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बशीरहाट लोकसभा : कभी था यह कम्युनिस्टों का गढ़, अब माना जाता है तृणमूल का किला

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पश्चिम बंगाल का बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र कम्युनिस्टों के मजबूत किले के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब इसे तृणमूल कांग्रेस का मजबूत स्तंभ माना जाता है.

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एक वक्त था जब पश्चिम बंगाल का बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र कम्युनिस्टों के मजबूत किले के तौर पर देखा जाता था, लेकिन अब इसे तृणमूल कांग्रेस का मजबूत स्तंभ माना जाता है. हाल ही में हिंसा और जन आक्रोश के चलते देशभर में मशहूर हुआ संदेशखाली इसी लोकसभा क्षेत्र में है. अब यहां भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संदेशखाली के मुद्दे को चुनाव में भुनाने की तैयारी में जुटी है.

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भाजपा के आला नेता प्राय: संदेशखाली का दौरा कर रहे हैं. इधर तृणमूल ने यहां से मौजूदा सांसद सह अभिनेत्री नुसरत जहां के बदले सांगठनिक नेता पर भरोसा जताया है. बशीरहाट का चुनावी रण दिलचस्प होने की संभावना जतायी जा रही है.

उत्तर 24 परगना जिले में स्थित बशीरहाट कभी कम्युनिस्टों का गढ़ माना जाता था. हालांकि हालिया स्थिति पर नजर डालें तो तृणमूल ने यहां अपनी स्थिति काफी मजबूत बना ली है. 1952 में हुए पहले चुनाव में भाकपा के रेनू चक्रवर्ती ने जीत हासिल की थी.

Also Read : पश्चिम बंगाल : रणक्षेत्र बना बशीरहाट,भाजपा समर्थकों व पुलिस के बीच झड़प, लाठीचार्ज, कई घायल

हालांकि, यहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और कालांतर में बांग्ला कांग्रेस ने भी अपना दबदबा दिखाया था. लेकिन इसके बाद भाकपा के इंद्रजीत गुप्ता और फिर अजय चक्रवर्ती की लगातार जीत की वजह से यहां कम्युनिस्टों का वर्चस्व कायम हो गया था.

सीएए के नाम पर नागरिकता नहीं छीनने देंगे. अगर किसी भी समुदाय के परिवार के साथ कोई भेदभाव होता है, तो उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे.

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री

वर्ष 1980 और फिर 1985 में इंद्रजीत गुप्ता ने यहां से जीत दर्ज की थी. बीच में भाकपा के ही मनोरंजन सूर यहां से दो बार सांसद बने. इसके बाद 1996 से भाकपा के अजय चक्रवर्ती का विजय रथ चला.

वर्ष 1996 के चुनाव से लेकर 2004 के आम चुनाव तक उन्हें ही लगातार जीत मिलती रही. 2009 में राज्य की राजनीति में परिवर्तन होना शुरू हो गया था. 2009 में हाजी नुरूल इस्लाम यहां से तृणमूल के टिकट पर विजयी हुए.

हालांकि इसके बाद पश्चिम बंगाल में सत्ता परिवर्तन के पश्चात 2014 में इदरीस अली को तृणमूल का टिकट मिला और उन्हें बड़ी जीत हासिल हुई. 2019 में तृणमूल ने उनकी जगह अभिनेत्री नुसरत जहां को चुनाव मैदान में उतारा. नुसरत ने भी यहां शानदार जीत दर्ज की.

सीएए नागरिकता देने के लिए है, किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं. केंद्र ने पहले ही कहा था कि इसे लागू किया जायेगा.

सुकांत मजूमदार, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष

वर्ष 2009 में नुरुल इस्लाम को चार लाख 79 हजार 747 वोट यानी 45.92 फीसदी वोट मिले और उन्होंने भाकपा के अजय चक्रवर्ती को करीब 60 हजार वोटों से हराया था. इदरीस अली ने 2014 के चुनाव में भाकपा के नुरुल शेख को करीब एक लाख 10 हजार वोटों से परास्त किया था. इदरीस अली को 38.65 फीसदी वोट मिले थे, जबकि नुरुल शेख को 30.04 फीसदी वोट मिले.

मुस्लिम बहुल क्षेत्र है बशीरहाट

कहा जाता है कि बांग्लादेश के साथ पश्चिम बंगाल की जो 2217 किलोमीटर की लंबी सीमा है उसमें बशीरहाट को अन्यतम सर्वाधिक छिद्रपूर्ण माना जाता है. यानी बांग्लादेशी घुसपैठ का आरोप यहां कई बार लगता रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बशीरहाट में 54 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.

