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थाने में तिरंगा फहराने पर अंग्रेजों ने बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया घर

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आजादी के 25 वर्ष वें वर्षगांठ पर मिला था ताम्रपत्र, आजादी की लड़ाई में निभायी अमूल्य भूमिका

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दाउदनगर. दाउदनगर शहर के चूड़ी बाजार निवासी दरगाही लाल केसरी ने आजादी की लड़ाई में अमूल्य योगदान दिया था. पटना गोली कांड के खिलाफ 13 अगस्त 1942 को दाउदनगर के चावल बाजार में स्वतंत्रता सेनानियों की एक सभा हुई थी. उस सभा में दरगाही लाल भी शामिल हुए थे. सभा के बाद युवाओं की टोली ने पूरे शहर में उग्र प्रदर्शन किया था. इसके बाद अंग्रेज पुलिस ने लाठियां चलायी. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नारे लगाते हुए युवाओं की टोली द्वारा उग्र प्रदर्शन किया गया. उस समय पूरा तत्कालीन गया जिला अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत पर उतर आया था, तो दरगाही लाल ने अपने साथियों के साथ डाकघर में काफी तोड़फोड़ की थी. अबकारी गोदाम पर हमला कर दिया गया. शिफ्टन हाइ स्कूल ऑफ (अब अशोक इंटर विद्यालय) में तोड़फोड़ की गयी. युवाओं की टोली थाने पर तिरंगा फहराने में सफल रही थी, जिसके कारण इनके पिता की दुकान पर बुलडोजर चला दिया गया था. जहरीली शराब से कुछ लोगों की मौत हो जाने के बाद युवाओं की टोली ने शराब भट्ठी वाली सड़क पर सो कर जाम कर दिया था, तब अंग्रेजी फोर्स ने सभी को एक गाड़ी में ले जाकर छत्तीसगढ़ के सरगुजा के जंगलों में छोड़ दिया था. आजादी की लड़ाई के दौरान दरगाही लाल के कारनामे से तंग आकर अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें देखते ही गोली मारने का आदेश दे दिया था. वे आजादी की लड़ाई में अपनी भूमिका निभाते-निभाते कई बार जेल भी गये. उनके परिजनों को यह तो याद नहीं है कि कितनी बार जेल गये, लेकिन परिजन बताते हैं कि करीब तीन से चार बार जेल गये. एक बार पांच सौ रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ा था. सरगुजा में रहने के दौरान उन्होंने तत्कालीन राजा के यहां पेशकारी भी की. कई वर्षों तक उन्होंने वेश बदलकर स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया और इधर-उधर घूमते रहे. 15 अगस्त 1947 को जब हमारा देश आजाद हुआ, तो युवाओं की टोली ने भारत मां का जयकारे लगाते हुए पूरे शहर में भ्रमण किया. युवाओं की इस टोली में दरगाही लाल केसरी में शामिल थे. दरगाही लाल केसरी को 15 अगस्त 1972 को आजादी के 25 वें वर्षगांठ पर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था. यह शहर व तत्कालीन गया (वर्तमान) औरंगाबाद जिले के लिए गौरव की बात थी. तब दरगाही लाल केसरी ताम्रपत्र लेने के लिए दिल्ली गये थे. जब वे ताम्रपत्र लेकर वापस दाउदनगर लौटे तो स्थानीय लोगों द्वारा उनका भव्य स्वागत किया गया. दाउदनगर शहर के चूड़ी बाजार निवासी बाबूलाल केसरी के एकलौते पुत्र दरगाही लाल केसरी थे. उनकी जन्मतिथि परिजनों को भी याद नहीं है, लेकिन उनका निधन 1990 में हुआ था. आजादी के बाद वे पहले शिफ्टन हाइस्कूल (अब अशोक इंटर स्कूल) में शिक्षक बने. उसके बाद राष्ट्रीय उच्च विद्यालय में शिक्षक बने. फिर बालिका मध्य विद्यालय में शिक्षक बने और बालिका मध्य विद्यालय से अवकाश ग्रहण किया. करीब 40 वर्षों तक अखबार के एजेंट भी रहे. करीब 20 वर्षों तक पटना से प्रकाशित होने वाले एक हिंदी दैनिक समाचार पत्र के दाउदनगर संवादाता भी रहे. जब वे अखबार के एजेंट थे, तो दाउदनगर से अखबार की बंडले अरवल व गया जिले के इलाके तक भी जाती थी. वे डायरी लिखने के शौकीन थे. वे नियमित तौर पर डायरी लिखा करते थे.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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