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60 यात्रियों की क्षमता वाली बसों में सवार कर लिए जाते 90 से 100 यात्री

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दिल्ली व कोलकाता जाने वाली बसों में क्षेत्र के लोग जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे हैं.

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बिरौल. दिल्ली व कोलकाता जाने वाली बसों में क्षेत्र के लोग जान जोखिम में डालकर यात्रा कर रहे हैं. ट्रेन में आरक्षण नहीं मिलने के कारण इन बसों में यात्रियों को भेड़-बकरियों की तरह ठूस-ठूसकर बैठाया जाता है. जिन बसों में 40 यात्रियों के बैठने व 20 स्लीपर सीटों की व्यवस्था है, उसमें 90 से सौ यात्रियों को ठूंस दिया जाता है. सीट नहीं मिलने पर कम भाड़ा लगने का प्रलोभन देकर विशेषकर मजदूर तबके के गरीब यात्रियों को चढ़ा लिया जाता है. वहीं सीजन के दौरान बस संचालक यात्रियों से मनमाना किराया भी वसूलते हैं. बिरौल-गंडौल मुख्य सड़क के हाटी-कोठी चौक से यात्रा कर रहे रजवा गांव के मो. अफ्तार, सोनपुर के सुरेश कुमार, पोखराम के मुकेश यादव ने बताया कि ट्रेन में आरक्षण नहीं मिलने पर जोखिम भरी बस यात्रा करने करनी मजबूरी है. इधर, बस चालकों का दावा है कि वे यात्रियों को सभी सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं. हालांकि इनके दावे हकीकत से ठीक उलट नजर आते हैं. कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी जाती. इतना ही नहीं सुरक्षा मानकों का भी मुकम्मल ख्याल नहीं रखा जाता. कई बसों में तो एक ही चालक होते हैं. आये दिन हो रहे भीषण हादसे की सबसे बड़ी वजह इसे ही माना जाता है. बता दें कि बिरौल से ऑफ सीजन में औसतन दो बसें नित्य खुलती हैं. इसमें अधिकांश बसें यूपी नंबर की रहती हैं, जिस पर टूरिस्ट बस अंकित होता है. कुछ बस दिल्ली तो कुछ पंजाब नंबर की भी चलती हैं. जानकारों की मानें तो पर्यटन के नाम पर परमिट लेकर आम यात्रियों को ढोने का खेल किया जा रहा है, जिस पर किसी की नजर नहीं है. ज्ञातव्य हो कि दिल्ली, पंजाब, हरियाणा क्षेत्र के लिए बसें संचालित होती हैं, जहां के लिए ट्रेनों में आरक्षण उपलब्ध नहीं है. संपर्क क्रांति में तो अगले चार महीने तक वेटिंग चल रहा है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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