खोयी जमीन को वापस हासिल करने की कवायद में वाममोर्चा

कभी बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र उनका गढ़ हुआ करता था लेकिन वक्त के साथ राज्य की अन्य सीटों के साथ-साथ बशीरहाट सीट भी वाममोर्चा के हाथ से निकल गयी. आखिरी बार 2004 में भाकपा के अजय चक्रवर्ती ने यह सीट जीती थी.

Also Read : संदेशखाली पर बशीरहाट की सांसद नुसरत जहां ने तोड़ी चुप्पी, कहा : कानून से ऊपर कोई नहीं

वर्ष 2014 में भाकपा के नुरुल होदा ने भले ही अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर चुनाव में दूसरा स्थान हासिल किया था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाकपा प्रत्याशी पल्लव सेनगुप्ता महज करीब 68 हजार वोट ही हासिल कर सके. वह चौथे स्थान पर रहे.

इस बार के लोकसभा चुनाव में वाममोर्चा के साथ आइएसएफ ने हाथ मिलाया है. अभी तक सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है लेकिन माना जा रहा है कि मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण यह सीट मोर्चा, आइएसएफ को दे सकता है.

मैं पार्टी से नाराज जरूर हूं, लेकिन पार्टी नहीं छोड़ी. मैंने किसी भी पद से इस्तीफा नहीं दिया है.

शताब्दी राय, तृणमूल सांसद

करीब 20 वर्षों बाद एक बार फिर से वाममोर्चा अपने सहयोगी दल के जरिये इस सीट को हासिल करने की संभावना तलाश रहा है. इससे पहले संदेशखाली के मुद्दे को लेकर वामपंथी संगठनों ने इलाके में जोरदार प्रदर्शन भी किया है.
इन संगठनों में डीवाइएफआइ और एसएफआइ शामिल हैं.

हाल ही में बशीरहाट एसपी कार्यालय का घेराव कर डीवाइएफआइ और एसएफआइ ने ज्ञापन सौंपा था. इसके पहले इलाके में जुलूस भी निकाला था, जिसे पुलिस ने रोक दिया था. आंदोलनकारियों की पुलिस के साथ हल्की झड़प भी हुई.

वाममोर्चा राज्य में अपनी पुरानी स्थिति हासिल करने के लिए कांग्रेस और आइएसएफ के साथ मिलकर चलने की रणनीति पर काम कर रहा है. ऐसे में बशीरहाट का चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना जतायी जा रही है.

तृणमूल का भरोसा सांगठनिक ताकत और संगठन के नेता पर

तृणमूल की ओर से उम्मीदवारों की सूची की घोषणा न किये जाने तक बशीरहाट लोकसभा केंद्र के लिए नामों को लेकर अफवाहों का बाजार गर्म था. नुसरत जहां को क्या फिर से टिकट मिलेगा या नहीं या फिर उन्हें अगर नहीं मिलता है, तो मैदान में तृणमूल किसे उतारेगी.

हजारों सवालों के बीच अभिषेक बनर्जी द्वारा सूची की घोषणा के बाद सारे सवालों के जवाब मिल गये. बशीरहाट केंद्र से हाजी नुरुल इस्लाम को तृणमूल ने टिकट दिया है. हाजी नुरूल 2016 और 2021 में विधानसभा चुनाव में जीत के बाद हाड़वा के विधायक बने थे. लेकिन बशीरहाट लोकसभा केंद्र उनके लिए नया नहीं है.

वर्ष 2009 से 2014 तक वही इस क्षेत्र से सांसद थे. 2009 में भाकपा के तत्कालीन सांसद अजय चक्रवर्ती को हरा कर उन्होंने तृणमूल को यह सीट दी थी. वर्तमान में हाजी नुरुल बशीरहाट सांगठनिक जिले के तृणमूल अध्यक्ष हैं. साथ ही राज्य के अल्पसंख्यक सेल के चेयरमैन भी वही हैं.

बारासात-1 ब्लॉक के बहेरा के रहने वाले हाजी नुरुल सांसद व विधायक के साथ-साथ जिला परिषद व पंचायत समिति के सदस्य भी रह चुके हैं. संदेशखाली की घटना की पृष्ठभूमि में तृणमूल ने सांगठनिक नेता पर ही भरोसा जताया है. सूत्रों के हवाले से पता चलता है कि नुसरत जहां को लेकर पार्टी के भीतर ही नाराजगी थी. संदेशखाली की घटना के बाद यह और स्पष्ट हो गयी.

