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जिसमें सबका हित हो वहीं साहित्य है – स्वामी आगमानंद

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वर्तमान समय में प्रो शशिभूषण शीतांशु जैसे सृजनात्मक आलोचक संपूर्ण भारत में कोई नहीं हैं. उन्होंने आलोचना की कई नई विधियां विकसित की हैं.

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वर्तमान समय में प्रो शशिभूषण शीतांशु जैसे सृजनात्मक आलोचक संपूर्ण भारत में कोई नहीं हैं. उन्होंने आलोचना की कई नई विधियां विकसित की हैं. उच्चारण की शुद्धता उनकी विशिष्टता है. वह एक श्रेष्ठ कहानीकार, आलोचक एवं कवि हैं. उक्त बातें प्रो डॉ बहादुर मिश्र ने रामसर स्थित विक्रमशिला कॉलोनी में विमोचन सह विमर्श समारोह को संबोधित करते हुए कहा. कार्यक्रम का संयोजन श्री रामचंद्राचार्य परमहंस स्वामी आगमानंद जी महाराज ने किया.

इसके पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ प्रो डॉ बहादुर मिश्र, स्वामी आगमानंद, डॉ प्रतिभा राजहंस, प्रो लक्ष्मीश्वर झा, प्रो नृपेंद्र वर्मा, प्रो डॉ अंजनी कुमार राय, प्रो डॉ ज्योतींद्र चौधरी, वेदांती शंभूनाथ शास्त्री, डॉ अरविंद कुमार झा, डॉ राजीव सिंह एवं गीतकार राजकुमार ने किया. इसके बाद गीतकार राजकुमार ने दीप गान गाकर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की. डॉ शशिभूषण शीतांशु द्वारा रचित ग्रन्थ भारतीय प्रज्ञा चेतना एवं प्रो डॉ बहादुर मिश्र द्वारा रचित चिंतन की मुद्राएं नामक पुस्तक का लोकार्पण किया गया.

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डॉ बहादुर मिश्र ने कहा कि शीतांशु जी की पहली पुस्तक निराला पर आई थी. निराला को जिस तरह उन्होंने समझा उस तरह किसी ने नहीं. स्वामी आगमानंद ने कहा कि जिसमें सबका हित हो वहीं साहित्य है. डॉ नृपेंद्र वर्मा ने पुस्तक की मुख्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला. प्रो लक्ष्मीश्वर झा, वेदांती शंभूनाथ शास्त्री, डॉ ज्योतिंद्र चौधरी, डॉ विनय कुमार ने भी संबोधित किया. धन्यवाद ज्ञापन डॉ प्रतिभा राजहंस ने किया. मौके पर मुरारी मिश्र, डॉ कृष्ण किंकर, दिलीप शास्त्री, डॉ विवेक कुमार, अमरेंद्र तिवारी, कुंदन बाबा, डॉ मनजीत सिंह किनवार, पूर्णेंदु चौधरी, कुमार गौरव, चक्रधर कृष्णा, कुमार आनंद, रूपेश, देवी दुर्गा, अभिलाषा सहित दर्जनों लोग उपस्थित थे.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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