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मां खड्गेश्वरी महाकाली मंदिर के दरबार से नहीं लौटा कोई खाली

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दूर-दराज से आते हैं श्रद्धालु

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मां खड्गेश्वरी पर भक्तों में दिखती है अनोखी आस्था, मंदिर का गुंबद व मां का श्रृंगार होता है आकर्षण का केंद्र बिंदू

पड़ोसी राष्ट्र नेपाल समेत अन्य राज्यों से दर्शन के लिए आते हैं भक्त फोटो:32-मां खड्गेश्वरी काली मंदिर में नानू बाबा के साथ अभिनव आलोक उर्फ किमी आनंद सहित अन्य.

मृगेंद्र मणि सिंह, अररिया

भक्त हमेशा मंदिर में जाते हैं तो अपनी कुछ इच्छाएं भगवान के सामने जाहिर करते हैं व उम्मीद रखते हैं भगवान उन्हें पूरा करेंगे. वह पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ पूजा करते हैं. इन दिनों जिला ही नहीं बल्कि देश दुनिया में भी मां खड्गेश्वरी महाकाली मंदिर विख्यात है. इस मंदिर में हजारों भक्त रोजाना मां खड्गेश्वरी महाकाली का दर्शन करने के लिए आते हैं. सभी भक्तों की मां खड्गेश्वरी मांगी गयीं मुरादें भी पुरी करती हैं. जिस कारण मां के दरबार से आज तक कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटा है. काली पूजा के मौके पर जिला व राज्य के विभिन्न हिस्सों के अलावा नेपाल सहित अन्य देशों से मां काली के भक्त काली पूजा के दौरान अररिया पहुंचते हैं. मां काली के साधक श्री स्वामी सरोजानंद जी महाराज उर्फ नानू बाबा ने अपनी पूरी संपत्ति इस मंदिर में लगा दी है. सांसारिकता को त्याग नानू बाबा मां काली की अराधना में लगे रहते हैं.

क्या है मंदिर का इतिहास

जानकारी के अनुसार मां खड्गेश्वरी काली मंदिर की स्थापना सन् 1884 में हुई थी. लेकिन परम पूज्य साधक नानू बाबा ने 1970 में इस मंदिर की बागडोर अपने हाथों में ली थी. इसके बाद से काली मंदिर में विशेष पूजा अर्चना होने लगी. पहले एक टीन के मकान में मां काली की पूजा हुआ करती था. नानू बाबा द्वारा लगातार साधना व पूजा किये जाने के बाद मंदिर के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती चली गयी. 1970 से पूर्व पंडित द्वारा पूजा की जाती थी. नानू बाबा बताते हैं कि काली मंदिर में जब विशेष पूजा अर्चना होने लगी तो भक्तों की भीड़ बढ़ती चली गयी. 1978 में नानू बाबा के सानिध्य में मंदिर का कार्य शुरू हुआ. 1982 में मंदिर का नया गुंबद बनाया गया, जिसकी ऊंचाई 152 फीट है. आज इस मंदिर को लोग उदाहरण के रूप में लेते हैं.

खड् से पड़ा मां का नाम खड्गेश्वरी मां खड्गेश्वरी के साधक नानू बाबा कहते हैं कि मां काली के हाथ में खड् रहने के कारण मां काली का नाम मां खड्गेश्वरी रखा गया. बाबा बताते हैं कि मां काली का रूप सभी देवियों में से सबसे कट्टर माना जाता है. मां के चार हाथ हैं, एक हाथ में तलवार व एक-एक हाथ में राक्षस का सिर, यह सिर एक बहुत बड़े युद्ध का प्रतिनिधित्व है, जिसमें मां ने रक्तबीज नाम के दानव का वध किया था. बांकी के दो हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए है. मां अपने भक्तो की हमेशा रक्षा करती हैं.

आकर्षण का केंद्र है मंदिर का गुंबद मां खड्गेश्वरी महाकाली मंदिर के गुंबद की ऊंचाई 152 फिट है. मंदिर के सभी दीवारों में लगे टाइल्स व पत्थर चांद की दूधिया रोशनी में और छंटा बिखेरता है. इस मंदिर के गुंबद का नक्शा अन्य मंदिर से भिन्न है. नानू बाबा बताते हैं कि मां खड्गेश्वरी काली मंदिर का गुंबद का नक्शा उनके चाचा विमल चंद्र रक्षित उर्फ गौर दा द्वारा बनाया गया था. जिनका निधन मंदिर निर्माण के क्रम में ऊपर से गिरने से हो गया था. उस समय मंदिर का काम पूरा भी नहीं हुआ था. लेकिन मां काली के आशीर्वाद व भक्तों के सहयोग से पूरा कर लिया गया.

प्रत्येक दिन मंडल कारा के बंदी भेजते हैं फूलों की माला मां खड्गेश्वरी की पूजा के लिए प्रतिदिन मंडल कारा के बंदियों द्वारा फूल का आकर्षक माला बना कर भेजा जाता है. जिसे मां खड्गेश्वरी की पूजा के बाद बाबा खड्गेश्वर नाथ को चढ़ाया जाता है. बाबा बताते है यह परंपरा लगभग 40 वर्षों से चलता आ रहा है.

शनिवार व मंगलवार को लगाया जाता है महाभोग, होता है मां का विशेष श्रृंगार

मां खड्गेश्वरी महाकाली मंदिर में प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को महाभोग लगता है. इसके साथ हीं दोनों दिन मां का श्रृंगार भी किया जाता है. मां की प्रतिमा को रंग बिरंगे चुनरी व कई प्रकार के हार से सजाया जाता है. श्रृंगार के बाद रात में मां को महाभोग लगाया जाता है. महाभोग का खर्च किसी ना किसी भक्त द्वारा उठाया जाता है. इस दिन मां की विशेष पूजा देखने लायक होती है. महाभोग में खीर, खिचड़ी व प्लॉव प्रसाद बनता है.

पूजा की सफलता को लेकर शहरवासी से लेकर कमेटी के लोग रहते हैं सक्रिय

मां खड्गेश्वरी काली मंदिर के प्रति अररिया जिलेवासियों की अटूट आस्था है, किसी न किसी रूप में अररिया शहर के लोग मां के प्रति लगे रहते हैं. मां के मंदिर के प्रति भाजपा नेता अभिनव आलोक उर्फ किमी आनंद की अटूट निष्ठा छिपी हुई नहीं है. वे नानू बाबा को अपना गुरु मानते हैं व मां पर अटूट आस्था रखते हैं. वे तन-मन-धन से मां की सेवा में लगे रहते हैं. उनके अलावा मंदिर में अपना सर्वस्व दे चुके शशिकांत दुबे, अरुण मिश्रा, अखिलेश दास, हेमंत कुमार हीरा, रामजिनिस पासवान, शंकर माली, गुड्डू सिंह, रौशन दुबे का भी सराहनीय योगदान रहता है. लगातार चंदा कलेक्शन से लेकर मां काली की पूजा तक मंदिर की सजावट व भक्तों की सेवा के लिए वे लगातार लगे रहते हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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