हालांकि, नुसरत जहां का कहना था कि उन्होंने जो भी कदम उठाया, वह पार्टी के निर्देश पर ही उठाया था. लेकिन पार्टी ने उन पर भरोसा नहीं जताया है. बशीरहाट टाउन के तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष अभिजीत घोष के मुताबिक, पार्टी ने योग्य व्यक्ति को ही उम्मीदवार बनाया है. वाममोर्चा के शासनकाल में नुरुल के राजनीतिक संघर्ष की आंच वाम नेताओं ने भी महसूस की थी.

सीमा पार तस्करी और घुसपैठ हैं यहां की प्रमुख समस्याएं

बशीरहाट सीमा में गौ-तस्करी और घुसपैठ की शिकायत सदा से है. जानकारों के मुताबिक स्वरूपनगर, हिंगलगंज या संदेशखाली के इलाकों में नदी के मार्ग और सुंदरवन के जंगलों का भी बदमाश इस्तेमाल करते हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि इसे लेकर स्थानीय प्रशासन या पुलिस पूरी तरह बेपरवाह रहती है.

सीमा पार तस्करी
बशीरहाट लोकसभा : कभी था यह कम्युनिस्टों का गढ़, अब माना जाता है तृणमूल का किला 2

हालांकि, पुलिस का दावा है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में नाकाबंदी और तलाशी अभियान समय समय पर चलाया जाता है. बशीरहाट महकमा में 221 किलोमीटर का सीमांत इलाका है. नदी मार्ग 155 किलोमीटर का है और बाकी स्थल मार्ग है.

इसमें से 50 किलोमीटर का रास्ता कंटीले बाड़ से घिरा हुआ है. लेकिन इनसे में कई कंटीले तार खराब भी हो गये हैं. बशीरहाट से टाकी, हासनाबाद, शमशेरनगर और समुद्र से सटा 71 किलोमीटर का नदी मार्ग बदमाशों के चंगुल में बताया जाता है.

प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक, रात के अंधेरे में बदमाश इसी इलाके से बांग्लादेश में गौ तस्करी करते थे. देश के विभिन्न स्थानों से गायों को संदेशखाली के रामपुर, सरबेड़िया होते हुए नदी के जरिये बड़ी नावों या ट्रॉलर के जरिये शमशेरनगर होते हुए बांग्लादेश ले जाया जाता था.

गौ तस्करी मामले में कई बड़े नामों के खुलासे के बाद और केंद्रीय एजेंसियों द्वारा इसकी जांच के बाद इसपर लगाम लगी है. लेकिन यह इलाका सदा से घुसपैठ और तस्करी के लिए जाना जाता है.

कई बार तो अपराधियों की सीमा सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ भी हुई है. सैकड़ों बांग्लादेशी घुसपैठिये भी इन इलाकों से पकड़े गये हैं. लोकसभा चुनाव में यह मुद्दा भी राजनीतिक दल उठा सकते हैं. पिछले दो लोकसभा चुनाव से भारतीय जनता पार्टी के वोट प्रतिशत में यहां खासी वृद्धि हुई है.

संदेशखाली का मुद्दा बशीरहाट में हो सकता है महत्वपूर्ण

मुस्लिम बहुल इलाका होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी इस लोकसभा क्षेत्र में अपने पांव आहिस्ता-आहिस्ता मजबूत कर रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य ने दो लाख 33 हजार 887 वोट हासिल किये थे.

यानी कुल मतदान का 18.36 फीसदी वोट उन्हें मिला था. जबकि उससे पहले के यानी 2009 के चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा के स्वपन कुमार दास को महज 67 हजार 690 वोट मिले थे. यानी मतों में भाजपा को करीब 11.81 फीसदी का इजाफा मिला था.

वर्ष 2019 में भाजपा ने अपने पांव इस क्षेत्र में और भी मजबूत कर लिये. भाजपा के सायंतन बसु ने चार लाख 31 हजार 709 वोट हासिल किये. जो मतदान के कुल वोटों का 30.12 फीसदी था. यानी गत चुनाव से 11.76 फीसदी का इजाफा.

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सायंतन बसु दूसरे स्थान पर रहे. जबकि 2014 में भाजपा उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य को तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था.

तृणमूल की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा होने के बाद बशीरहाट के भाजपा के सांगठनिक जिले के उपाध्यक्ष तापस घोष ने बताया कि चुनाव में बशीरहाट के लोग माकूल जवाब देंगे. बशीरहाट की मां-बहनें कभी भी तृणमूल उम्मीदवार का समर्थन नहीं करेंगी. संदेशखाली की घटना से लोगों ने शिक्षा ली है.

