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बिहार: विदेशों से लोग पहुंचे गया, श्रद्धालुओं की जुटी भीड़, जानिए क्यों मनाया जाता है बौद्ध महोत्सव

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Bodh Mahotsav 2024: बिहार के गया में स्थित बोधगया में बोद्ध महोत्सव की तैयारी कर ली गई है. कालचक्र मैदान में बौद्ध महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. इसके लिए यहां सजावट की गई है.

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Bodh Mahotsav 2024: बिहार के गया में स्थित बोधगया में बौद्ध महोत्सव की तैयारी पूरी हो चुकी है. कालचक्र मैदान को भव्य तरीके से सजाया गया है. विदेशों से भी श्रद्धालु बोधगया में पहुंचे है. शुक्रवार शाम को इसका उद्घाटन होगा. इसमें मंत्री से लेकर विधायक तक पहुंचेंगे. मंच को भव्य तरीके से तैयार किया गया है. बिहार की थीम पर मंच को सजाया गया है. गुरुवार को भगवान बुद्ध जिस रास्ते से बोधगया पहुंचे थे उस रास्ते पर रैली भी निकाली गई. इस रैली को ज्ञान रैली का नाम दिया गया है. भक्तों ने नौ किलोमीटर तक पैदल यात्रा की और बोधगया पहुंचे. इन्होंने ऐसा करने के साथ ही विश्व शांति का सभी को संदेश दिया है.

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साल 1998 में हुई थी बोद्ध महोत्सव की शुरूआत

बौद्ध महोत्सव के दौरान राष्ट्रीय से लेकर अंतराष्ट्रीय कलाकार यहां पहुंचेंगे और अपनी कला की प्रस्तुति देंगे. बॉलीवुड के कलाकार भी इस कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे. संभावना जताई जा रही है कि लाखों लोग यहां पहुंचेंगे. वहीं, विदेश से कई लोग यहां आए भी है. दलाई लामा भी अपने प्रवास को लेकर गया में है. वहीं, बौद्ध महोत्सव के बारे में बता दें कि यह पूरी तरीके से भगवान बुद्ध पर निर्भर रहता है. कहा जाता है कि साल 1998 में इस महोत्सव की पहली बार शुरूआत हुई थी. इसका शुभारंभ राजद की गठबंधन सरकार की ओर से किया गया था. इसकी शुरूआत सबसे पहले धर्मचक्र प्रर्वतन स्थली सारनाथ से की गई थी. इसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति ने किया था.

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अलग- अलग देशों से कलाकार यहां पहुंचे

ठिठुरन भरी ठंड में लोग बोधगया पहुंचे है. इस महोत्सव के बारे में बता दें कि बौद्ध पर्यटकों को आकर्षिक करना इसका मुख्य मकसद है. इस दौरान पर्यटक भारी संख्या में पहुंचते है. इसी उद्शेय से इसकी शुरुआत भी की गई थी. बोधगया में ऐतिहासिक महत्व की चीजें मौजूद है. यहां सुजाता स्तूप निरंजना नदी के पूर्वी छोर पर स्थित है. यह इतिहास को अपने में संजोए हुए है. इस स्तूप की खुदाई में बुद्ध कालीन अवशेषों को सुरक्षित रखा गया है. यह बोधगया के संग्रहालय में सुरक्षित है. यहां मुचलिद सरोवर है. यह मोचारीम गांव में है. बौद्ध धर्मावलंबियों के अनुसार राजकुमार सिद्धार्थ अपने ध्यान के छठे सप्ताह के दौरान यही पर थे. प्रचार व प्रसार के अभाव में यह विलुप्त होने की कगार पर भी पहुंच गया था. वहीं, अब सरकार की ओर से पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रकार के प्रयास किए जा रहे है. बताया जाता है कि भगवान बुद्ध के नामकरण से जुड़े हर आयोजन में बौद्ध धर्मालंबी अपनी ओर से पूरा सहयोग करते है और हर संभव प्रयास भी करते हैं. बौद्ध महौत्सव का प्रचार व प्रसार विदेशों तक किया जाता है. बौद्ध भीक्षु भी कार्यक्रम में भरपूर सहयोग करते है. अलग- अलग देशों से कलाकार यहां पहुंचते है और अपनी कला की प्रदर्शनी देते है. इसके अलावा यहां पर कई तरह के स्टॉल भी लगाए जाते है.

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