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‍Bihar: किसानों के पास है नेपाल से भूटान तक व्यवसाय का मौका, केवल एक फसल बना देगा करोड़पति

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‍Bihar में इन दिनों राह चलते कहीं भी सड़क किनारे सिंघाड़ा खरीदने के लिये लोगों की भीड़ लगी रहती है. पानी का फल और जलीय अखरोट कहे जाने वाले सिंघाड़ा की फसल के प्रति किसानों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है. बरसात के पानी से डूबे इलाके को किसान समस्या की जगह अवसर में बदल रहे है.

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‍Bihar में इन दिनों राह चलते कहीं भी सड़क किनारे सिंघाड़ा खरीदने के लिये लोगों की भीड़ लगी रहती है. पानी का फल और जलीय अखरोट कहे जाने वाले सिंघाड़ा की फसल के प्रति किसानों की दिलचस्पी काफी बढ़ी है. बरसात के पानी से डूबे इलाके को किसान समस्या की जगह अवसर में बदल रहे है. सिंघाड़े की खेती से आर्थिक रुप से संपन्न होने के साथ दूसरे किसानों को जागरूक कर रहे है. कई जगहों पर मत्स्य पोषण योजना के साथ किसान सिंघाड़ा की खेती कर रहे है.

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पोषख तत्वों से भरा है सिंघाड़ा

पोषक तत्व से भरपूर सिंघाड़ा का कारोबार जिले से बाहर निकल कर नेपाल और भूटान तक पहुंच गया है. झपहां में सड़क किनारे सिंघाड़ा के व्यवसाय से जुड़े महेंद्र कुमार ने बताया कि हर दिन 7 से 8 क्विंटल इन इलाकों से वे खरीदते है. जिसे सीतामढ़ी, मोतिहारी के अलावे नेपाल दूसरे व्यापारियों को बेचते है. कई व्यापारी सिंघाड़ा को दूसरे देश भूटान तक सेल करते है. कई लोग इस फल को दूसरे जिलों में सिर्फ पहुंचाने के कारोबार से जुड़े है. हालांकि प्रोडक्ट का दर्जा नहीं मिलने से खेती अभी भी सीमित एरिया में है. बाजार में फिलहाल 40 रुपये प्रति किलो बिक्री हो रही है.

किसान ने कहा, कृषि विभाग से सहायता मिले

सिकंदरपुर मन में सिंघाड़ा की खेती करने वाले जमींदार सहनी ने बताया कि मन में एक बीघा में खेती है. फिलहाल हर दिन डेढ़ से दो क्विंटल सिंघाड़ा निकल जाता है. इस खेती से सरकार को राजस्व देने के बाद भी अच्छा मुनाफा हो जाता है. मन में ही खेती करने वाले दारोगा सहनी ने बताया कि चार बीघा में सिंघाड़ा के पौधे को लगाया है. इसके लिये जिला प्रशासन को भी रेवन्यू देना पड़ता है. फिर यह फसल मुनाफा का है. जानकारी दी कि यहां से व्यवसायी खरीद कर ले जाते है, जिसे दूसरे राज्यों से लेकर विदेश तक बेचते है. उनके पास इतना संसाधन नहीं है, कि इस फल को ढो कर कहीं व्यापार के लिये ले जा सके. किसानों ने यह जरूर कहा कि इस खेती के लिये कृषि विभाग की ओर से कोई सहायता नहीं मिलती.

सिंघाड़ा में भरपूर मात्रा में कैल्शियम

डॉ. नवीन कुमार ने बताया कि सिंघाड़ा खाने के बहुत सारे फायदे है. इसमें भरपूर कैल्शियम होता है. यह फाइबर और विटामिन बी का भी अच्छा स्रोत है. इस फल से आटा भी तैयार होता है. जिसका उपयोग पूजा-पाठ में होता है. लाल छिलका सिंघाड़ा, हरा छिलका सिंघाड़ा के अलावा कुछ और किस्में है. जिसमें लाल गठुआ हरीरा गठुआ शामिल है. किसानों के अनुसार यह किस्में 120 से 130 दिनों में तोड़ने के लिये तैयार हो जाते है. करीब 160 दिन पूरा होने पर इसे तोड़ा जाता है. मॉनसून के महीनों में इसे लगाया जाता है.

सिंघाड़ा को प्रोडक्ट का नहीं मिला है दर्जा

जिले में धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रही सिंघाड़ा की खेती को फिलहाल उत्पाद का दर्जा नहीं मिला है. इसलिए कुछ सीमित इलाके तक ही खेती हो रही है. जिला कृषि विभाग के पास भी सिंघाड़ा की खेती का कोई आंकड़ा नहीं है. जिला कृषि पदाधिकारी शिलाजीत सिंह ने बताया कि इसकी खेती के लिये विभागीय स्तर पर फिलहाल कोई अनुदान का प्रावधान नहीं है. इसको लेकर पटना विभागीय स्तर से भी किसी प्रकार का गाइड लाइन नहीं जारी हुआ है.

लागत और मुनाफा

सिंघाड़े की फसल 18 महीनें की होती है. जिसमें एक हेक्टेयर के तालाब से 80 से 100 क्विंटल तक हरे फल का पैदावार शुरू हो जाता है. साथ ही 18 से 20 क्विंटल के करीब सूखी गोटी भी मिल जाती है. सिंघाड़े की प्रति हेक्टेयर की फसल में 50 हजार की लागत आती है. किसानों के अनुसार एक लाख तक आमदनी होती है.

रिपोर्ट: ललितांशु

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