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Bihar Election 2020 : दलितों का साथ पाए बिना राजद की राह आसान नहीं, MY समीकरण के बाद भी पहले बढ़ी हैं मुश्किलें, जानें बिहार चुनाव का दलित वोट समीकरण…

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Bihar Election 2020 पटना: विधानसभा चुनाव में राजद की निर्णायक चुनावी सफलता दलितों के बिना संभव नहीं रही है. बीच-बीच में दलितों का राजद के करीब और दूर जाना हमेशा विधानसभा चुनाव परिणाम को प्रभावित करता रहा है. हालांकि, शुरुआती दौर में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की जादुई राजनीति ने दलितों को पार्टी से जोड़ रखा था.

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पटना: विधानसभा चुनाव में राजद की निर्णायक चुनावी सफलता दलितों के बिना संभव नहीं रही है. बीच-बीच में दलितों का राजद के करीब और दूर जाना हमेशा विधानसभा चुनाव परिणाम को प्रभावित करता रहा है. हालांकि, शुरुआती दौर में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की जादुई राजनीति ने दलितों को पार्टी से जोड़ रखा था.

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दलितों का समर्थन पाये बिना सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकती पार्टी

पिछले पांच विधानसभा चुनावों में अनुसूचित जाति के विजेता प्रत्याशियों की संख्या देखें, तो इससे यह बात साबित भी जाती है कि एम-वाय समीकरण के लिए पहचानी जाने वाली यह पार्टी दलितों का समर्थन पाये बिना सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ सकती है. जहां तक अन्य दलों का सवाल है, कोई भी दल दावा नहीं कर सकता है कि दलित वोट बैंक उसकी झोली में है. दलों के गठबंधन की प्रकृति के हिसाब से अनुसूचित जातियां वोट करती हैं.

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पिछले चुनावों में राजद और अन्य दलों का सुरक्षित सीटों पर प्रदर्शन

एक स्वतंत्र पार्टी के रूप में राजद ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 2000 में लड़ा था. अविभाजित बिहार के 324 सदस्यों वाली विधानसभा में तब राजद से अनुसूचित जाति के कुल 25 प्रत्याशी विजेता रहे. इनमें तीन महिलाएं भी थीं. खास बात है कि राजद की कुल सफल महिलाओं की संख्या सात थी. तब पार्टी ने 124 सीटें हासिल की थीं. सरकार भी बनायी थी.

2000 के विधानसभा चुनाव में अन्य दलों की स्थिति

इस चुनाव में अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में गैर राजद दलों में भाजपा ने नौ, सीपीआइएमएल के दो, जदयू के तीन,एसएपी के पांच, जेएमएम के आठ,बीएसपी को दो और कांग्रेस आदि को तीन सीटें मिलीं थीं.

फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में राजद और दलित समीकरण

वर्ष 2005 के दो विधानसभा चुनाव और 2010 के विधानसभा चुनाव में दलित पार्टी से काफी हद तक छटक गये. हालांकि, इसकी अपनी वजह रही. 2005 फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में राजद के अनुसूचित जाति के केवल 12 सदस्य ही चुने गये. महिला तो एक भी चुनाव नहीं जीती.

फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में अन्य दलों की स्थिति

इस चुनाव में जदयू के अनुसूचित जाति के नौ, बीजेपी के छह, कम्युनिस्ट पार्टियों के तीन, लोजपा के चार, कांग्रेस के तीन और दो अन्य सीटों पर अन्य या स्वतंत्र उम्मीदवार चुनाव जीते थे.

2005 के मध्यावधि विधानसभा चुनाव में राजद और दलित समीकरण

अक्तूबर 2005 में हुए मध्यावधि विधानसभा चुनाव में राजद की तरफ से केवल सात ही अनुसूचित के प्रत्याशी जीत सके. इनमें केवल एक महिला चुनी चुनी गयीं. जाहिर है कि पार्टी के लिए यह दोनों चुनाव राजनीतिक रूप से घाटे का सौदा ही रहे.

2005 के मध्यावधि विधानसभा चुनाव में अन्य दलों की स्थिति

इस चुनाव में जदयू के सबसे ज्यादा दलित प्रत्याशी जीते. इसके बाद भाजपा के 12, लोजपा, कांग्रेस और कम्युनिस्ट दलों को दो-दो सीटें मिलीं.

2010 के विधानसभा चुनाव में राजद और दलित समीकरण

2010 के विधानसभा चुनाव में केवल एक ही दलित प्रत्याशी चुनाव जीत सका. पार्टी सत्ता से बेदखल हो गयी. इस चुनाव में दलित जातियों ने एक तरह से राजद को छिटक दिया.

2010 के विधानसभा चुनाव में अन्य दलों की यह रही स्थिति

इस चुनाव में अनुसूचित जाति के जदयू के 20 और भाजपा के 19 प्रत्याशी जीते. शेष पार्टियां एकदम साफ हो गयीं.

2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और दलित समीकरण 

राजद के योजनाकारों ने 2015 का विधानसभा चुनाव महागठबंधन के घटक दल के रूप में चुनाव लड़ा. रणनीतिक वजहों से एक बार फिर पार्टी के 14 दलित प्रत्याशी चुनाव जीते. इनमें रिकाॅर्ड चार महिलाएं थीं. राजद ने कुल 80 सीटें हासिल की थीं.

2015 के विधानसभा चुनाव में अन्य दलों की स्थिति

इस चुनाव में भाजपा के एससी सीटों की संख्या काफी गिर गयी. उसे पिछले चुनाव की तुलना में केवल पांच सीट ही मिलीं.जदयू को 11, कांग्रेस को छह और चार सीटें अन्य दलों को मिलीं. दरअसल इस बार राजद,जदयू और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा.

Posted by : Thakur Shaktilochan Shandilya

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