17.3 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 09:19 pm
17.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Bihar Diwas 2023 : बंगाल से कब और कैसे अलग हुआ बिहार-उड़ीसा, जानें क्यों उठी अलग राज्य की मांग

Advertisement

Bihar Diwas 2023: आख़िर 22 मार्च 1912 को बिहार भी अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ. पटना को राजधानी घोषित किया गया. अंतत: वह घड़ी आयी और 12 दिसंबर 1911 को बिहार को अलग राज्य का दर्जा मिल गया. बिहार की पहचान उसे 145 वर्ष बाद उसे प्राप्त हुई. आज 110 साल पूरा होने पर हमें विकसित बिहार का इंतजार ही है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

Bihar Diwas 2023 पटना. बंगाल से अलग बिहार राज्य की स्थापना साल 1912 में हुई थी. बिहार के अलग राज्य के रूप में स्थापित होने की ख़ुशी में हर साल 22 मार्च को हर साल बिहार दिवस (Bihar Diwas) मनाया जाता है. यह परंपरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शुरू की है. बिहारियत की रक्षा के लिए बंगाल से अलग होने के बाद अगर कुछ बिहार ने खोया है तो वो बिहारियत ही है. बंगाल से अलग होने के ठीक 110 साल बाद अगर हम अलग होने के कारण पर गौर करें तो साफ तौर पर दिखता है कि अपनी पहचान और हिस्सेदारी सुनिश्चित करने के लिए हम बंगाल से अलग हुए थे. आज बिहार का एक बड़ा तबका भूल चुका है कि वो क्यों, कब और कैसे बंगाल से अलग हुआ.

- Advertisement -
1870 में पहली बार अलग होने की सोच आयी सामने

पलासी युद्ध के बाद 1765 में पटना की प्रशासनिक पहचान का विलोप हो गया और ईस्ट इंडिया कम्पनी को दीवानी मिली. उसके बाद यह महज एक भौगोलिक इकाई बन गया. अगले सौ सवा सौ सालों में बिहारी एक सांस्कृतिक पहचान के रूप में तो रही, लेकिन इसकी प्रांतीय या प्रशासनिक पहचान मिट सी गई. 1870 के बाद मुंगेर से निकलने वाले उर्दू अख़बार ‘मुर्ग़ ए सुलेमान’ ने पहली अगल बिहार राज्य की आवाज़ उठाई. इस अख़बार ने ही सबसे पहले “बिहार बिहारियों के लिए” का नारा दिया था. ये मांग अख़बार ने उस समय की थी जब आम तौर पर लोग इस बारे में सोंचते भी नही थे.1894 में बिहार टाइम्स और बिहार बन्धु (संपादक -केशवराम भट्ट ) ने इस बौद्धिक आन्दोलन तेज किया. 1889 में प्रकाशित नज़्म में पाते हैं जिसका शीर्षक था- ‘सावधान ! ये बंगाली है”. इस भाव की ही एक और प्रस्तुति 1880 में ‘बिहार के एक शुभ-चिंतक’ का पत्र है जिसमें बंगालियों की तुलना दीमकों से की गई है जो बिहार की फसल (नौकरियों) को ‘खा रहे हैं.

सच्चिदानंद सिन्हा ने शुरू की निर्णायक लड़ाई 

1900 के बाद इस मांग को बल मिला जब सच्चिदानंद सिन्हा जैसे नौजवान बिहारी शब्द को लेकर पहचान की लड़ाई शुरू की. इसका ही एक प्रतिफलन बिहार का बंगाली विरोधी आन्दोलन था, जो बिहार के प्रशासन और शिक्षा के क्षेत्र में बंगालियों के वर्चस्व के विरोध के रूप में उभरा. उस वक्त बिहार का नौजवान बिहार के स्टेशन पर ‘बंगाल पुलिस’ का बैज लगाकर ड्यूटी देता था. आम तौर पर यह कहा जाता है कि ब्रिटिश सरकार ने बंगाल के टुकड़े करके उभरते हुए राष्ट्रवाद को कमजोर करने का प्रयास किया, लेकिन बिहार को बंगाल से अलग लेने का निर्णय के पीछे का कारण बिहार की उपेक्षा थी. एल. एस. एस ओ मैली से लेकर वी सी पी चौधरी तक विद्वानों ने बिहार के बंगाल के अंग के रूप में रहने के कारण बढ़े पिछड़ेपन की चर्चा की है. इस चर्चा का एक सुंदर समाहार गिरीश मिश्र और व्रजकुमार पाण्डेय ने प्रस्तुत किया है. सबने माना है कि बिहार का बंगाल से अलग किए जाने का कोई बड़ा विरोध बंगाल में नहीं हुआ. यह लगभग स्वाभाविक सा ही माना गया.

