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बिहार में 300 साल पहले पूर्णिया में बनी थी दुर्गा की पहली पार्थिव प्रतिमा, आज भी बंगाल से आते हैं मूर्तिकार

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इस साल नवरात्र की शुरुआत 15 अक्तूबर से हो रही है. कलाकार इससे पहले बंगाल लौट जाना चाहते हैं. शहर में करीब 20 प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है, जबकि जिलेभर की मूर्तियों की संख्या सौ से ज्यादा है. घरों व मंदिरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों को भी सम्मिलित किया जाये तो यह संख्या और भी बढ़ जायेगी.

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पटना/ पूर्णियां. दुर्गा पूजा को भव्य स्वरूप देने के लिए बंगाल के मूर्तिकारों का बड़ा कुनबा पूर्णिया पहुंच चुका है. इस कुनबे में अलग-अलग कलाकार शामिल हैं, जो कहीं मा की प्रतिमा तो कहीं पूजन पंडाल को भव्य स्वरूप देंगे. इस साल नवरात्र की शुरुआत 15 अक्तूबर से हो रही है. कलाकार इससे पहले बंगाल लौट जाना चाहते हैं. शहर में करीब 20 प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है, जबकि जिलेभर की मूर्तियों की संख्या सौ से ज्यादा है. घरों व मंदिरों में स्थापित की जाने वाली मूर्तियों को भी सम्मिलित किया जाये तो यह संख्या और भी बढ़ जायेगी. इन तमाम मूर्तियों का निर्माण बंगाल से आए मूर्तिकार कर रहे हैं. खुश्कीबाग स्थित कप्तान पाड़ा मुहल्ला खास तौर पर प्रतिमा निर्माण के लिए ही जाना जाता है. पहले यह बंगाल के कारीगरों का बसेरा था, पर कुछ लोग बाहर चले गये. अब यहां भी बंगाल के मूर्तिकार सीजन में चले आते हैं.

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300 साल पहले पूर्णिया में बनी थी मां दुर्गा की पहली पार्थिव प्रतिमा

दुर्गा की पार्थिव प्रतिमा की पूजा परंपरा के संबंध में बनैनी राज घराने के सदस्य कुमार गिरिजानंद सिंह कहते हैं कि बिहार में 17वीं सदी से पहले दुर्गा की पार्थिव प्रतिमा की पूजा का कोई प्रमाण नहीं मिलता है. इस इलाके में इस परंपरा की शुरुआत करने का श्रेय बनैली राज परिवार को जाता है. बनैली राज में दुर्गास्थान को देविघरा कहा जाता है. बनैली राज के मूल संस्थापक देवानंद सिंह चौधरी ने 1725 में पहला देविघरा अमौरगढ़ में बनवाया था, जो 1934 के महाभूकम्प में धराशायी हो गया. इसके बाद 1870 में बनैली के राजा लीलानंद सिंह की धर्मपत्नी रानी चंडीश्वरी देवी ने चंपानगर में पार्थिव दुर्गा की स्थापना कर पूजन की शुरुआत की, जो आज भी वहां पूरी श्रद्धा के साथ हो रही है. कुमार गिरिजानंद सिंह ने कहा कि पूर्णिया के बाद दरभंगा में पार्थिव दुर्गा की स्थापना कर पूजा करने की परंपरा शुरू हुई. उन्होंने कहा कि मधुबनी जिले के नवटोल में पार्थिव दुर्गा की पूजा 1850 के आसपास शुरू हुई. संभवतः वहां भी बनैली राज परिवार ने ही मिट्टी की प्रतिमा बना कर जाया करती थी.

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कचैटी मिट्टी से बनायी जा रही देवी की प्रतिमा

मूर्तिकार रामपाल ने बताया कि पूर्णियां में दुर्गा जी की मूर्ति कचैटी मिट्टी से बनाई जाती हैं. इसमें एक काली मिट्टी तो दूसरी पीली मिट्टी होती है. इस मिट्टी से बनी मूर्ति बहुत ही मजबूत व शाइनिंग होती है. मिट्टी चांप के खेत से लाई जाती हैं जो महंगा होता है. मूर्ति बनाने में लकड़ी, बांस, कांटी, पुआल आदि का भी उपयोग किया जाता है. कारीगर व मूर्तिकारों के कुनबा में मालदा से आए अमरजीत, सोनू पाल, विश्वजीत आदि ने बताया कि उन लोगों को शारदीय नवरात्र में प्रतिवर्ष माता रानी की प्रतिमा और पंडाल बनाने का बेसब्री से इंतजार रहता है. पिछले एक दशक से वे लोग पंडाल बनाने का काम करते हैं. यह उनका आमदनी का जरिया तो है ही, साथ-साथ लोगों का उत्साह देखकर भी खुशी मिलती है. मूर्तिकार रामू पाल ने बताया कि विशेष आर्डर पर मनचाहे रूप व आकार की मूर्तियां भी वे तैयार करते हैं.

चंपानगर व रामनगर में दुर्गापूजा में होगी कैमरे की निगरानी

हर साल की तरह इस साल भी दुर्गापूजा को लेकर चंपानगर और रामनगर में नवमी व दसवीं तिथि को मेला की भारी भीड़ होने की संभावना है. ऐसे में प्रशासन ने रामनगर दुर्गा मंदिर में माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापन पूजन के क्रम में होने वाली समस्याओं की समीक्षा की गयी. ओपी अध्यक्ष ने बताया कि चंपानगर मंदिर परिसर में महिला व पुरुष श्रद्धालुओं के लिए अलग-अलग बेरिकेडिंग की व्यवस्था रहेगी. पूजा कमेटी द्वारा मंदिर प्रांगण में सीसीटीवी कैमरा लगाने की व्यवस्था की जायेगी. भीड़भाड़ वाली जगह पर स्थायी रूप से पुलिस बल तैनात रहेगा. बताया गया कि मूर्ति विसर्जन से एक घंटा पूर्व चंपानगर पेट्रोल पंप से चरैया रहिका गांधी चौक तथा चंपानगर दुर्गा मंदिर से पश्चिम बेरिकेडिंग लगा कर वाहनों के आवागमन की दिशा परिवर्तित रहेगी. बैठक में बनैली राज परिवार के विनोदानंद सिंह, मृदुला सिन्हा, मुखिया मंगल ऋषि, मुखिया प्रेम प्रकाश मंडल, नगर पंचायत चंपानगर के मुख्य पार्षद प्रतिनिधि निर्भय सिंह व चंपानगर बाजार संघ अध्यक्ष विनोद माधव आदि मौजूद थे.

इनपुट: पूर्णिया संवाददाता.

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