26.4 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 04:09 pm
26.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

बिहार के 18 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर पर, पेयजल बन सकता है जहर

Advertisement

पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा है. खास बात है कि आर्सेनिक वाले पानी से फसल की सिंचाई करने से यह कृषि उत्पादों में भी पहुंच जाता है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

बिहार के 18 जिलों के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित 0.01 मिलीग्राम (10 माइक्रोग्राम) प्रति लीटर से ज्यादा है. यह खबर पिछले महीने सामने आयी थी. जानकारी के अनुसार इस समस्या से प्रभावित जिलों में बक्सर, भोजपुर, भागलपुर, सारण, वैशाली, पटना, समस्तीपुर, खगड़िया, बेगूसराय, मुंगेर आदि प्रमुख हैं, जो कि गंगा नदी के तट पर स्थित हैं.

- Advertisement -

कैंसर जैसी बीमारी का खतरा

पानी में आर्सेनिक की मात्रा ज्यादा होने से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा है. खास बात है कि आर्सेनिक वाले पानी से फसल की सिंचाई करने से यह कृषि उत्पादों में भी पहुंच जाता है. ऐसे में हमारे समक्ष कई सवाल खड़े होते हैं. आखिर इन जिलों के भूजल में आर्सेनिक रूपी जहर की मात्रा क्यों बढ़ रही है? क्या स्वच्छ भूजल के बिना पीने योग्य जल व जीवन की कल्पना की जा सकती है? इन सबके पीछे जलवायु परिवर्तन व हमारी क्या भूमिका है? इन्हीं कुछ सवालों के जवाब हम इस आलेख में खोजने की कोशिश करेंगे.

भूजल में कैसे मिलता है आर्सेनिक

आर्सेनिक एक प्राकृतिक तत्व है. खनिज के रूप में यह प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले तत्वों में से एक है. आर्सेनिक युक्त खनिज जैसे- आर्सेनाइड, सल्फाआर्सेनाइड, आर्सेनोपायराइट आदि हैं. ये आमतौर पर पानी में घुलते नहीं हैं और विषैले नहीं होते हैं, परंतु भूजल में आर्सेनिक घुला रहता और विषैला होता है. दरअसल, भूजल में आर्सेनिक के घुलने की क्रिया प्राकृतिक व मानव जनित दोनों ही होती हैं. केमिकल रिएक्शन की वजह से पृथ्वी की ऊपरी परत में उपस्थित आर्सेनिक खनिजों से निकल कर भूजल में घुल जाता है और जल को विषैला बना देता है. इसके अलावा खनन कार्यों, कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग, उर्वरकों, पेट्रोल एवं कोयले इत्यादि के जलने के कारण अप्राकृतिक रूप से भी आर्सेनिक पानी में जा मिलता है. जमीन से पानी निकालने के लिए लगातार गहराई तक ड्रिल करने से भी आर्सेनिक पानी में घुल जाता है. खासकर कोयला खनन क्षेत्र जैसे- धनबाद, साहिबगंज आदि के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा बढ़ने के पीछे की वजह यही है.

भूजल प्रदूषण में इंसानों की भूमिका

वर्ल्ड वाटर क्वालिटी इंडेक्स में 122 देशों में भारत का 120वां स्थान है. यहां का लगभग 70 प्रतिशत पानी प्रदूषित है. हम इंसान तो आजकल पीने के लिए पैकेज्ड व आरओ प्यूरीफाइड जल का इस्तेमाल करने लगे हैं, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि जल की जितनी जरूरत हमें है, इसकी उतनी ही जरूरत जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों को भी है? दूषित जल पीने से भी जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों के जीवन पर भी खतरा मंडरा रहा है. वहीं, आज पूरी मानव आबादी गिरते भूजल स्तर व भूजल प्रदूषण की समस्या से जूझ रही है. बीते कुछ दशक से बढ़ते मशीनीकरण की वजह से अपने देश में भूजल का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. इस तरह जब भूमिगत जल स्तर कम होता है, तो नदियों के प्रदूषित सतही जल की अधिकतम मात्रा भूजल में मिल जाती है. इसका भूजल की गुणवत्ता पर सीधा प्रभाव पड़ता है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में पीने योग्य पानी पेट्रोलियम ईंधन से भी महंगे होंगे.