बिहार को लेकर लापरवाह थे अंग्रेज, पिछड़ता जा रहा था इलाका
Undefined
Bihar diwas 2023 : बंगाल से कब और कैसे अलग हुआ बिहार-उड़ीसा, जानें क्यों उठी अलग राज्य की मांग 3

बिहार के अलग प्रांत के रूप में स्थापित होने से पहले अंग्रेज़ भी बिहार के प्रति लापरवाह थे. यह इलाका उद्योग धंधे से लेकर शिक्षा, व्यवसाय और सामाजिक क्षेत्र में लगातार पिछडता रहा. दरभंगा महाराज को छोड़कर बिहार के किसी बड़े जमींदार को अंग्रेज महत्त्व नहीं देते थे. स्वाभाविक था कि बिहार को बंगाल के भीतर रहकर प्रगति के लिए सोचना संभव नहीं. स्कूल से लेकर अदालत और किसी भी सरकारी दफ्तरों की नौकरियों में बंगालियों का वर्चस्व बिहारियों को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया था. बिहार बन्धु ने तो यहां तक लिख दिया कि बंगाली ठीक उसी तरह बिहारियों की नौकरियां खा रहे हैं, जैसे कीडे खेत में घुसकर फसल नष्ट करते हैं. सरकारी मत भी यही था कि बंगाली बिहारियों की नौकरियों पर बेहतर अंग्रेज़ी ज्ञान के कारण कब्ज़ा जमाए हुए हैं. 1872 में, तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉर्जे कैम्पबेल ने लिखा कि हर मामले में अंग्रेजी में पारंगत बंगालियों की तुलना में बिहारियों के लिए असुविधाजनक स्थिति बनी रहती है.

बंगालियों का था प्रशासन पर कब्जा

आँकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि उस वक्त बिहार के लगभग सभी सरकारी नौकरियां बंगाली के हाथों में थी. बडी नौकरियाँ तो थी ही छोटी नौकरियों पर भी बंगाली ही हैं. जिलेवार विश्लेषण करके पत्र ने लिखा कि भागलपुर, दरभंगा, गया, मुजफ्फरपुर, सारन, शाहाबाद और चम्पारन जिलों के कुल 25 डिप्टी मजिस्ट्रेटों और कलक्टरों में से 20 बंगाली हैं. कमिश्नर के दो सहायक भी बंगाली हैं. पटना के 7 मुंसिफों ( भारतीय जजों) में से 6 बंगाली हैं. यही स्थिति सारन की है जहां 3 में से 2 बंगाली हैं. छोटे सरकारी नौकरियों में भी यही स्थिति दिखती है. मजिस्ट्रेट , कलक्टर, न्यायिक दफ्तरों में 90 प्रतिशत क्लर्क बंगाली हैं. यह स्थिति सिर्फ जिले के मुख्यालय में ही नहीं थी, सब-डिवीजन स्तर पर भी यही स्थिति है. म्यूनिसिपैलिटी और ट्रेजेरी दफ्तरों में बंगाली छाए हुए थे.

बंगालियों को ही मिल रही थी सभी नौकरियां 

जिस कालखंड में बिहार बंगाल से अलग हुआ, उस वक्त दस में से नौ डॉक्टर और सहायक सर्जन बंगाली थे. पटना में आठ गज़ेटेड मेडिकल अफसर बंगाली थे. सभी भारतीय इंजीनियर के रूप में कार्यरत बंगाली थे. एकाउंटेंट, ओवरसियर एवं क्लर्कों में से 75 प्रतिशत बंगाली ही थे. जिस दफ्तर में बिहारी शिक्षित व्यक्ति कार्यरत है, उसको पग पग पर बंगाली क्लर्कों से जूझना पड़ता था और उनकी मामूली भूलों को भी सीनियर अधिकारियों के पास शिकायत के रूप में दर्ज कर दिया जाता था. बंगालियों के बिहार में आने के पहले नौकरियों में कुलीन मुसलमानों और कायस्थों का कब्ज़ा था. स्वाभाविक था कि बंगालियों के खिलाफ सबसे मुखर मुसलमान और कायस्थ ही थे.