तृणमूल को घेरने में जुटी हैं तमाम विपक्षी पार्टियां

उल्लेखनीय है कि संदेशखाली में महिलाओं के साथ अत्याचार होने के आरोपों के बाद राज्य की राजनीति में उफान आ गया है. तमाम विपक्षी पार्टियां इसे लेकर तृणमूल को घेर रही हैं. राज्य भर में इसे लेकर आंदोलन किये जा रहे हैं.

उत्तर 24 परगना जिले के बशीरहाट सबडिवीजन के अंतर्गत ही संदेशखाली-1 और संदेशखाली-2 ब्लॉक आते हैं. भाजपा की ओर से संदेशखाली का मुद्दा इस चुनाव में जोरशोर से उठाया जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे लेकर सभाओं में वक्तव्य रख चुके हैं. ऐसी स्थिति में भाजपा का मानना है कि संदेशखाली का मुद्दा कम से कम बशीरहाट में अपना जादू जरूर चलायेगा.

मोहम्मद शमी को प्रत्याशी बना सकती है भाजपा

भाजपा की ओर से राज्य की 20 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा करके चुनावी बिगुल फूंक दिया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हाल में राज्य के दौरे पर दो-दो बार आ चुके हैं. अब बशीरहाट को लेकर मोहम्मद शमी का नाम सुना जा रहा है. चर्चा का बाजार गर्म हो चुका है कि भाजपा की ओर से बशीरहाट लोकसभा केंद्र से क्रिकेटर मोहम्मद शमी को उम्मीदवार बनाया जा सकता है.

उल्लेखनीय है कि बशीरहाट में भाजपा ने अपनी स्थिति क्रमश: मजबूत की है. ऐसी स्थिति में मोहम्मद शमी भाजपा के लिए एक बड़ा मोहरा साबित हो सकते हैं. हालांकि शमी के नाम की भाजपा की ओर से कोई पुष्टि नहीं की गयी है.

प्रदेश भाजपा के मुताबिक उम्मीदवार का नाम केंद्रीय नेतृत्व तय करता है. शमी के नाम को यहां से सिफारिश किये जाने की कोई जानकारी उनके पास नहीं है. इधर तृणमूल की ओर से कहा जा रहा है कि भाजपा चाहे जिसे भी उम्मीदवार बनाये, बशीरहाट में तृणमूल ही बाजी मारेगी.

बशीरहाट में 7 विधानसभा क्षेत्र

विधानसभा क्षेत्रपार्टीविधायक
बादुड़ियातृणमूल कांग्रेसअब्दुर रहीम
काजी हाड़वातृणमूल कांग्रेसहाजी नुरुल इस्लाम
मीनाखांतृणमूल कांग्रेसउषा रानी मंडल
संदेशखालीतृणमूल कांग्रेससुकुमार महतो
बशीरहाट दक्षिणतृणमूल कांग्रेसडॉ सप्तर्षि बनर्जी
बशीरहाट उत्तरतृणमूल कांग्रेसरफीकुल इस्लाम मंडल
हिंगलगंजतृणमूल कांग्रेसदेबेश मंडल

मतदाताओं के आंकड़े

कुल मतदाता16,76,683
पुरुष मतदाता8,63,040
महिला मतदाता8,13,617
थर्ड जेंडर26

बशीरहाट का इतिहास : नमक के साथ है पुराना रिश्ता

बशीरहाट शहर के नामकरण का इतिहास बेहद रोचक है. इच्छामती नदी के तट पर बसे बशीरहाट शहर के साथ इतिहास के कई दिलचस्प पन्ने हैं. 1857 में पलासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी की सहायता से मीरजाफर नवाब बना था. उसने लॉर्ड क्लाइव के हाथों बंगाल के कई अंचलों को सौंप दिया था. इनमें से एक बशीरहाट है. तभी से बशीरहाट एक महकमे के तौर पर चिह्नित हुआ.

कभी नमक के कारोबार का केंद्र बशीरहाट बन गया था. कालांतर में ईस्ट इंडिया कंपनी के कारोबार की सुविधा के लिए बागुंडी गांव में ‘सॉल्ट सुपरिंटेंडेंट’ कार्यालय’ बनाया गया था. उस समय इच्छामती नदी के पानी से नमक तैयार किया जाता था. बशीरहाट के नामकरण को लेकर भी इतिहास में कई कहानियां हैं.

कई लोगों का कहना है कि ‘बशि’ मतलब नमक होता है. बशीरहाट में कभी नमक का कारोबार चलता था इसलिए उसका यह नाम पड़ा. लेकिन कई लोगों का कहना है कि बांस के हाट के कारण उसका यह नाम पड़ा. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि बशीर मोहम्मद या बशीर खान के नाम से भी इस अंचल का नाम पड़ा हो सकता है.

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