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बिहार के इस मंदिर से शुरू हुई थी छठ पूजा, भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है रहस्य…जानें पौराणिक कहानी

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Chhath puja Surya Mandir Nalanda: नालंदा जिले के बिहारशरीफ स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर से भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा यहीं से शुरू हुई थी. इस मंदिर का संबंध भगवान कृष्ण से भी जुड़ा हुआ है.

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Chhath puja: बिहार को पर्व त्योहारों का देश कहा जाता है. यहां कि सभ्यता में पौराणिक काल से तीज-त्योहारों का समावेश है. प्रदेश की पावन भूमि पर अलग-अलग सभ्यता, धर्म और संस्कृति से जुड़े लोग रहते है, जिससे इन व्रत-त्योहारों का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. बिहार की इस धरा पर कदम-कदम पर कई ऐसे पौराणिक मठ-मंदिर हैं. जहां देश के कोने-कोने से भक्त आते रहते हैं. ऐसा ही एक मंदिर है, नालंदा जिले के बिहारशरीफ स्थित ऐतिहासिक सूर्य मंदिर. मान्यता है कि भगवान भास्कर को अर्घ्य देने की परंपरा यहीं से शुरू हुई थी.

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इसी मंदिर से शुरू हुई थी छठ की पूजा

कहा जाता है कि यह मंदिर द्वापरकालीन युग का है. मान्यता है कि इसी मंदिर से सूर्य देव की आराधना का त्योहार छठ की शुरूआत हुई थी. यह मंदिर नालंदा जिले के बिहारशरफी से दस किमी कि दूरी पर बड़गांव में स्थित है. धर्म के जानकारों की मानें तो भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र राजा शाम्ब कुष्ठ रोग हो गया था. जिसके बाद उन्होंनें मंदिर के पास स्थित सरोवर में स्नान-ध्यान कर सूर्य की उपासना की थी. जिसके बाद राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिली थी.

भगवान श्रीकृष्ण ने भी की थी यहां आराधना

धर्म के जानकारों का कहना है कि द्वापरकाल में जब भगवान कृष्ण यहां पांडवों के साथ राजगीर आए हुए थे, तो उन्होंने बड़गांव पहुंचकर भगवान भास्कर की आराधना की थी. इसके अलावे मगध सम्राट जरासंध और अजातशत्रु ने भी यहां पर दीनानाथ की विधि-विधान से पूजा आराधना की थी. इस मंदिर की प्रसिद्धि देश के कोने-कोने तक फैली हुयी है. कार्तिक और चैती छठ पर हजारों श्रद्धालु यहां अर्घ्य देने पहुंचते हैं. यह मंदिर देश के 12 प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक हैं. बताया जाता है कि 1934 में आयी भयावह भूकंप में यह मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था. जिसके बाद इस मंदिर को फिर से दुरुस्त कराया गया था.

पौराणिक कहानी…

बड़गांव से छठव्रत के प्रारंभ होने के कई गाथाएं प्रचलित हैं. धर्म के जानकार बतातें हैं कि एक बार महर्षि दुर्वाशा भगवान कृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका गए हुए थे. उस दौरन भगवान माता रूक्मीणि के साथ विहार कर रहे थे. महर्षि दुर्वाशा को देखकर राजा शाम्ब को किसी बात पर हंसी आ गयी. जिसके बाद उन्होंने राजा शाम्ब को कुष्ठ रोग होने का श्राप दे दिया था. राजा शाम्ब के कुष्ठ रोग से ग्रसित होने के बाद भगवान वासुदेव ने शाम्ब को रोग से निवारण के लिए सूर्य की उपासना और सूर्य राशि की खोज करने की सलाह दी थी.

राजा शाम्ब को इस तरह मिली थी कुष्ठ से मुक्ती

भगवान कृष्ण की सलाह पर जब राजा शाम्ब सूर्य राशि की खोज में भटकते-भटकते राजगीर तक आ पहुंचे. इस दौरान उनको जोर की प्यास लगी. इसके बाद उन्होंने अपने सेवक को कहीं से पानी खोजकर लाने का आदेश दिया. जंगल होने के चलते सेवक को दूर-दूर तक पानी नहीं मिला. काफी तलाश करने के बाद सेवक को एक गड्ढे में थोड़ा सा जल मिला. लेकिन वह काफी गंदा था. जब सेवक ने पानी को लाकर राजा शाम्ब को दिया, तो राजा ने उस पानी से हाथ-पैर को घोकर उस जल के सेवन किया. जल का सेवन करते ही राजा शाम्ब का कुष्ठ रोग ठीक होने लगा. तब राजा ने 49 दिनों तक राजगीर में रहकर सूर्य उपासना और अर्घ्यदान की, तब जाकर राजा शाम्ब को महर्षि दुर्वाशा के श्राप से मुक्ति मिली.

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