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बिहार में मुस्लिम से दान में मिली जमीन पर होती है काली पूजा, भक्ति गीत में शामिल होती हैं मुस्लिम महिलाएं

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Kali Puja: यहां मां की प्रतिमा स्थापना से लेकर विसर्जन शोभायात्रा तक में अभी भी कोई अंतर नहीं दिखता कि काली पूजन में किस मजहब के लोग अधिक हैं. भेदभावरहित पूजा होती है. मुस्लिम महिलाएं खुद लोकगीत से लेकर मां की विदाई तक में शामिल होती हैं.

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Kali Puja: दीपक राव, भागलपुर. समाज की मजबूत बुनियाद रखने वाले हमारे पुरखों से सीख लेने की जरूरत है, जो कहा करते थे कि सभी के उत्सव में खुद भी भागीदार बनना ही इंसानियत है. इसी सोच के साथ 70 साल पहले वार्ड 10 अंतर्गत साहेबगंज के डॉ कलीम के पूर्वज ने कब्रगाह के समीप तीन कट्ठा जमीन काली मंदिर की स्थापना के लिए नि:स्वार्थ भाव से दान में दी थी. वर्तमान में उक्त जमीन की कीमत एक करोड़ से अधिक है. इतना ही नहीं यहां अब भी मुस्लिम धर्मावलंबी सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल पेश कर रहे हैं और तन, मन, धन से काली पूजा में सहभागी बन रहे हैं.

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भक्ति गीत से भसान तक में शामिल होती हैं मुस्लिम महिलाएं

पूर्व पार्षद मो इफ्तिखार हुसैन उर्फ पोपल ने बताया कि यहां सद्भाव की लंबी परंपरा है. एक तो डॉ कलीम के पूर्वजों ने महादलित टोला में बेशकीमती जमीन दान दी. दूसरा मां की प्रतिमा स्थापना से लेकर विसर्जन शोभायात्रा तक में अभी भी कोई अंतर नहीं दिखता कि काली पूजन में किस मजहब के लोग अधिक हैं. भेदभावरहित पूजा होती है. मुस्लिम महिलाएं खुद लोकगीत से लेकर मां की विदाई तक में शामिल होती हैं.

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सभी बिरादरी की है भागीदारी

सामाजिक कार्यकर्ता शशिभूषण भारती ने बताया कि यहां मो इफ्तिखार हुसैन के साथ मो इंतेसार, बहाव खान समेत सैकड़ों मुस्लिम लोग शामिल होते हैं. पूजन में मुस्लिम समुदाय के लोग आर्थिक सहयोग भी करते हैं. पारो पंडित 55 साल से यहां प्रतिमा का निर्माण कर रहे हैं. मेढ़पति सिकंदर दास, अध्यक्ष गोकुल दास, संयोजक शंकर पोद्दार, केंद्रीय काली पूजा महासमिति के पश्चिमी क्षेत्र शांति समिति के उपाध्यक्ष शशि भूषण भारती वर्तमान में भागीदारी निभा रहे हैं, तो दिवंगत दिलीप मिश्रा ने खुद अपने खर्च पर मंदिर का निर्माण कराया.

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