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अरणी मंथन के साथ शुरू हुआ श्रीविष्णु महायज्ञ

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यज्ञमंडप की परिक्रमा करने से जीव त्रितापों से मुक्त : देवराहा शिवनाथदास

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बिहिया.

बिहिया चौरास्ता स्थित दोघरा में भारत के महाविभूति अंतरराष्ट्रीय महायोगी श्रीदेवराहा बाबा की पुण्यतिथि पर त्रिकालदर्शी परमसिद्ध संतश्री देवराहाशिवनाथ जी महाराज के सानिध्य में आयोजित श्रीविष्णु महायज्ञ का गुरुवार को मंडप प्रवेश और काशी के प्रसिद्ध आचार्य डॉक्टर पंडित भूपेंद्र पांडेय और उनके सहयोगियों के द्वारा वेद के सस्वर उच्चारण से अरणी मंथन कराया गया. वहीं, अरणी मंथन के बाद यज्ञमंडप की परिक्रमा करनेवाले श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. श्रद्धालुओं के द्वारा यज्ञमंडप की परिक्रमा की गयी. संध्या बेला में संत देवराहा शिवनाथ जी महाराज की वेद मंत्रों के द्वारा षोडशोपचार पूजन और आरती श्रद्धालुओं के द्वारा की गयी. इसके बाद श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संतश्री ने कहा कि यज्ञ के द्वारा ही ईश्वर की उपासना करते हैं. यज्ञ में आहुति के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है. अग्नि व्यापक है, लेकिन यज्ञ के निमित्त उसे प्रकट करने के लिए भारत में वैदिक पद्धति है जिसे अरणी मंथन कहते हैं. शमी (खेजड़ी) के वृक्ष में जब पीपल उग आता है. शमी को शास्त्रों में अग्नि का स्वरूप कहा गया है. जबकि पीपल को भगवान का स्वरूप माना गया. यज्ञ के द्वारा भगवान की स्तुति करते हैं अग्नि का स्वरूप है शमी और नारायण का स्वरूप पीपल, इसी वृक्ष से अरणी मंथन काष्ठ बनता है. उसमें अग्रि विद्यमान होती है, ऐसा हमारे शास्त्रों में उल्लेख है. इसके बाद अग्रि मंत्र का उच्चारण करते हुए अग्रि को प्रकट करते हैं. संतश्रीदेवराहाशिवनाथ जी महाराज ने आगे कहा कि यज्ञमंडप की परिक्रमा करने से जीव त्रिताप दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त हो जाता है. जीव के सारे मनोरथों की पूर्ति होती है. श्रीविष्णु जगत के पालनहार हैं. इसलिए सभी को यज्ञमंडप की परिक्रमा करनी चाहिए.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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