पटना कॉलेज तक को बंद करने की होने लगी थी बात

अंग्रेज़ी शिक्षा के क्षेत्र में बिहार ने बहुत कम तरक्की की थी. सबकुछ कलकत्ता से ही तय होता था इसलिए बिहार में कॉलेज भी कम ही खोले गये. बिहार में बड़े कॉलेज के रूप में पटना कॉलेज था, जिसकी स्थापना 1862-63 में की गयी थी. इस कॉलेज में बंगाली वर्चस्व इतना अधिक था कि 1872 में जॉर्ज कैम्पबेल ने यह निर्णय लिया कि इसे बंद कर दिया जाए. वे इस बात से क्षुब्ध थे कि 16 मार्च 1872 को कलकत्ता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में उपस्थित ‘बिहार’ के सभी छात्र बंगाली थे. यह सरकारी रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है कि “हम बिहार में कॉलेज सिर्फ प्रवासी बंगाली की शिक्षा के लिए खुला नहीं रखना चाहते. इस निर्णय का विरोध दरभंगा, बनैली और बेतिया के महाराजा जैसे लोगों ने किया. इन लोगों का कथन था कि इस कॉलेज को बन्द न किया जाए क्योंकि बिहार में यह एकमात्र शिक्षा केन्द्र था जहाँ बिहार के छात्र डिग्री की पढ़ई कर सकते थे.

नौकरियों में आरक्षण से भी नहीं सुधरे हालात

दरभंगा महाराज का प्रस्ताव था कि बिहारियों के शैक्षणिक उत्थान के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की सुविधा मिले, तो यहां के लोग भी आगे बढ़ सकते हैं. इसके बाद ही बिहार की सरकारी नौकरियों में बंगाली वर्चस्व पर अंकुश लगाना शुरू हुआ. सरकारी आदेश दिए गए कि जहाँ रिक्त स्थान हैं, उनमें उन बिहारियों को ही नौकरी पर रखा जाए. सरकारी विज्ञापन छपा करते थे- “बंगाली बाबुओं को आवेदन न करें. इस दौरान अखबारों में कई लेख प्रकाशित हुए जिसमें यह कहा गया कि बिहार की प्रगति में बड़ी बाधा बंगालियों का वर्चस्व है. नौकरियों में तो बंगाली अपने अंग्रेज़ी ज्ञान के कारण बाजी मार ही लेते थे, बहुत सारी जमींदारियां भी बंगालियों के हाथों में थी.

बंगाल को एक तिहाई राजस्व देने के बाद भी सुविधा नदारद

बिहार टाइम्स ने लिखा कि बिहार की आबादी 2 करोड 90 लाख है और जो पूरे बंगाल का एक तिहाई राजस्व देते हैं उसके प्रति यह व्यवहार अनुचित है. बंगाल प्रांतीय शिक्षा सेवा में 103 अधिकारियों में से बिहारी सिर्फ 3 थे, मेडिकल एवं इंजीनियरिंग शिक्षा की छात्रवृत्ति सिर्फ बंगाली ही पाते थे, कॉलेज शिक्षा के लिए आवंटित 3.9 लाख में से 33 हजार रू ही बिहार के हिस्से आता था, बंगाल प्रांत के 39 कॉलेज (जिनमें 11 सरकारी कॉलेज थे) में बिहार में सिर्फ 1 था, कल-कारखाने के नाम पर जमालपुर रेलवे वर्कशॉप था (जहाँ नौकरियों में बंगालियों का वर्चस्व था) , 1906 तक बिहार में एक भी इंजीनियर नहीं था और मेडिकल डॉक्टरों की संख्या 5 थी.

कांग्रेस के समर्थन के बाद अंग्रेजों को करना पड़ा विभाजन
Undefined
Bihar diwas 2023 : बंगाल से कब और कैसे अलग हुआ बिहार-उड़ीसा, जानें क्यों उठी अलग राज्य की मांग 4

ऐसे हालात में कांग्रेस ने 1908 के अपने प्रांतीय अधिवेशन में बिहार को अलग प्रांत बनाए जाने का समर्थन किया गया. कुछ प्रमुख मुस्लिम नेतागण भी सामने आये जिन्होंने हिन्दू मुसलमान के मुद्दे को पृथक राज्य बनने में बाधा नहीं बनने दिया. इन दोनों बातों से अंग्रेज शासन के लिए बिहार को अलग राज्य का दर्जा दिए जाने का मार्ग सुगम हो गया. इसके लिए बनी कमेटी में दरभंगा महाराजा रमेश्वर सिंह अध्यक्ष और अली इमाम को उपाध्यक्ष का ओहदा मिला. आख़िर 22 मार्च 1912 को बिहार भी अलग राज्य के रूप में स्थापित हुआ. पटना को राजधानी घोषित किया गया. अंतत: वह घड़ी आयी और 12 दिसंबर 1911 को बिहार को अलग राज्य का दर्जा मिल गया. बिहार की पहचान उसे 145 वर्ष बाद उसे प्राप्त हुई.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें