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Vidhan Sabha Results 2023: कांग्रेस गौर करे चार राज्यों के चुनाव परिणाम के मायने कुछ कह रहे हैं…

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कांग्रेस गौर करे हिंदी प्रदेश के तीन राज्यों में भाजपा की जीत ने यह साफ कर दिया है कि चुनावी मुकाबले में कांग्रेस को अपनी रणनीति बनाने में सामाजिक सूत्रों को समझना होगा. भाजपा ने कांग्रेस से दो राज्यों की सत्ता छीन ली और मध्यप्रदेश में अपना किला बचाने के वह कामयाब रही.

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अजय कुमार

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याद करिए हाल में जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘इंडिया’ की बैठक नहीं हो पाने की बात कही, तो अगले ही दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कुमार को फोन किया. खरगे ने नीतीश कुमार से कहा कि कांग्रेस अभी चार राज्यों के चुनाव में व्यस्त है और चुनाव बाद ‘इंडिया’ की बैठक बुलायी जायेगी. रविवार को इन चारों राज्यों के चुनाव परिणाम को नीतीश कुमार की उस मांग से जोड़ कर देखा जाना चाहिए.

अब इसमें शक नहीं कि ‘इंडिया’ में बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस की हैसियत डिक्टेट करने वाली नहीं रहेगी. बड़ा सवाल तो यह भी है कि गठबंधन का चेहरा कौन होगा? निश्चय ही कांग्रेस अगर छत्तीसगढ़ और राजस्थान को बचा लेती, तो शायद उसकी हैसियत अब जैसी तो नहीं ही होती. हिंदी प्रदेश के तीन राज्यों में भाजपा की जीत ने यह साफ कर दिया है कि चुनावी मुकाबले में कांग्रेस को अपनी रणनीति बनाने में सामाजिक सूत्रों को समझना होगा. भाजपा ने कांग्रेस से दो राज्यों की सत्ता छीन ली और मध्यप्रदेश में अपना किला बचाने के वह कामयाब रही.

कांग्रेस अपनी भूमिका पर गौर कर

बिहार में जरूरराजनीतिक एजेंडा को नीतीश कुमार ने बदलने की कोशिश की है. जाति गणना और आरक्षण संबंधी कानून बनाकर उन्होंने भाजपा से लोहा लेने का एजेंडा तय करदिया है. पर भाजपा विभिन्न सामाजिक समूहों को साधने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. ‘इंडिया’ को यह भी सोचना होगा कि जाति गणना का मुद्दा छत्तीसगढ़ से लेकरराजस्थान और मध्यप्रदेश में काम न आ सका. कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस मुद्दे को सामने कर भाजपा के प्रतिबद्ध सामाजिक समूहों को अलग नहीं कर सके. बिहार के संदर्भ में इस सवाल पर नये सिरे से सोचना होगा. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए अब कांग्रेस को न सिर्फ अपनी भूमिका पर गौर करना होगा, बल्कि गठबंधन को लीड करनेवाले फेस के तौर किसी दूसरे को लाना चाहिए.

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कांग्रेस-भाजपा में रही टक्कर

चारराज्यों में कांग्रेस और भाजपा का आमना-सामना रहा. कांग्रेस अगर अपने रुख में लचीलापन रखती, तो वह ‘इंडिया’ की दूसरी पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व से अपने अभियान में शामिल करने का अनुरोध कर सकती थी. पर उसे तो गठबंधन की गतिविधियों को चलाने में भी दिक्कत हो रही थी.

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