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Independence Day: भागलपुर के मुकुटधारी बाबू ने टमटम पर मनाया था आजादी का पहला जश्न

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भारत जब 1947 में आजाद हुआ तो पूरे देश में जश्न का माहौल था. लेकिन भागलपुर में दस साल के मुकुटधारी अग्रवाल ने अपने दोस्तों के साथ बड़े अनोखे तरीके sसे जश्न मनाया था. आए जानते हैं इनकी कहानी.

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Independence Day: मुकुटधारी अग्रवाल स्वतंत्र भारत से 10 साल बड़े थे. जन्म तिथि- 16 अक्टूबर, 1937, सिल्क सिटी भागलपुर ही मुकुटधारी अग्रवाल (अब स्वर्गीय, देहांत 23 अगस्त-2019) की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही. व्यवसाय के अलावा पत्रकारिता और समाज सेवा के क्षेत्र में मुकुटधारी बाबू के उल्लेखनीय योगदान को भागलपुर के लोग आज भी याद करते हैं. मुकुटधारी बाबू ने गुलाम भारत की समस्याओं को महसूस किया, तो स्वतंत्र भारत की खुशियां भी बटोरीं 15 अगस्त, 1947 को पहला स्वतंत्रता दिवस देखने वाले मुकुटधारी बाबू ने 416 पन्नों की अपनी आत्मकथा ‘इंद्रधनुष जैसी जिंदगी’ में पेज नंबर 60-61 पर आजादी के जश्न को कलमबद्ध किया है.

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टमटम पर मनाया था आजादी का पहला जश्न

मुकुटधारी बाबू लिखते हैं- टमटम पर चढ़कर हमने मनाया था आजादी का पहला जश्न. जब देश आजाद हुआ था उस समय मेरी उम्र 11-12 वर्ष की रही होगी. मैं टीएनबी कॉलेजिएट स्कूल का छात्र था. 15 अगस्त, 1947 को सारा स्कूल नयी-नवेली दुल्हन की तरह सजाया गया था. हमलोग कितने उत्साहित थे, उसका वर्णन संभव नहीं है. झंडा और पताकाओं से सारा स्कूल परिसर आच्छादित था. ठीक नौ बजे स्कूल के सचिव मुक्तेश्वर प्रसाद जी ने बनाये गये विशेष मंच से यूनियन जैक की जगह अपना राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराया और हम सभी एक स्वर में राष्ट्रीय गान गाने लगे- ‘जन गण मन अधिनायक जय हे…’.

सबने पहने थे नए कपड़े

राष्ट्र गान के बाद स्कूल के प्राचीर से भी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हमारे प्रधान अध्यापक पंडित नवल किशोर झा ने फहराया था. उस दिन प्रायः हम सब नये कपड़े पहन कर आये थे, मानो हम किसी त्यौहार में आये हैं. प्रतिदिन सूट और टाई में रहनेवाले हमारे हेड मास्टर नवल किशोर झा जी चुस्त पैजामा, शेरवानी और गांधी टोपी लगा कर उस दिन आये और हम लोगों को उन्होंने संबोधित भी किया. उस दिन प्रत्येक छात्र को प्लेट में बुंदिया, जलेबी, रसगुल्ला और नमकीन सेव दिये गये. हम लोग अपने हाथों में कागज का तिरंगा झंडा लिये बड़े उत्साह से नारे लगा रहे थे.

अंग्रेज भाग गया, अब गांधी बाबा का राज है

कार्यक्रम की समाप्ति पर हम लोग जब स्कूल परिसर से बाहर निकले, तो हमें सड़क पर एक टमटम आता दिखा. उस समय शहर में सवारी के लिए टमटम, बग्गी, तांगा और हाथ रिक्शा उपलब्ध था. हम लोगों ने उस टमटम को घेर लिया और उस पर सवार हो गये. हमलोगों के हाथों में कागज का वही तिरंगा झंडा था. हम लोग टमटम पर बैठ अपने तिरंगे झंडे को लहराने लगे. टमटम वाले ने हम लोगों से पूछा- ‘क्या सही में हम लोग आजाद हो गये हैं? अंग्रेज भाग गया?’ हमलोगों ने उत्तर दिया-हां, अंग्रेज भाग गया. अब गांधी बाबा का राज है.

टमटम वाले ने पैसे लेने से कर दिया था इंकार

टमटम पर चढ़ हम लोग मुख्य बाजार तक गये. जब हम लोग टमटम वाले को भाड़ा देने लगे तब उसने लेने से इंकार कर दिया. कहा कि इस पैसे से तुम लोग आज मेरी तरफ से मिठाई खा लेना. सारे बाजार में खुशी का माहौल था. प्रत्येक दुकान पर राष्ट्रीय झंडा लगा हुआ था. कई घरों में तिरंगा फहरा रहा था. सारा शहर आजादी मिलने की खुशी में नाच रहा था.

जश्न को कैमरे में न कैद करने का मलाल था

स्वर्गीय मुकुटधारी अग्रवाल के पुत्र आलोक अग्रवाल कहते हैं कि पिताजी उन्हें उन दिनों की बातें बताया करते थे. उस समय कैमरे बहुत कम लोगों के पास हुआ करते थे. आजादी के पहले दिन के उत्सव को पिताजी कैमरे में कैद नहीं कर पाये, इसका मलाल था. बाद में वर्ष 1948 में दादाजी ने पिताजी को कोडक कंपनी का एक बॉक्स कैमरा खरीद कर दिये थे. उस कैमरे में जो फिल्म भरी जाती थी, उससे आठ तस्वीरें खींचती थीं.

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सैंडिस कंपाउंड स्थित स्टेशन क्लब की पुरानी तस्वीर
स्टेशन क्लब की पुरानी तस्वीर

आरपीएन शाही ने सैंडिस में फहराया था तिरंगा

भागलपुर में भी 15 अगस्त 1947 को सैंडिस कंपाउंड मैदान में स्वतंत्र भारत के भागलपुर के तत्कालीन कमिश्नर आरपीएन शाही (छठे भारतीय कमिश्नर) ने तिरंगा फहराया था. पूरा भागलपुर आजादी की खुशी में झूम उठा था. 17 अगस्त 1947 को सीके रमण (क्रम में सातवें भारतीय) भागलपुर के आयुक्त बनाये गये थे. इस बात का उल्लेख एसएम कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ रमन सिन्हा की लिखी पुस्तक ‘भागलपुर : अतीत एवं वर्तमान’ में किया है.

(सामग्री संकलन : संजीव झा, भागलपुर) 

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