![बिहार: बेलाउर के सूर्य मंदिर में छठ पर बड़ी संख्या में आते है श्रद्धालु, सिक्का वापस करने की है अद्भुत परंपरा 1 Undefined](https://cdnimg.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/Prabhatkhabar/2023-11/d4200246-31c4-4937-9370-8bb9dc4f1ce7/fe880160-25e4-45d5-bf4d-f9c93d2ab99f.jpg)
बिहार के भोजपुर जिले में बेलाउर सूर्य मंदिर स्थित है. यहां छठ में व्रतियों की भारी भीड़ उमड़ती है. प्रसिद्ध सूर्य मंदिर में हर साल छठ के मौके पर बिहार सहित पूरे उत्तर भारत से हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है.
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उदवंतनगर प्रखंड के बेलाउर स्थित सूर्य मंदिर की प्रसिद्धि पूरे क्षेत्र में है. भोजपुर मुख्यालय से 20 किलोमीटर उदवंतनगर प्रखंड दूर अवस्थित बेलाउर गांव स्थित मोनिया बाबा सूर्य मंदिर की बड़ी महिमा है.
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इस मंदिर कि सबसे खासियत बात है कि यह कई एकड़ बना तालाब के बीचों- बीच स्थापित है, जो मंदिर की सुंदरता को बढ़ा देता है. इस मंदिर कि ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी व्रती आते हैं, वह खाली हाथ नहीं लौटते हैं.
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भगवान भास्कर के मंदिर में अब यूपी, बिहार, झारखंड जैसे राज्यों से नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से भी भागवान सूर्य की पूजा करने के लिए व्रती आते हैं. ऐसे तो सालों भर श्रद्धालुओं का जमावड़ा यहां लगता है, पर हर रविवार के दिन इस मंदिर में खास तरह का मेला भी लगता है. साथ ही लग्न के दिन में दूर दूर से शादी- विवाह के लिए भी लोग यहां आते हैं.
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इस मंदिर में साल में चैती व कार्तिक मास में होने वाले लोक आस्था पर्व के छठ को करने लेकर लाखों कि संख्या में लोग जुटते हैं. मंदिर में व्रतियों के भीड़ पर्व के दूसरे दिन लोहर से ही जुटने लगती है. सबसे खास बात यह है कि मंदिर कमिटी के सदस्य व्रतियों के सुविधा के लिए जी जान से जुटे रहते हैं. प्रशासन का भी भरपूर सहयोग रहता है.
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इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पुजारी से मनोकामना सिक्का लेने को जुटते हैं. क्योंकि सिक्का लेने पर मनोकामना जरूर पूर्ण होता है. मनोकामना पूरा होने पर सिक्का को लौटा जाते है. यहां के पुजारी पुरोशतम जी बताते हैं कि हम लोग स्वेक्षा से इस मंदिर में सेवा करते हैं. क्योंकि इस मंदिर में सेवा करने से हमारे कई परिवार आज सुखमय जीवन बसर कर रहे हैं. हमारे कई पीढ़ी से लोग इस मंदिर में पुजारी बन पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. इस मंदिर का गेट पूजा पाठ के लिए दो बार खुलता है, पहला सुबह चार बजे से बारह बजे तक दूसरा संध्या चार बजे रात आठ बजे तक यहां पर प्रसाद के रूप में दूध व लावा चढ़ाया जाता है.
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बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 1949 में हुआ था. कहा जाता है कि गांव में एक बार भीषण सूखा पड़ा था. इसी दौरान इस तलाब व मंदिर का निर्माण राजा बावन सुब्वा ने कराया था.
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गांव के लोगों का कहना है कि इस मंदिर के मूर्ति का निर्माण आगरा के ताजमहल से बने सकरना पत्थर से किया गया है.