27.1 C
Ranchi
Monday, February 3, 2025 | 03:35 pm
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

अंग्रेजी हुकूमत के समय बुद्ध के संदेश से दूर होने लगे थे लोग, जानिए पंडित नेहरु ने कैसे बोधगया की तरफ विश्व का खींचा ध्यान

Advertisement

ढाई हजार साल पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने महात्मा बुद्ध की जयंती वैशाख पूर्णिमा यानी बुधवार को धूमधाम से मनायी जा रही है. तथागत बुद्ध की ज्ञान स्थली महाबोधि मंदिर सहित अन्य बौद्ध स्थलों पर भी जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है. तब, जब पूरी दुनिया में राज्य विस्तार व सत्ता के लालच में चारों ओर खून खराबा और हिंसा का दौर चल रहा था, दुनिया की सांसारिक पीड़ा से खिन्न होकर कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने इस सांसारिक पीड़ा से मुक्ति पाने का मार्ग ढूंढ़ने का निश्चय किया और राज पाट, पत्नी और पुत्र को छोड़ कर अज्ञात की ओर निकल पड़े. रास्ते में उन्हें विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. लेकिन, वह ज्ञान प्राप्ति की चाहत लेकर आगे बढ़ते गये और अंततोगत्वा बोधगया में नीलांजना नदी के कछार पर स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे वैशाख पूर्णिमा की रात को उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई.

Audio Book

ऑडियो सुनें

ढाई हजार साल पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने महात्मा बुद्ध की जयंती वैशाख पूर्णिमा यानी बुधवार को धूमधाम से मनायी जा रही है. तथागत बुद्ध की ज्ञान स्थली महाबोधि मंदिर सहित अन्य बौद्ध स्थलों पर भी जयंती समारोह का आयोजन किया जा रहा है. तब, जब पूरी दुनिया में राज्य विस्तार व सत्ता के लालच में चारों ओर खून खराबा और हिंसा का दौर चल रहा था, दुनिया की सांसारिक पीड़ा से खिन्न होकर कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ ने इस सांसारिक पीड़ा से मुक्ति पाने का मार्ग ढूंढ़ने का निश्चय किया और राज पाट, पत्नी और पुत्र को छोड़ कर अज्ञात की ओर निकल पड़े. रास्ते में उन्हें विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. लेकिन, वह ज्ञान प्राप्ति की चाहत लेकर आगे बढ़ते गये और अंततोगत्वा बोधगया में नीलांजना नदी के कछार पर स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे वैशाख पूर्णिमा की रात को उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई.

- Advertisement -

बुद्ध को अलौकिक शक्ति का आभास हुआ. उसके बाद उन्होंने मानव जाति को उस ज्ञान से अवगत कराने के निश्चय के साथ निकल पड़े. इस दरम्यान उन्हें तब के विचारवाद का सामना भी करना पड़ा. लेकिन, बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के सात सप्ताह गुजारने के बाद पश्चिम दिशा की ओर चल पड़े और सारनाथ में उन्होंने अपना पहला प्रवचन दिया. तब आनंद सहित कुल पांच शिष्यों ने महात्मा बुद्ध से शिक्षा ग्रहण की और बुद्ध ने उन्हें अलग-अलग क्षेत्रों में ज्ञान बांटने का निर्देश दिया.

इतिहास के मुताबिक महात्मा बुद्ध के अहिंसा का रास्ता को प्राथमिकता दिये जाने की सीख ने सम्राट अशोक को द्रवित कर दिया और कलिंग के युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने बुद्ध की शरण पकड़ ली. सम्राट ने अपने पुत्र व पुत्री को दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में महात्मा बुद्ध के संदेशों को प्रसारित करने का आदेश दिया और इसी कड़ी में श्रीलंका आदि देशों का सम्राट के पुत्र व पुत्री ने भ्रमण किया. कालांतर में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ और तब के कई निरंकुश राजाओं ने भी बुद्ध के संदेशों को अंगीकार करते हुए हिंसा की राह छोड़ दी. अंगुलीमाल डाकू की क्रूरता भी समाप्त हो गयी और कई राजा महात्मा बुद्ध के अनुयायी बन गये. लेकिन, बाद में मुगलों के शासन काल और अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत में महात्मा बुद्ध के संदेशों का विलोप होता चला गया.

Also Read: Buddha Purnima 2021: सिद्धार्थ ने गया के इस गुफा में छह वर्षों तक की थी कठोर तपस्या, सुजाता ने जब खिलाई खीर तो जानिए बुद्ध को क्या मिला था ज्ञान

भारत की आजादी के बाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दक्षिण पूर्व एशिया के देशों को बौद्ध धर्म के अनुयायी के रूप में देखते हुए भारत से उनके संबंध को और मधुर करने के उद्देश्य से वर्ष 1956 में बोधगया सहित पूरे भारत में व्यापक और वृहद पैमाने पर बुद्ध जयंती समारोह का आयोजन कराया. पंडित नेहरू ने तब एक पुस्तक 2500 ईयर ऑफ बुद्धिज्म का लोकार्पण भी कराया. तब से भारत में बुद्ध जयंती समारोह का आयोजन प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा के दिन किया जाने लगा. पंडित नेहरू ने बोधगया में बौद्ध मठों के निर्माण कराने को प्राथमिकता दी और थाईलैंड, जापान, श्रीलंका सहित अन्य देशों को बोधगया में बौद्ध मठ स्थापित करने के लिए प्रेरित किया. उन्हें सहूलियत भी दी गयी.

वर्तमान में बोधगया में विभिन्न देशों के करीब सौ से ज्यादा बौद्ध मठ स्थापित हैं, जहां महात्मा बुद्ध की मूर्तियों के साथ ही बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणी प्रवास करते हैं. पूजा-अर्चना और साधना करते हैं. दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में बौद्ध धर्म की व्यापकता को देखते हुए सरकार ने भी उनकी सुविधा और सहूलियत का ध्यान रखा और उन्हें यहां तक आवाजाही करने आदि में रियायतें दीं. इसका फलाफल यह है कि पिछले दो दशकों में बोधगया व भारत के अन्य बौद्ध स्थलों तक आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं की संख्या लाखों में पहुंच गयी. इससे स्थानीय स्तर के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में भी सहयोग मिला.

अब जबकि भगवान बुद्ध की शांति और अहिंसा के विचारों को दुनिया के लगभग हिस्सों में अंगीकार किया जा रहा है और लोगों को यह समझ में आने लगा है कि बुद्ध के शरण में ही विश्व बिरादरी को शांति और सुकून मिल सकता है. बुद्ध जयंती के इस पावन अवसर पर आएं हम संकल्प के साथ एक-दूसरे का सहयोग करते हुए आगे बढ़ें और इस सांसारिक दुखों से छुटकारा पाने का मार्ग प्रशस्त करें.

POSTED BY: Thakur Shaktilochan

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें