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बिहार में मछुआरे की जाल में आ रहा है शव, गंगा की मछली खरीदने से लोग कर रहे तौबा

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गंगा में शव मिलने का सिलसिला शुरू होने के बाद अब इसका सीधा असर मछुआरों पर पड़ा है. हर दिन चार से पांच हजार रुपये का नुकसान हो जा रहा है. मछली बेचने वाले अर्जुन सहनी ने बताया कि लोग अब पहले पूछते हैं कि मछली गंगा नदी की तो नहीं है न.

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पटना. गंगा में शव मिलने का सिलसिला शुरू होने के बाद अब इसका सीधा असर मछुआरों पर पड़ा है. हर दिन चार से पांच हजार रुपये का नुकसान हो जा रहा है. मछली बेचने वाले अर्जुन सहनी ने बताया कि लोग अब पहले पूछते हैं कि मछली गंगा नदी की तो नहीं है न. जैसे ही गंगा की मछली बोलते हैं तो वह दुकान से चले जाते हैं.

तालाब और आंध्रा की मछली उतनी आती नहीं है. गंगा की मछली हमलोग लाते हैं लेकिन उसकी बिक्री अब न के बराबर हो गयी है. एक तो दुकान खोलने का समय इतना कम कि मछली खरीदकर लाते-लाते आठ बज जाता है और दो घंटे मछली बिकती भी नहीं है.

नतीजा यह होता है कि गंगा की मछली अंत में गंगा में ही प्रवाहित करना पड़ रहा. मछली बिक्रेता दुर्गा सहनी ने बताया कि अब हर दिन एक हजार की भी बिक्री नहीं हो पा रही है. लोगों को समझाते हैं कि गंगा की मछली नहीं है फिर भी लोग गंगा की मछली समझ नहीं खरीद रहे हैं.

गये थे मछली पकड़ने फंस गया शव

बांकीपुर मछुआरा संघ के नेता अनिल सहनी ने बताया कि दो से तीन दिन पहले गंगा नदी में एनआइटी घाट से कुछ ही दूर आगे मछुआरे मछली पकड़ने गये था. घंटों मशक्कत करने के बाद जाल में कुछ फंसा. लेकिन जब उसे खींचने लगा तो छोटी डेंगी डगमगाने लगी. मुझे लगा कि कोई बड़ी मछली होगी, लेकिन जैसे ही ऊपर हल्का खींचा तो जाल में एक युवक का शव फंसा था. मछुआरे तीन चार आदमी थे. जाल को वहीं फेंक कर किनारे आ गये और लोगों को बताया.

खरीदार बोल रहे हैं गंगा की मछली नहीं खायेंगे

मछली खरीद रहे ग्राहक मकबूल अहमद ने बताया कि मैं जिंदा मछली खरीदता हूं. इधर तो खाना भी छोड़ दिया था. घर वालों की जिद पर मछली लेने निकला हूं. वह भी आंध्रा या तालाब की मछली. गंगा की मछली से अभी तौबा है. वहीं एक महिला खरीदार पुष्पा ने बताया कि गंगा में पहले भी शव मिलते थे. लेकिन इस बार कुछ ज्यादा ही हो गया है. वह भी इस समय जिस वक्त लोग स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा सक्रिय रहते हैं.

मुर्गियों में कोरोना के लक्षण की जांच महज अफवाह

मुर्गियों में कोरोना के लक्षण की जांच महज अफवाह साबित हुई. कतिपय समाचार माध्यमों में पटना के साथ-साथ मुंगेर, आरा, बक्सर, जमुई, लखीसराय, कटिहार, सिवान, बेगूसराय समेत प्रदेश के कई जिलों से स्वास्थ्य विभाग द्वारा पोल्ट्री मुर्गा का सैंपल लेने और उनमें कोरोना की जांच करने का न्यूज लगातार चल रहा था. लेकिन, मामले में जब प्रभात खबर की टीम ने वरीय अधिकारियों से बात की तो इसकी पुष्टि नहीं हुई.

पटना की सिविल सर्जन डॉ विभा कुमारी ने मामले में पूरी तरह अनभिज्ञता प्रकट करते हुए कहा कि मुर्गियां कोरोना महामारी का कारण हो सकती हैं या नहीं इसकी जानकारी मुझे नहीं है. लेकिन मेरे स्तर पर अब तक पटना में ऐसी कोई जांच टीम नहीं बनी है. उन्होंने लोगों से अपील की कि अगर किसी तरह की शिकायत हो तो तुरंत सिविल सर्जन कार्यालय को सूचित करें.

वहीं निदेशक प्रमुख, रोग नियंत्रण डॉ नवीनचंद्र प्रसाद ने बताया कि इस तरह का कोई आदेश विभाग द्वारा जारी नहीं किया गया है. चूकिं मुर्गा प्रोटीन से भरपूर होता है जो कोरोना के कहर से बचने के लिए एक उपयोगी डाइट है. लिहाजा कई लोग उसके संक्रमित होने के अपवाह से बहुत परेशान हो गये थे.

Posted by Ashish Jha

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