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चना, जौ, मसूर, राजमा, तीसी, उड़द जैसे महंगे अनाज की खेती का बढ़ रहा रकबा

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जिले में इस साल 35 हजार 734.62 हेक्टेयर में तीसी, उड़द, जौ, चना, मसूर, गर्मा मक्का, मूंग, घोड़ जई समेत अन्य मोटा अन्ना की खेती हुई है.

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बिहारशरीफ.

जिले में इस साल 35 हजार 734.62 हेक्टेयर में तीसी, उड़द, जौ, चना, मसूर, गर्मा मक्का, मूंग, घोड़ जई समेत अन्य मोटा अन्ना की खेती हुई है. यह पिछले वर्ष के हिसाब से करीब पांच हजार हेक्टेयर अधिक हैं. गर्मा मक्का की खेती पिछले साल के हिसाब से इस बार 539 हेक्टेयर में अधिक हुआ है. सबसे अधिक तीसी, मसूर, मटर और राई-सरसों की खेती का रकवा बढ़ा है. पिछले साल तीसी की खेती 583.67 हेक्टेयर में हुई थी, जो इस साल बढ़कर 1432.83 हेक्टेयर तक पहुंच गया है. यानि 145.49 प्रतिशत अधिक तीसी की खेती में बढ़ोत्तरी हुई है. मटर और राई-सरसों की खेती लक्ष्य से करीब 34 प्रतिशत अधिक हुई है. किसानों की रुचि मोटे अनाजों की खेती में बढ़ी है. इसके कई कारण हैं, जिनमें से एक यह है कि गर्मा धान- गेहूं जैसे परंपरागत फसलों की खेती में अधिक मेहनत-पानी-समय लगता है और उससे उचित दाम नहीं मिलते हैं. दूसरा कारण है कि हाल के वर्षों में मौसम का मिजाज तेजी से बदल रहा है, जिसका प्रभाव खेती व्यवस्था पर भी दिखने लगा है. विपरित मौसम होने पर गर्मा धान, गेहूं, मक्का जैसे परंपरागत फसलों को कीट अधिक नुकसान करते हैं. इसलिए जागरूक किसान अब गर्मा धान, सूरजमुखी, गेहूं, कपास, ईख जैसे आदि के जगह मोटे अनाजों वाली फसलों पर फोकस करने लगे हैं. हरनौत विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक कुमारी विभा रानी बताते हैं कि भारत सरकार ने मौसम के बदले पैटर्न को देखते हुए मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को अनुदान की सुविधा प्रदान की है. किसानों को मोटे अनाज खेती के लिए बीज के साथ आधुनिक पटवन सिस्टम की खरीदने के लिए अनुदान दिया जा रहा है. इसके अलावा, कृषि विज्ञान केंद्र हरनौत, आत्मा, कृषि कार्यालय, कृषि कॉलेज नूरसराय आदि के माध्यम से किसानों को आधुनिक तकनीक और मोटे अनाज की खेती के लिए कृषि पाठशाला लगाकर जागरूक किया जा रहा है. कृषि तकनीक को लेकर कृषि विज्ञान केंद्र में सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें यह बताने का प्रयास किया जा रहा है कि आने वाले समय में मौसम में व्यापक परिवर्तन आयेगा. इससे किसानों की आमदनी भी दोगुनी होगी.

इस साल मोटे अनाज की खेती का रकवा हेक्टेयर में

फसल बुआई का रकवा

तीसी 1432.82 हेक्टेयरउड़द 35.62 हेक्टेयरमूंगफली 31.3 हेक्टेयरमसूर 20424.25 हेक्टेयरराजमा 10.42 हेक्टेयरमटर 2950.99 हेक्टेयरगर्मा मक्का 1739.42 हेक्टेयरघोड़ जई 0.5 हेक्टेयरगर्मा मूंग 43.5 हेक्टेयरजौ 271.95 हेक्टेयरचना 8752.27 हेक्टेयर

किसान आधुनिक तकनीक अपनाकर बढ़ा रहे फसल उत्पादन :

जिले के किसान अब कम मेहनत और अच्छी कीमत देने वाले फसलों पर फोकस कर रहे हैं. वे परंपरागत खेती के बजाय आधुनिक तकनीक अपना रहे हैं, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि हो रही है. किसान ट्यूबवेल, पॉलीहाउस, स्प्रिंकलर, ड्रिप, केंद्र-धुरी सिंचाई जैसी तकनीकों का उपयोग फसल के पटवन के लिए कर रहे हैं. इससे कम पानी, कम खर्च में फसलों को बेहतर पटवन होता है. साथ ही किसान जुताई के लिए ट्रैक्टर, कल्टीवेटर, रोटावेटर, टिलर, घास काटने की मशीन, लोडर, और स्प्रेयर जैसे कई उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं. कंबाइन हार्वेस्टर, मल्चर, सुपरसीडर और मोल्डबोर्ड हलों का उपयोग भी किया जा रहा है, जिससे फसल उत्पादन में वृद्धि हो रही है.

मोटे अनाज की खेती के लिए किया जा रहा प्रोत्साहित :

हरनौत कृषि विभान केंद्र किसानों को मोटे अनाज की खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहा है, जिसमें सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है और मानव श्रम की भी कम आवश्यकता होती है. इसके अलावा, कृषि विज्ञान केंद्र बिना जुताई खेती को बढ़ावा दे रहा है और सिंचाई, उर्वरक, कीटनाशक एवं मशीनी प्रयोग को सीमित करने पर जोर दे रहा है. प्रगतिशील किसानों की मांग पर चिन्हित गांवों में कृषि पाठशाला लगाया जाता है.

डॉ सीमा कुमारी, कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत

क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक

कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन का असर मौसम चक्र पर दिखने लगा है. इससे सबसे अधिक रबी फसल प्रभावित हुआ है. कुछ वर्ष पूर्व में बहुत से किसानों के गेहूं और मक्का के फसल में अन्नाज नहीं आने की शिकायत आयी थी. मूंग और मोटा अनाज की फसल विपरीत मौसम में भी अच्छी उपज देती है. इसमें रोग व कीट का प्रकोप भी अन्य रबी फसलों के अपेक्षा कम असर करता है. साथ ही मोटे अनाज का दाम और मांग अधिक है.

कुमारी विभा रानी, कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, हरनौत

सिर्फ हिलसा में हो रही गर्मा धान की खेती

30 से 40 वर्ष पूर्व में हर प्रखंड में गर्मा धान की खेती होती थी. अब सिर्फ हरनौत में 2.45 हेक्टेयर में गर्मा धान की बुआई हुई है. हालांकि यहां भी साल-दर-साल गर्मा धान की खेती सीमित होते जा रही है. पिछले कुछ साल तक यहां 21.5 हेक्टेयर में धान की खेती होती थी, जो इस बार 11.40 प्रतिशत में सिमट गयी है. हालांकि मूंगफली और राजमा की खेती का रकवा बढ़ता जा रहा है. नौ प्रखंडों को छोड़कर अस्थावां, बिंद, हिलसा, इस्लामपुर, कतरीसराय, नगरनौसा, नूरसराय, परवलपुर, रहुई, सरमेरा और थरथरी में करीब 31.3 हेक्टेयर में मूंगफली की खेती हो रही है. एकंगसराय और नूरसराय में करीब 10.3 हेक्टेयर में राजमा की खेती की जा रही है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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