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कोरोना इफेक्ट : लॉकडाउन के समय गरीबों ने बदल लिया व्यवसाय

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बिहारशरीफ : कोरोना का इफेक्ट हर जगह देखने को मिल रहा है. छोटा-मोटा रोजगार कर अपने व परिवार का पेट पालनेवाले गरीब-गुरबे लॉकडाउन के कारण अपना व्यवसाय बदलने को मजबूर हो गये हैं. ऐसे ही लोगों में से एक हैं स्थानीय गढ़पर निवासी संजय कुमार. संजय गत 10 वर्षों से जुगाड़ गाड़ी के माध्यम से छड़, सीमेंट ढोता था और अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था.

इस धंधे से संजय कुमार के परिवार की जिंदगी हंसी-खुशी कट रही थी. कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के कारण जब छड़-सीमेंट की दुकानें बंद हो गयीं तो संजय के समक्ष अपने परिवार को पालने की विकट समस्या खड़ी हो गयी थी. काफी सोच-विचार के बाद संजय ने ठेला निकालने का निर्णय लिया. आज संजय शहर की गलियों में भ्रमण कर हरी सब्जियां बेच रहा है.

लॉकडाउन के दौरान लोग घरों से कम ही निकल पाते हैं. ऐसे में संजय की सब्जी की बिक्री हो जाती है. सब्जी बेचने से संजय अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किसी तरह कर रहा है. संजय ने बताया कि उसके परिवार में छह-सात सदस्य हैं. इसलिए इन सभी का भरण-पोषण करने के लिए उन्हें अपना व्यवसाय बदलने पर मजबूर होना पड़ा. लॉकडाउन में व्यवसाय बदलने के सिवा और कोई चारा नहीं था.

बिहारशरीफ : कोरोना का इफेक्ट हर जगह देखने को मिल रहा है. छोटा-मोटा रोजगार कर अपने व परिवार का पेट पालनेवाले गरीब-गुरबे लॉकडाउन के कारण अपना व्यवसाय बदलने को मजबूर हो गये हैं. ऐसे ही लोगों में से एक हैं स्थानीय गढ़पर निवासी संजय कुमार. संजय गत 10 वर्षों से जुगाड़ गाड़ी के माध्यम से छड़, सीमेंट ढोता था और अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था.

इस धंधे से संजय कुमार के परिवार की जिंदगी हंसी-खुशी कट रही थी. कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद सरकार द्वारा घोषित लॉकडाउन के कारण जब छड़-सीमेंट की दुकानें बंद हो गयीं तो संजय के समक्ष अपने परिवार को पालने की विकट समस्या खड़ी हो गयी थी. काफी सोच-विचार के बाद संजय ने ठेला निकालने का निर्णय लिया. आज संजय शहर की गलियों में भ्रमण कर हरी सब्जियां बेच रहा है.

लॉकडाउन के दौरान लोग घरों से कम ही निकल पाते हैं. ऐसे में संजय की सब्जी की बिक्री हो जाती है. सब्जी बेचने से संजय अपने तथा अपने परिवार का भरण-पोषण किसी तरह कर रहा है. संजय ने बताया कि उसके परिवार में छह-सात सदस्य हैं. इसलिए इन सभी का भरण-पोषण करने के लिए उन्हें अपना व्यवसाय बदलने पर मजबूर होना पड़ा. लॉकडाउन में व्यवसाय बदलने के सिवा और कोई चारा नहीं था.

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