेना होगा. गंभीर लाये गये मरीजों को धीरे-धीरे ही ठीक किया जा सकता है. यहां पर मौतों का आंकड़ा लोगों की नासमझी के कारण बढ़ता जा रहा है.
यहां की मजबूरी है कि किसी तरह के मरीज आने पर उनका इलाज यहां शुरू किया ही जायेगा. प्राइवेट अस्पतालों से मौत के कगार पर पहुंचे मरीज ही यहां आते हैं. पहले तुरंत अगर मगध मेडिकल आते हैं, तो उनमें मौत का आंकड़ा न के बराबर होता है. लोगों को अस्पताल इलाज के लिए पहुंचने पर पूरी तौर से सावधान रहना होगा. इसके साथ ही अस्पताल प्रशासन की ओर से भी कई स्तर पर कड़ाई की जा रही है.
Also Read: बिहार में 5 सीटों पर थम गया चुनाव प्रचार का शोर, 80 उम्मीदवार मैदान में, दांव पर कई दिग्गजों की साख