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सूखे खेतों में उड़ने लगा धूल किसानों की बढ़ी चिंता,

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प्रखंड के विभिन्न गांव के किसानों को उम्मीद थी कि इस बार समय पर बारिश होने से फसल की पैदावार अच्छी होगी.

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राजपुर . प्रखंड के विभिन्न गांव के किसानों को उम्मीद थी कि इस बार समय पर बारिश होने से फसल की पैदावार अच्छी होगी.मौसम की बेरुखी से इस बार अब तक महज दस प्रतिशत ही धान की रोपनी हुई है.खेतों में उड़ रहे धूल से किसानों की परेशानी बढ़ गयी है.नहर में पानी नहीं होने से खेती अधिक प्रभावित हो रही है. कृषि विभाग के अधिकारियों ने सलाह दिया था कि इस बार भी मॉनसून समय पर आयेगा.फिर भी किसानों को जलवायु परिवर्तन के बारे में भी सोचने की जरूरत हैं.इसके लिए क्षेत्र के किसानों को प्रशिक्षण के लिए भेंजा गया था.जलवायु अनुकूल खेती करने के लिए भी किसानों को प्रेरित किया गया.बावजूद किसान इसकी ओर नहीं मुड़ रहे हैं.किसानों का कहना है कि जलवायु अनुकूल खेती करने से धान की उत्पादन क्षमता कम होगी.ऐसे में खाद एवं बीज का कीमत निकालना भी मुश्किल हो जायेगा.जिसको नजर अंदाज करते हुए किसानों ने अपनी पारंपरिक तरीके से ही खेती करने के तरीकों के माध्यम से खेतों में विभिन्न प्रजाति के धान के बिचड़ा को डाल दिया हैं.अब समय रोपनी का हैं तो इस समय तेज पुरवा हवा ने सभी किसानों को परेशानी में डाल दिया हैं. उमस भरी गर्मी से जन जीवन भी पुरी तरह से बेहाल हो गया हैं.तेज धूप होने से तापमान में भी काफी बढ़ोतरी हैं.अभी भी दिन का तापमान 40 डिग्री तक पहुंच रहा हैं.ऐसे में धान के बिचड़े सिंचाई के बाद भी पीले पड़ रहे हैं.ऐसी स्थिति देख किसानों को वर्ष 2016-17 एवं 2018 -19 के भयंकर सुखे की याद आ रही हैं.इन बीते वर्षो में भूमिगत जलस्तर अधिक नीचे हो जाने से किसानों के सामने पेयजल की समस्या हो गयी थी.तब तक प्रकृति ने वर्ष 2020 एवं 2021 में समय पूर्व मॉनसून आने से किसानों ने समय पर खेती किया था.पिछले वर्ष 2023 में भी सूखे जैसे हालात होने से किसान काफी चिंतित थे .इन बीते वर्षो में भी लौटते मॉनसून में काफी पानी हो गया.जिसके वजह से अधिकतर खेतों में लगा धान का पौधा खराब हो गया.रबी फसल की बुआई नहीं हो पाया.इस तरह से पिछले छह वर्षो से किसान लगातार प्राकृतिक प्रकोप की मार झेल रहे हैं.इस बार मौसम की बेरूखी ने एक बार फिर किसानों को सोचने पर विवश कर दिया हैं.देवढिया के किसान दतारे चौबे,पशुपतिनाथ ओझा,सोनू कुमार,नंदलाल साह ने बताया कि खेतों की सिंचाई कर फसल बचाना काफी मुश्किल है.

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क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

जिन किसानों के पास सिंचाई करने का साधन हैं वह कम पानी से धान की रोपनी कर दें.जीवन रक्षक सिंचाई करते रहे.इसमें पानी नहीं लगाये.धान के बिचड़ा में किसी प्रकार के उर्वरक का उपयोग नहीं करें.वर्षा होते ही इस पौधों से अनाज पैदा कर सकते हैं.धान की रोपाई कतार में करें ताकि किसी प्रकार के रोगों का प्रभाव न हो.जीवन रक्षक सिंचाई के साथ रोपाई करें.अभी अनुमान है कि एक सप्ताह बाद कुछ बारिश हो सकती हैं.रोपाई के समय फासफोरस एवं पोटाश का प्रयोग करें.खाद का प्रयोग संतुलित मात्रा में ही प्रयोग करें.पानी की कमी वाले जगहों पर ज्वार एवं बाजरा की खेती करें.इसमें रोग भी नहीं लगता हैं. – रामकेवल सिंह,कृषि वैज्ञानिक

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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