गंगा के मैदानी इलाकों में ज्यादा समस्या

भारत के केंद्रीय भूजल रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 20 राज्यों के कई जिलों में भूजल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम (10 माइक्रोग्राम) प्रति लीटर से ज्यादा है. इनमें उत्तराखंड को छोड़कर गंगा व ब्रह्मपुत्र के किनारे बसे सभी राज्य, जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल शामिल हैं. इसके अलावा झारखंड, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ के कई जिलों में आर्सेनिक का लेवल 0.01 मिलीग्राम से ज्यादा है. दरअसल, गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में खनिज के रूप में आर्सेनिक शुरू से ही मौजूद रहा है, लेकिन वह पानी में नहीं घुलता था. विशेषज्ञों का मानना है कि बीते दशक से भूजल स्तर के तेजी से गिरने और विभिन्न केमिकल रिएक्शन की वजह से ये खनिज आयनिक रूप में बदलने लगे. यही वजह रही कि आर्सेनिक भूजल में घुलने लगा. आज भूजल में आर्सेनिक व फ्लोराइड प्रदूषण गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन कर उभर रहा है.

सबसे बड़ा भूजल उपयोगकर्ता है भारत

वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता अपना देश भारत है, जो अकेले अमेरिका और चीन से ज्यादा भूमिगत जल का दोहन करता है. हालांकि, भारत में भूजल ने ही हरित क्रांति को आधार दिया, जिससे आज अपना देश एक खाद्य-सुरक्षित राष्ट्र बन गया. यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर ताजा पानी के सभी बहते स्रोतों में भूजल का हिस्सा 99 प्रतिशत है. रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की लगभग 50 प्रतिशत शहरी आबादी भूमिगत जल संसाधनों पर निर्भर है. दरअसल, वर्ष 1970 के दशक में डायरिया जैसी बीमारियों से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ जैसी संस्थाओं ने भारत समेत कई विकासशील देशों को नदियों, तालाबों और कुओं के पानी की जगह भूजल के प्रयोग पर जोर दिया था. इसके बाद से भूजल का प्रयोग बढ़ने लगा और बहुत तेजी से चापाकल और ट्यूबवेल लगने लगे. धीरे-धीरे पेयजल और सिंचाई दोनों के लिए लोग भूजल पर निर्भर होते चले गये और नदियों, तालाबों के पानी को छोड़ते चले गये. इसका नतीजा हुआ कि भूजल का अत्यधिक दोहन होने लगा. अब भूजल स्तर की स्थिति ऐसी हो गयी है, जहां पानी निकालने के लिए सबमर्सिबल वाटर पंप की जरूरत पड़ने लगी है.

जलवायु परिवर्तन व वाटर रिचार्ज में कमी

इंसानी गतिविधियों और पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई की वजह से ही आज दुनिया जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझ रही है. अनियमित वर्षा और तेजी से बढ़ती गर्मी जलवायु परिवर्तन की ही देन हैं. दुनियाभर के कुछ इलाकों में यह भूजल स्तर के गिरावट के लिए जिम्मेदार है. हालांकि, कई क्षेत्रों में तालाबों के न होने से वाटर रिचार्ज (पुनर्भरण) की दर में भी गिरावट आ रही है.

क्या हो सकते हैं बचने के विकल्प

जल ही जीवन है. यह पंक्ति हम अक्सर दोहराते हैं. ऐसे में अगर समय रहते इस चुनौती की तरफ ध्यान नहीं दिया गया, तो इसके दुष्प्रभावों से बच पाना संभव नहीं होगा. इसके लिए लोगों को घटते भूजल स्तर और भूजल के प्रदूषण की समस्या से अवगत करना होगा. इससे निबटने के लिए वर्षा जल को जमा कर कृत्रिम वाटर रिचार्ज व सिंचाई में सतही जल के इस्तेमाल के तरीके ढूंढ़ने होंगे. साथ ही कीटनाशकों व उर्वरकों के अंधाधुंध इस्तेमाल पर रोक लगाना होगा और सबसे जरूरी है कि हमें खुद हर कदम पर भूजल की बर्बादी रोकनी होगी.

Also Read: संबित पात्रा ने राहुल गांधी को कहा ‘मीर जाफर’, तो पवन खेड़ा बोले-करारा जवाब मिलेगा, हम उनसे ही सीख रहे

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें